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*बिहार में खादी लिख रहा रोजगार और आत्मनिर्भरता का नया अध्याय*

– खादी एवं ग्रामोद्योग से आत्मनिर्भर बन रहा बिहार
– रोजगार और स्वदेशी उत्पादों को मिल रहा बढ़ावा

त्रिलोकी नाथ प्रसाद/बिहार में खादी एवं ग्रामोद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने और आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है। खादी और ग्रामोद्योग न केवल परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरण अनुकूल उत्पादन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में एक ठोस कदम भी है।

इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन, स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग, स्वदेशी उत्पादों का प्रोत्साहन, सामाजिक-आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण करना है। खादी और ग्रामोद्योग के माध्यम से ग्रामीण जनसंख्या को न सिर्फ आजीविका के अवसर मिल रहे हैं, बल्कि उनकी जिंदगी भी आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रही है।
मुख्यमंत्री खादी एवं ग्रामोद्योग योजना के तहत राज्य की खादी संस्थाओं को कई योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। इनमें खादी एवं ग्रामोद्योग प्रशिक्षण योजना, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर खादी मेला-प्रदर्शनी, खादी रिवेट योजना, ग्रामोद्योग योजना, खादी आउटलेट का निर्माण और नवीनीकरण, चरखा, करघा, ऊलेन निटिंग मशीन, सिलाई मशीन, कशीदाकारी मशीन, कार्यशील पूंजी (ऋण) तथा शेड निर्माण जैसी योजनाएं शामिल हैं।

वित्तीय वर्ष 2023-24 में खादी आउटलेट निर्माण एवं रिनोवेशन योजना के तहत खादी मॉल पटना, खादी भवन छपरा (सारण) और खादी भवन आरा (भोजपुर) के लिए कुल 30 लाख रुपये की स्वीकृति दी गई है। वहीं, प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत वित्तीय वर्ष 2022-23 से अब तक 105 प्रशिक्षणों के माध्यम से अबतक कुल 2,625 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा चुका है।

ग्रामोद्योग योजना में भी सरकार ने अहम वित्तीय सहयोग दिया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस योजना के तहत एक करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गई, जबकि 2024-25 में 10 लाख रुपये दिए गए। इसके अलावा, खादी और ग्रामोद्योग के प्रचार-प्रसार के लिए समय-समय पर राज्य के विभिन्न जगहों पर खादी मेलों का आयोजन किया जाता रहा है।

वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य के 12 प्रमुख स्थानों, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, सोनपुर, राजगीर, सीतामढ़ी, सहरसा, पूर्णिया, बांका, औरंगाबाद, मुंगेर और जहानाबाद में खादी मेलों का सफल आयोजन किया गया है।
बिहार सरकार का मानना है कि खादी और ग्रामोद्योग न केवल परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरण अनुकूल उत्पादन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में एक ठोस कदम भी है।

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