राष्ट्री य बालिका दिवस शिक्षा आत्मकनिर्भर जीवन के लिए जरूरी

त्रिलोकी नाथ प्रसाद आत्मनिर्भरता को अपना तौर-तरीका बनाएँ… ज्ञान की संपदा एकत्र करने में खुद को ढूंढते हैं। ’’ भारत की पहली महिला शिक्षक और देश में बालिकाओं के लिए पहले विद्यालय स्थांटना करने वाली सावित्री बाई फुले बालिकाओं की शिक्षा के संबंध में। बात कही थी अपने पूरे जीवन काल में उन्शेंने बालिकाओं को समान और शिक्षा प्रदान करने के लिए जाने की वकालत की। उनका विश्वाव्स था कि आत्म निर्भरता का रास्ता शिक्षा प्राप्ति से ही ही जाता है। उनका मानना था कि शिक्षा न सिर्फ बालिकाओं को आत्मानिर्भरता और समृद्धि की राह दिखाती है, बल्कि वह उनके परिवारों, समुदाय और पूरे राष्ट्र के भविष्यो को आत्म निर्भर बनाने में सहायता करता है। बालिकाओं की समानता के उनके सिद्धांत पर चलकर न सिर्फ विद्यालयों में बालिकाओं की अधिक-से-अधिक उपस्थिति दर्ज कराने में मदद मिली है बल्कि इसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की सफलता का श्रेय भी दिया जा सकता है। शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) के 2018-19 के आंकड़े के अनुसार प्राथमिक स्तंभ पर बालिकाओं का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 101.78 प्रतिशत है और पूर्व स्तंभ र पर यह 96.72 प्रतिशत है।
सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में वृद्धि के लिए शिक्षा मंत्रालय की स्क्रीन 2 एल कॉलम र से लेकर उच्चअम शिक्षा कॉलम र तक लागू की गई परिवर्तनशील दृष्टि को श्रेय दिया जा सकता है। इन सबसे अधिक महत्व पूर्ण कदम माध्यमिक शिक्षा के लिए बालिकाओं को प्रेरित करने की राष्ट्रीय योजना, उच्चे प्राथमिक स्तंभ र से उच्च तर माध्यकमिक स्तंर तक शिक्षा के लिए कस्तूेरबा गांधी बालिका विद्यालय खोलना और ऐसे मौजूदा विद्यालयों का स्ट्रॉन्ननुयन करना और इसे महिला छात्रावास योजना से जोड़ना। , महिला टाल्स का विकास और कक्षा VI से बारहवीं तक की छात्राओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण उपलब्ध कराने जा रहा है। इसके अलावा, हमने सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान के लिए स्वामि विवेकानंद एकल बालिका विद्वानों सहित महिला अध्यायन केंद्रे स्था .इट किया। विश्वशालय अनुदान आयोग आठ प्रमुख महिला विश्वेविद्यालयों की स्थांपना करने जा रहा है। तकनीकी शिक्षा में महिलाओं के नामांकन को बढ़ाने के लिए एआईसीटीई ने प्रगति छात्रवृत्ति योजना लागू की है। आईआईटी और एनआईटी और आईआईईएसटी के बी-टेक कार्यक्रमों में महिलाओं का नामांकन जहां 2016 में 8 प्रतिशत था, वह 2018-19 में 14 प्रतिशत और 2019-20 में 17 प्रतिशत हो गया। 2020-21 में अतिरिक्तह बढ़ाते हुए जा रहे हैं। यह 20 प्रतिशत से अधिक हो गया है। पिछले कुछ वर्षों और मौजूदा सत्रीय वर्ष के दौरान छात्राओं के लिए कुल 3,503 वक्त्र और बढ़ाई गई हैं।
शिक्षा प्रणाली में छात्राओं की बढ़ती भागीदारी वाले समीकरण को दर्शाती है, हालांकि, यह दुखद है कि को विभाजित -19 महामारी के चलते छात्राओं की भागीदारी पर संकट के बादल छा गए हैं। विभिन्नर पैटर्न्स का कहना है कि स्क्रीनियल्स के बंद होने के कारण होस्टेस जल्दी और जबरन शादी और हिंसा की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।) इन चुनौतियों से निपटने और बालिकाओं की शिक्षा की दिशा में की गई प्रगति को बनाए रखने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने विभिन्नं उपाय किए हैं और यह सुनिश्चित किया है कि वे महामारी के दौरान भी अपनी पढ़ाई जारी रखें। मैं दीक्षा, व्हाट्सएप, यू-ट्यूब, फोन कॉल्स, कॉन्फ्रेंड स कॉल्स, वीडियो कॉल्स और जूम कॉन्फ्रेंड स के जरिए ई-लर्निंग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए राज्यों के प्रयासों की प्रशंसा करता हूं। इस दौरान (शैक्षिक) गृह कार्य करने, हॉस्टल और शिक्षकों को कॉमिक विषयों पर छोटे-छोटे वीडियो उपलब्धव प्रदान करने के विशेष प्रयास किए गए। मैं समझता हूं कि कस्तूइरबा गांधी बालिका विद्यालयों की प्रकृति को देखते हुए महामारी के दौरान क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सोंव में रहने वाली छात्राओं के साथ संपर्क कायम रखने काफी कठिन कार्य था, लेकिन इन विद्यालयों ने इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया। Unensane जिलापाल समन्वायकों की नियमित वर्ग बैठकें आयोजित कीं और बालिकाओं की सुरक्षा के लिए विभिन्नों गतिविधियों को लागू करने और उनकी निगरानी करने के लिए उनका मार्ग दर्शन किया। कुछ राज्यों में विद्यालयों के अध्यापकों को आत्मरक्षा प्रशिक्षक बनने का प्रशिक्षण मुहैया कराया गया, ताकि स्क्रीनेलों के दोबारा खुलने के बाद बालिकाओं को आत्म रक्षा का प्रभावी प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं कराया जा सके। मैं लैंगिक समानता की अवधारणा को सार्थक करने के लिए उनके परिश्रम की सराहना करता हूं। ताकि स्क्रीनेलों के दोबारा खुलने के बाद बालिकाओं को आत्मरक्षा का प्रभावी प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा सके। मैं लैंगिक समानता की अवधारणा को सार्थक करने के लिए उनके परिश्रम की सराहना करता हूं।
मैंने सभी राज्योंा / केन्द्रग शासित प्रदेशों को आने वाले सालों में विद्यालयों से बड़े पैमाने पर अध्ययन छोड़कर जाने वाले बच्चोंं को रोकने के लिए एक अभियान शुरू करने का निर्देश दिया है। इसमें मुख्यक ध्यचन अध्ययन छोड़ने वाली छात्राओं पर दिया जाएगा। इसमें बताया गया उपाय छात्राओं को लैंगिक समानता उपलब्ध् कराने के साथ-साथ उनकी पढ़ाई जारी रखने में मदद करेंगे। इस अवधारणा पर आगे चलकर और राष्ट्रीयन शिक्षा नीति में की गई सिफारिशों के अनुरूप कस्तूअरबा गांधी बालिका विद्यालयों को मजबूत बनाने के साथ-साथ इनका विस्तासर किया जाएगा ताकि विद्यालयों (कक्षा 12 तक) तक हॉस्टलों की भागीदारी को बढ़ाया जा सके। भारत सरकार एक करेगी लैंगिक समावेश निधि ’की स्थाipना करेगी ताकि सभी बालिकाओं को समान शिक्षा शिक्षा मुहैया कराने की राष्ट्री की क्षमता में वृद्धि की जा सके। इस निधि के माध्यपम से सरकार बालिकाओं की शिक्षा तक पहुंच बनाने और उनमें आत्म निर्भर बनने में मदद कर रही है संभव है। यह कदम सावित्री बाई फुले और हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रन मोदी जी की परिकल्परना को साकार करेगा जो इस बात में भरोसा करते है, शिक्षा जीवन शिक्षा जीवन में आत्मकनिर्भरता का मार्ग प्रशस्ति करती है। ’’ इसके साथ ही हमारे लिए यह अहसास करना भी बेहद जरूरी है। जरूरी है कि बालिकाओं को शिक्षित करना, उनमें स्कूल में दाखिल करना ही नहीं है। हमारे लिए यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि छात्राएं स्क्रीन ल में पढ़ाई के साथ-साथ सुरक्षित भी महसूस करें। हमें उनकी सामाजिक-भावनात्म्क और जीवन संबंधी कौशल को भी बढ़ाने पर ध्याहन देना है। बालिकाओं को इतना सशक्त बनाना है कि वे अपने जीवन के निर्णय खुद ले सकें और आत्म.निर्भर बन सकें। ” शिक्षा जीवन में आत्मकनिर्भरता का मार्ग प्रशस्ति करता है। ” इसके साथ ही हमारे लिए यह अहसास करना भी बेहद जरूरी है कि बालिकाओं को शिक्षित करना, उनमें स्कूल में दाखिल करना ही नहीं है। हमारे लिए यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि छात्राएं स्क्रीन ल में पढ़ाई के साथ-साथ सुरक्षित भी महसूस करें। हमें उनकी सामाजिक-भावनात्म्क और जीवन संबंधी कौशल को भी बढ़ाने पर ध्याहन देना है। बालिकाओं को इतना सशक्त बनाना है कि वे अपने जीवन के निर्णय खुद ले सकें और आत्म.निर्भर बन सकें। ” शिक्षा जीवन में आत्मकनिर्भरता का मार्ग प्रशस्ति करता है। ” इसके साथ ही हमारे लिए यह अहसास करना भी बेहद जरूरी है कि बालिकाओं को शिक्षित करना, उनमें स्कूल में दाखिल करना ही नहीं है। हमारे लिए यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि छात्राएं स्क्रीन ल में पढ़ाई के साथ-साथ सुरक्षित भी महसूस करें। हमें उनकी सामाजिक-भावनात्म्क और जीवन संबंधी कौशल को भी बढ़ाने पर ध्याहन देना है। बालिकाओं को इतना सशक्त बनाना है कि वे अपने जीवन के निर्णय खुद ले सकें और आत्म.निर्भर बन सकें।