बिहार

*पशुपालन बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ : एन विजयलक्ष्मी*

- *एक लाख करोड़ तक पहुंच चुका है राज्य में पशुधन से जुड़ा व्यवसाय*

विश्व पशु चिकित्सा दिवस के मौके पर वेटनरी डॉक्टरों की एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन*

– कार्यशाला में देश के कई पशु विशेषज्ञों ने लिया भाग*

त्रिलोकी नाथ प्रसाद/पशुपालन बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। राज्य के 70 प्रतिशत लोग कृषि के साथ-साथ पशुपालन से जुड़े हुए हैं। बिहार में दूध, अंडा, मांस, मुर्गा और मछली का कारोबार 90 हजार से एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। ऐसे में राज्य में पशुधन के विकास में पशु चिकित्सकों की भूमिका काफी अहम है। यह उद्गार पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की अपर मुख्य सचिव डॉ. एन विजयलक्ष्मी ने शनिवार को विश्व पशु चिकित्सा दिवस के अवसर पर राजधानी के होटल लेमनट्री प्रीमियम में राष्ट्रीय पशुधन से संबंधित विषयों पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए व्यक्त की। बता दें कि हर साल अप्रैल के अंतिम शनिवार को विश्व पशु चिकित्सा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इस कार्यशाला में बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह और पशुपालन निदेशक नवदीप शुक्ला समेत न सिर्फ राज्य के बल्कि देश के कई अन्य राज्यों के पशु चिकित्सक और पशु विशेषज्ञों ने भाग लिया। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. एन विजयलक्ष्मी ने कहा कि पशु चिकित्सकों का काम मनुष्य के चिकित्सकों के मुकाबले कठिन है। मनुष्य तो अपनी तकलीफ अपने डॉक्टर के साथ साझा कर लेता है। लेकिन बेजुबान पशु-पक्षी तो अपनी समस्या भी डॉक्टर को नहीं बता सकते। स्वभाविक है कि पशु चिकित्सकों के समक्ष बेजुबान पशु-पक्षियों के इलाज की चुनौतियां अधिक हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में प्रतिदिन 30 लाख लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। जिसे 50 से 75 लाख लीटर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। राज्य सरकार पशुपालन के विकास के लिए अपना पूरा समर्थन दे रही है। इसी तरह बकरा, मुर्गा और मछली का उत्पादन बढ़ाना भी सरकार का लक्ष्य है।

डॉ. विजयलक्ष्मी ने कहा कि चारा घोटाले के बाद यह विभाग काफी बदमान हो चुका था। सरकार के अथक प्रयास से इस विभाग को फिर से संवारा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने अपनी 30 साल की प्रशासनिक सेवा में अधिकतर समय इस विभाग को दिया है। इस मौके पर उन्होंने राज्य के पशु चिकित्सकों की प्रोन्नति नीति (पद सोपान) को मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृति दिए जाने पर उन्हें बधाई दी। कहा कि आज यूनिवर्सिटी से पशु चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर निकले वाले छात्र सीधे उनके विभाग से जुड़ रहे हैं। जल्द ही राज्य में पशुधन और पॉल्ट्री साइंस की पढ़ाई भी शुरू कर दी जाएगी। कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग ले रहे बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह ने कहा कि आज हम पशुओं को लेकर उतने संवेदनशील नहीं हैं, जितना हमें होना चाहिए। विदेशों में पशु चिकित्सकों का काफी सम्मान है। क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा मामला है। पशुपालन निदेशक नवदीप शुक्ला ने कहा कि हमें पशुओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा। पशु कल्याण में जुटी हमारी टीम बेहतर काम कर रही है। इस कार्यशाला में निदेशक गव्य केदारनाथ सिंह, डॉ. ए शंकरन, डॉ. सुनील कुमार ठाकुर, डॉ. राकेश कुमार पंजीयार, डॉ. केजे नारायण समेत राज्य के विभिन्न जिलों से पशु चिकित्सकों ने अपने अनुभव और शोध की प्रस्तुति दी।

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