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समस्त सृष्टि की मूलभूत आद्याशक्ति है महालक्ष्मी

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना ::मार्कण्डेय पुराण के अनुसार समस्त सृष्टि की मूलभूत आद्याशक्ति महालक्ष्मी है। वह सत्य, रज और तम तीनों गुणों का मूल समवाय है। वहीं आद्याशक्ति है। वह समस्त विश्व में व्याप्त होकर विराजमान है। वह लक्ष्य और अलक्ष्य , इन दो रूपों में रहती है। लक्ष्य रूप में यह चराचर जगत ही उसका स्वरूप हैं और अलक्ष्य रूप में यह समस्त जगत की सृष्टि का मूल कारण है। उसी से विभिन्न शक्तियों का प्रादुर्भाव होता है। दीपावली के दिन इसी महालक्ष्मी का पूजा होता है। तामसिक रूप में वह क्षुधा, तृष्णा, निद्रा, कालरात्रि, महामारी के रूप में अभिव्यक्त होती है। राजसिक रूप में वह जगत का भरण पोषण करने वाली श्री के रूप में उनलोगों के घर में आती हैं। जिन्होंने पूर्व जन्म में शुभ कर्म किए होते हैं। परन्तु इस जन्म में उनकी वृति पाप की ओर जाती है तो वह भयंकर अलक्ष्मी बन जाती है।सात्विक रूप में वह महाविद्या, महावाणी भारती, वाक्, सरस्वती के रूप में अभिव्यक्त होती है।मूल आद्याशक्ति ही महालक्ष्मी है।

सर्वविदित है कि दिपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का धोतक है। उपनिषदों में भी कहा गया है कि एक ज्योति होता है, जो पृथ्वी की समस्त वस्तुओं से परे, ध्रुव लोक से परे, उच्च से उच्च लोकों में भी जगमगा रही है और यही वह दिव्य ज्योति होता है जो प्राणी मात्र के हृदय में भी विराजती है। दीपावली को कालरात्रि और महानिशा की संज्ञा भी दी गई है।

दिपावली पर्व पंचदिवसीय पर्व होता है। इसका आरम्भ धनत्रयोदशी से होकर भाई दूज तक चलता है। इस पंचदिवसीय पर्व की परम्पराएं आरोग्य, दीर्घायु एवं सुख समृद्धि प्राप्ति के साथ साथ पारिवारिक सामाजिक दायित्वों के निर्वहन एवं उल्लास, उमंग, हर्ष और नवीन आशाओं के सपने से ओत प्रोत होता है। धनतेरस पर यम के निमित दीपदान, चतुर्दशी पर यमतर्पण एवं दीपदान आदि अपमृत्यु से बचाव एवं दीर्घायु की प्राप्ति का धार्मिक प्रयास माना गया है। धनतेरस पर नवीन वार्तनों एवं वस्तुओं का खरीदगी की जाती है, दीपावली पर महालक्ष्मी, श्रीगणेश, कुवेर आदि देवी देवताओं के पूजन करने की परम्पराएं है, धन, सुख एवं समृद्धि प्राप्ति से प्रत्यक्षतः रूप से यह पर्व जुड़ी हुई है। गोत्रीरात्रि व्रत, अन्नकूट आदि की

परम्परा पशुपालन एवं कृषि के माध्यम से सुख समृद्धि प्राप्ति से संबंधित है।

पंचदिवसीय पर्व में पहला दिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी व्रत मनाया जाता है। इस दिन धनतेरस, धन्वन्तरी पूजा एवं प्राकट्योत्सव, नवीन वस्तुओं का क्रय, दीपदान, कुवेर पूजन और गोत्रीरात्र व्रत मनाया जाता है।

दूसरा दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष को रूप चतुर्दशी व्रत मनाया जाता है। इस दिन उबटन से स्नान, यमतर्पण, श्रीहनुमान पूजन एवं जन्मोत्सव दीपदान और छोटी दीपावली मनाया जाता है।

तीसरा दिन कार्तिक पक्ष की अमावस्या व्रत मनाया जाता है। इस दिन पितृपूजन, महालक्ष्मी पूजन, दीपमाला, लक्ष्मी उपासना, काली उपासना किया जाता है।

चौथा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा व्रत मनाया जाता है। इस दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा किया जाता है।

पांचवा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को यमुना स्नान, यमतर्पण, चित्रगुप्त पूजा, विश्वकर्मा पूजा, बहिन के घर भोजन और बहिन द्वारा भाई को टीका लगाया जाता है।
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