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किशनगंज : अब न छुपेगा कालाजार, हर गांव से उठेगी इलाज की आवाज़

समुदाय की सजगता और स्वास्थ्य विभाग की तत्परता से मिलकर कालाजार उन्मूलन का मिशन हुआ तेज

किशनगंज,28जून(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, कालाजार जैसी जानलेवा बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए दवाइयों के साथ-साथ जन-जागरूकता सबसे बड़ा हथियार है। जब तक बीमारी छुपी रहती है, यह खतरनाक रूप लेती है, लेकिन समय पर पहचान और इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो सकती है। इसी सोच को आधार बनाते हुए बहादुरगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में शनिवार “Kala-azar Key Informant (KI)” प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य था – “छुपे रोगियों की पहचान और शीघ्र इलाज के ज़रिए संक्रमण की कड़ी को तोड़ना।”

सामूहिक संकल्प: हर गांव को कालाजार मुक्त बनाना

प्रशिक्षण कार्यक्रम में MOIC डॉ. रिजवाना तबस्सुम, VBDCO डॉ. मंजर आलम, BCM अजय, VVDS मोहम्मद नवाब, पिरामल फाउंडेशन के मोनिस, विश्वजीत और अमरदीप, और WHO प्रतिनिधि सहित अनेक स्वास्थ्यकर्मी और स्वयंसेवी संगठनों ने भाग लिया। सभी ने मिलकर संकल्प लिया —

“हर रोगी तक पहुंचेगे, हर गांव को कालाजार मुक्त बनाएंगे।”

सिविल सर्जन का संदेश: रोग छुपे नहीं, इलाज जुड़े — यही असली जीत

कार्यक्रम में सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा कि कालाजार से लड़ाई अकेले स्वास्थ्य विभाग की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है। जागरूकता ही असली इलाज है। प्रशिक्षण के ज़रिए आशा कार्यकर्ता, CHO, स्वयंसेवी और स्थानीय स्वास्थ्यकर्मी यह सीख पा रहे हैं कि कैसे कालाजार के संभावित मरीजों को पहचाना जाए और उनका समय पर इलाज सुनिश्चित किया जाए।

कालाजार नियंत्रण के लिए उपलब्ध प्रमुख लाभ:

  • निःशुल्क इलाज सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर
  • ₹7100 तक की आर्थिक सहायता रोगियों को
  • पोषण योजना के तहत अतिरिक्त आहार
  • घर-घर दवा छिड़काव (IRS) और नियमित निगरानी
  • फॉलो-अप जांच से पूर्ण संक्रमण नियंत्रण

विशेषज्ञों की राय

डॉ. मंजर आलम ने कहा, समय पर पहचान और शीघ्र इलाज ही कालाजार उन्मूलन की कुंजी है। जब समुदाय जागरूक होगा, तभी संक्रमण की जड़ें टूटेंगी।”

WHO और पिरामल फाउंडेशन के विशेषज्ञों ने फील्ड में सहयोग का आश्वासन देते हुए कहा कि समुदाय और स्वास्थ्य विभाग की साझेदारी से ही यह मिशन सफल होगा।

अंत में हुआ संकल्प“कालाजार को कहो अलविदा”

कार्यक्रम के समापन पर सभी प्रतिभागियों ने संकल्प लिया कि वे अपने क्षेत्र में जाकर संभावित मरीजों की पहचान करेंगे और उन्हें इलाज से जोड़ेंगे। बहादुरगंज का यह प्रशिक्षण न केवल तकनीकी सशक्तिकरण था, बल्कि यह एक सामाजिक आंदोलन की दिशा में उठाया गया सशक्त कदम भी है।

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