किशनगंज : डिप्थीरिया के संक्रमण से बचाव के लिये जरूरी है टीकाकरण
नवजात के साथ-साथ किशोरी व गर्भवती महिलाओं के लिये भी टीकाकरण जरूरी, रोग के संबंध में समुचित जानकारी टीकाकरण से बचाव संभव
किशनगंज, 15 नवंबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, डिप्थीरिया सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। बोलचाल की आम भाषा में इसे गलघोंटू के नाम से जाना जाता है। शरीर में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता का अभाव पाते ही ये रोग पांच साल से कम उम्र के शिशुओं को अपना आसान शिकार बनाता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा डिप्थीरिया को गंभीर संक्रामक बीमारियों की सूची में शामिल किया गया है। ज्ञात हो कि इससे बचाव के लिये जन्म के बाद नवजात को डीपीटी यानि डिप्थीरिया-परटुसिस-टेटनस का टीका लगाया जाता है।जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. देवेंद्र कुमार ने बताया कि डिप्थीरिया एक संक्रामक बीमारी है। जो कोरनीबैक्टीरियम डिप्थेरी नामक जीवाणु से फैलता है। रोग के प्रभाव से बच्चों के गला, नाक व स्वर यंत्र में सूजन आ जाती है। इससे बच्चों को सांस लेने व बातचीत के दौरान दर्द के साथ-साथ अन्य तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बच्चों का हृदय व आंख भी इससे प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि छोटे उम्र के बच्चों में कमजोरी, गले में दर्द या खराश, भूख नहीं लगना या खाना निगलने में तकलीफ़ व गले के दोनों तरफ टॉन्सिल फूलने की शिकायत हो तो बिना देर किये विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना जरूरी होता है। इसमें किसी तरह की लापरवाही बच्चे के लिये जानलेवा साबित हो सकती है। रोग से बचाव के लिये अभिभावकों को अपने शिशुओं को डेढ़, ढाई व साढ़े तीन महीने पर डीपीटी का टीका के साथ-साथ 18 महीने व 5 वर्ष की उम्र में बूस्टर डोज का टीका जरूरी लगाना चाहिये. उन्होंने कहा कि संपूर्ण टीकाकरण चार्ट का अनुपालन कर शिशुओं का कई गंभीर रोगों से बचाव संभव है।सिविल सर्जन डा. कौशल किशोर ने बताया कि डिप्थीरिया की वैक्सीन एक निश्चित समय तक ही शरीर को संक्रमण से बचाने में सक्षम होता है। वैक्सीन का प्रभाव खत्म होने के बाद रोग की संभावना बनी रहती है। इसलिए केवल शिशुओं को ही नहीं बल्कि किशोरियों व गर्भवती महिलाओं को भी गलाघोंटू के संक्रमण से बचाव के लिये टीकाकरण की सलाह दी जाती है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्देशित टीकाकरण सूची के अनुसार किशोरियों को 10 व 16 साल की उम्र में टीका व गर्भवती महिलाओं के लिए पहला टीका गर्भावस्था के आरंभिक काल में व पहले टीका के एक माह बाद दूसरा टीका दिया जाता है। यदि गर्भधारण पिछली गर्भावस्था के तीन वर्ष के भीतर हुआ हो व टीडी की दो खुराक पूर्व में दी गयी है तो ऐसे मामले में बूस्टर डोज का टीका लगाया जाता। सदर अस्पताल उपाधीक्षक डा० अनवर आलम ने बताया कि डिप्थीरिया के संक्रमण से बचाव के लिये धूल-मिट्टी व ठंड से बचाव जरूरी है। धूल भरे गंदे माहौल व सीलन भरे जगह पर किसी तरह के संक्रमण के तीव्र प्रसार की संभावना होती है। इसलिये कम उम्र के बच्चों को धूल-मिट्टी के संपर्क में आने से बचाव जरूरी है। गर्भवती महिलाओं को भी इस तरह के माहौल से बचने की जरूरत होती है। ठंड से भी गले नाक व मुंह में सूजन या दर्द हो सकता है। इसलिए बढ़ते ठंड से बचाव के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले आहार व पेय को खानपान की आम आदतों में शामिल कर रोग की संभावना को नकारा जा सकता है।