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किशनगंज : टीबी है एक संक्रामक रोग लेकिन मरीजों की कतई न करें उपेक्षा।

किसी से मिलने से नहीं फैलता है टीबी का संक्रमण।

  • संक्रमित होने की स्थिति में सही समय पर कराएं सही इलाज।
  • सभी सरकारी अस्पतालों पर निःशुल्क उपलब्ध है टीबी जांच और समुचित इलाज की सुविधा।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र हर समय रोगजनक जीवाणुओं से लड़ता रहता है। लेकिन, प्रतिरक्षा तंत्र जैसे ही कमजोर होता है, तो बीमारियां हावी होने लगती हैं। ऐसी ही, बीमारियों में से एक है टीबी की बीमारी। जिसे तपेदिक या क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है। टीबी का पूरा नाम ट्यूबरक्लोसिस है, जो ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस’ नामक जीवाणु से होता है। टीबी रोग मुख्य रूप से फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है। हालांकि, टीबी का वायरस आंत, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा तथा हृदय को भी प्रभावित कर सकता है। वर्ष 1882 में 24 मार्च के दिन जर्मन चिकित्सक और माइक्रो-बायोलॉजिस्ट डॉ. रॉबर्ट कोच ने अपने शोध में पाया था कि टीबी की बीमारी का कारण ‘टीबी बैसिलस’ है। लेकिन किसी से मिलने से नहीं फैलता है टीबी का संक्रमण। इसलिये टीबी मरीजों की उपेक्षा कतई नहीं करें। उससे अपनत्व की भावना रखते हुए उसे टीबी की सही जांच और सही जगह पर इलाज कराने के लिए प्रेरित करें। किसी भी संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए सतर्क रहना जरूरी है। क्योंकि कोरोना काल के बाद से विशेषकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों से बचाव करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके साथ भीड़भाड़ वाली जगहों पर एहतियात व सुरक्षा के पैमानों को व्यवहार में लाया जाना अभी भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ऐसी ही श्वसन संबंधित संक्रामक बीमारियों में टीबी भी एक महत्वपूर्ण बीमारी है जो फेफड़ों को प्रभावित करता। सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के हवाले से संक्रमित व्यक्ति के खांसने व बोलने से निकली बूंद में मौजूद टीबी बैक्टीरिया हवा के माध्यम से स्वस्थ्य व्यक्ति तक पहुंचती है। टीबी एक ड्रॉपलेट इंफेक्शन है। अगर कोई टीबी का मरीज छींकता है, या खांसता है, तो इसके ड्रॉपलेट पॉच फीट तक जाते हैं। ऐसे में, हम मास्क लगाकर और दूरी बनाकर टीबी के संक्रमण को रोक सकते हैं, और उसे खत्म कर सकते हैं। जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ देवेंदर ने बताया कि सीडीसी के मुताबिक टीबी संक्रमण को ले कुछ मिथ्याएं भी हैं। इन मिथ्याओं की वजह से लोग टीबी ग्रसित लोगों की उपेक्षा करने लगते हैं। टीबी ग्रसित लोगों के प्रति इस तरह से उपेक्षा किया जाना उसके इलाज में भी असुविधा ही पैदा करती है। आमलोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे टीबी संक्रमण होने के सही कारणों की जानकारी लें। सीडीसी के अनुसार यह रोग हाथ मिलाने, किसी को खानपान की सामग्री देने या लेने, बिस्तर पबैठने व एक ही शौचालय के इस्तेमाल करने से बिल्कुल भी नहीं फैलता है।उन्होंने बताया कि जब एक व्यक्ति सांस लेता है तो बैक्टीरिया फेफड़ों में जाकर बैठ जाती और वहीं बढ़ने लगती है। इस तरह से वो रक्त की मदद से शरीर के दूसरे अंगों यथा किडनी, स्पाइन व ब्रेन तक पहुंच जाती है। आमतौर पर ये टीबी फैलने वाले नहीं होते हैं। वहीं फेफड़ों व गले का टीबी संक्रामक होता है जो दूसरों को भी संक्रमित कर देता है। सीडीसी के मुताबिक ट्रयूबरक्लोसिस दो प्रकार के होते हैं। इनमें एक लेंटेंट टीबी होता है जिसमें टीबी की बैक्टीरिया शरीर में मौजूद होती हैं लेकिन उनमें लक्षण स्पष्ट रूप से नहीं दिखते हैं। लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर इसका असर उभर कर देखने को मिल सकता है। वहीं कुछ स्पष्ट दिखने वाले लक्षणों से टीबी रोगियों का पता चल पाता है। भारत सहित अन्य देश अपने-अपने स्तर पर टीबी को खत्म करने के प्रयास कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक विश्व से टीबी को पूर्ण रूप से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वहीं, भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी को पूर्ण रूप से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। गौरतलब हो कि तीन सप्ताह या इससे अधिक समय से खांसी रहना, छाती में दर्द, कफ में खून आना कमजोरी व थका हुआ महसूस करना, वजन का तेजी से कम होना, भूख नहीं लगना, ठंड लगना, बुखार का रहना, रात को पसीना आना इत्यादि। ये लक्षण दिखें तो टीबी का जांच अवश्य करायें।

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