किशनगंज : नवरात्रि के तीसरे दिन नव दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की होती है पूजा अर्चना
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
किशनगंज, 17 अक्टूबर (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, नवरात्रि के तीसरे दिन नव दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघण्टा देवी की पूजा का विधान है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का यह रूप शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रघण्टा देवी की पूजा करने से आपके तेज और प्रताप में वृद्धि होती है और समाज में आपका प्रभाव बढ़ता है। देवी का यह रूप आत्मविश्वास में वृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। मां दुर्गा का यह स्वरूप अलौकिक तेज वाला और परमशक्तिदायक माना गया है। मंगलवार को महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि माता के रूप में उनके मस्तक पर अर्द्धचंद्र के आका का घंटा सुशोभित है, इसलिए देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है। मां के इस रूप की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पहले उठकर करनी चाहिए। गुरु साकेत ने बताया कि मां की पूजा में लाल और पीले फूल का प्रयोग किया जाता है। उनकी पूजा में शंख और घंटों का प्रयोग करने से माता प्रसन्न होकर हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। अष्ट भुजाओं वाली मां चंद्रघण्टा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है और उनका वाहन सिंह है। उनकी अष्टभुजाओं में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं। उनके गले में सफेद फूलों की माला और सिर पर रत्नजड़ित मुकुट शोभायमान है। गुरु साकेत ने बताया कि मां चंद्रघण्टा सदैव युद्ध की मुद्रा में रहती हैं और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं। मां चंद्रघण्टा की पूजा में केसर की बनी खीर का भोग लगाना सबसे अच्छा माना जाता है। मां के भोग में दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाने की परंपरा है। आप दूध की बर्फी और पेड़े का भी भोग लगा सकते हैं। मां चंद्रघण्टा की पूजा में लाल रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है। लाल रंग शक्ति और वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस रंग के वस्त्र धारण करने से आपके धन समृद्धि में वृद्धि होती है और आपके परिवार में संपन्नता आती है। उन्होंने बताया कि नवरात्रि के तीसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और फिर पूजा के स्थान को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें। उसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करके मां के चंद्रघण्टा स्वरूप का स्मरण करें। घी के 5 दीपक जलाएं और फिर मां को लाल रंग के गुलाब और गुड़हल के फूल अर्पित करें। फूल चढ़ाने के बाद रोली, अक्षत और अन्य पूजन सामिग्री चढ़ाएं और मां का पूजा मंत्र पढ़ें। उसके बाद कपूर और घी के दीपक से माता की आरती उतारे और पूरे घर में शंख और घंटों की ध्वनि करें। पूजा के वक्त शंख और घंटी का प्रयोग करने से माहौल में सकारात्मकता बढ़ती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। पूजा के बाद मां को केसर की खीर का भोग लगाएं और मां से क्षमा प्रार्थना करके पूजा संपन्न करें। पूजा के बाद यदि आप चंद्रघंटा माता की कथा, दुर्गा चालीसा का पाठ करें या फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तो आपको संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है। महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। मां चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है और उनको सौभाग्य, शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।