किशनगंज : स्वस्थ शिशु, स्वस्थ समाज का आधार है: सिविल सर्जन
बच्चे के क्रियाकलाप बताते हैं उनका विकास, समझें शारीरिक और मानसिक विकास के संकेत जन्म से एक वर्ष तक शिशु के विकास की हर गतिविधि महत्वपूर्ण
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किशनगंज, 06 जनवरी (के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, शिशु का जन्म माता-पिता के लिए खुशी का सबसे बड़ा क्षण होता है। नवजात के पहले वर्ष को उसके मानसिक और शारीरिक विकास का सबसे महत्वपूर्ण काल माना जाता है। इस दौरान बच्चे की हर गतिविधि उसके विकास की कहानी बयां करती है। भूख लगने पर रोना, हंसना, खेलना, और धीरे-धीरे चलने की कोशिश करना—ये सभी संकेत उसके सही विकास को दर्शाते हैं।
महिला चिकित्सा पदाधिकारी डा. शबनम यास्मीन बताती हैं कि यह काल शिशु के पूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास की नींव रखता है। सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार के अनुसार, शुरुआती दो महीने शिशु के सिर का विशेष ध्यान रखने का समय होता है। इस अवधि में सिर पर दबाव से बचने के लिए उसे विशेष रूप से सुलाना चाहिए। दूसरे महीने में शिशु पहली बार मुस्कुराता है और आस-पास की बातों पर ध्यान देने लगता है। यह उसके मानसिक विकास का शुरुआती संकेत है। पहले महीने में शिशु करीब 20 घंटे सोता है, जबकि दूसरे महीने में उसकी नींद का समय थोड़ा नियमित होने लगता है।
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डा. अनवर हुसैन बताते हैं कि चार माह का होते-होते शिशु रंगों में भेदभाव करना शुरू कर देता है। यह उसका दृष्टि विकास दर्शाता है। इस उम्र में वह हाथ-पैर मारने और खिलौनों को दोनों हाथों से पकड़ने का प्रयास करता है। पकड़े गए खिलौनों को मुंह में डालने की कोशिश करना स्वाभाविक क्रिया है। इस समय वह गुस्से और खुशी जैसे भावों को भी व्यक्त करने लगता है। छह महीने का शिशु अपने हाव-भाव और रोने के साथ-साथ बड़बड़ाने और मुखाकृतियों के माध्यम से संवाद करने की कोशिश करता है।
डा. यास्मीन बताती हैं कि इस उम्र में शिशु अपनी पीठ से पेट पर और पेट से पीठ पर पलटना सीख जाता है। यह उसकी मोटर स्किल्स के विकास का संकेत है। नौवें महीने में शिशु धीरे-धीरे कुछ कदम चलना शुरू कर देता है, हालांकि इसे सहारे की आवश्यकता होती है। वह घुटने मोड़ने और खड़े होने के बाद बैठने जैसी गतिविधियां करता है। इस उम्र में शिशु अपनी जरूरतों और इच्छाओं को इशारों से व्यक्त करने लगता है। टाटा, बाय-बाय जैसे इशारे सीखना इसका उदाहरण है।
सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार बताते हैं कि एक साल का होते-होते शिशु के खेलने के तरीके में बदलाव आ जाता है। वह अब चीजों को उठाने, फेंकने, और दूसरों को खेल में शामिल करने लगता है। अकेले छोड़ने पर रोने की प्रवृत्ति भी विकसित होती है। इस समय वह अधिक आत्मनिर्भर हो जाता है और अपने पसंदीदा खेलों में शोर-शराबा करना पसंद करता है। शिशु के पहले वर्ष का हर पल महत्वपूर्ण है। सही पोषण और देखभाल से ही शिशु का पूर्ण विकास संभव है। माता-पिता को शिशु की हर गतिविधि पर ध्यान देना चाहिए और नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। इन संकेतों से न केवल शिशु के सामान्य विकास का आकलन किया जा सकता है, बल्कि संभावित स्वास्थ्य समस्याओं का भी समय पर पता लगाया जा सकता है।