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जीवन संवारने की बात थी तो आए घर छोड़कर, जीवन बचाने की नौबत आई तो पैदल ही चल दिए घर..

लंबी सड़को का गुमान था खुद पर ! लेकिन, मजदूरों ने पैदल चलकर ही नाप ली सड़को की लंबाई !

किशनगंज/सुमित राज यादव, जी हां ! जब परिवार पालने और जीवन-यापन करने की बात थी तो मजदूर अपने घरों और राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में चले गये।लेकिन, आज जब वैश्विक महामारी (कोविड-19) कोरोना संक्रमण को लेकर अपने अपने घरों को लौटने की होड़ लगी है तो हजारों की संख्या में मजदूर पदयात्रा औऱ साईकिल, भेंन के सहारे निकल पड़े है।विशेषकर ईंट भट्ठों में काम करने के लिए आए मजदूर अपने परिवार के साथ न चाहते हुए भी पैदल निकल पड़े है।हम बात कर रहे है भारत-नेपाल की सीमा से सटे बिहार के किशनगंज जिले के ठाकुरगंज प्रखंड से सटे दार्जिलिंग जिले के खोरीबारी थाना क्षेत्रान्तर्गत चक्करमारी-गलगलिया बॉर्डर की।जहां सैकड़ो की तादाद में मजदूर झुंड के झुंड कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर सूची बनवा रहे हैं और मेडिकल जांच करवा रहे है।वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि उनको जांच के बाद बंगाल की सीमा में प्रवेश करने दे दिया जाए।यह सिलसिला बीते कई दिनों से चल रहा है, लेकिन आज हालात कुछ ऐसे दिखे कि भीड़ को देखकर बार-बार निगाहें चुराने को दिल करता था।क्योंकि, उस भीड़ में परिवार का मुखिया अपनी सूची सौपने में लगा था तो कोई बारिश से बचने के लिए जुगाड़ में लगे थे।पैदल न चल पाने वाले मजदूर की बूढ़ी माँ भी है तो गोद मे छोटे-छोटे बच्चे भी है। जिनको बारिश से सर छुपाने की चिंता सताई जा रही थी।उनके चेहरे पर दर्द और डर दोनो महसूस किया। साथ मे खाने-पीने की समान तो पर्याप्त मात्रा में है।लेकिन, अपने घरों तक पहुँचने के लिए मजदूरों के पास इम्तिहान का सिलसिला शुरू अब हो गया है।बिहार-बंगाल की सीमा पर तैनात पश्चिम बंगाल पुलिस की टीम और स्वास्थ्य विभाग की कर्मियों द्वारा सघन जांच अभियान चलाया जा रहा है।उनके जांच के बाद पूर्ण दस्तावेज पेश करने के उपरांत मजदूरों को स्कूल में शरण दी जा रही है।जब उनके पास उनकी गाड़ी की व्यवस्था सुनिश्चित हो जाएगी तब उन्हें वहां से भेजी जाएगा।

मालिको ने नही दिया सहारा-

हाईवे के किनारे सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम तक के लोगों के लिए खिचड़ी जैसी अन्य तत्कालीन भोजन की व्यवस्था भी उनके द्वारा सुनिश्चित कर मानवता की मिशाल तो अवश्य पेश की जा रही है।लेकिन, इससे वैसे मालिको के मुँह पर करारा तमाचा भी है, जो मुसीबत में अपने मजदूरों के साथ खड़े नहीं हुए।जो लाखों रुपए की राशि तक ख़र्च करके कई अनुष्ठानों में चंदा देकर लंगर से लेकर अन्य तरीके से समाजसेवा का भाव दिखलाकर समाजसेवी कहलवाने का शौक पालते हैं और समाज मे अपनी इज्जत प्रतिष्ठा को बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास करते है।ऐसे में उनको शरणार्थियों के रूप में स्वीकार कर भोजन के साथ उनकी जरूरत का भी ख्याल रखनी चाहिए थी।सड़को पर बेबस और लाचार भीड़ देखकर लगता हैं कि मानवता आज भी ख़तरे में हैं।

अकाल अगर “अनाज” का हो, तो मानव मरता हैं !अकाल अगर “संस्कारो” का हो, तो मानवता मरती हैं !

सीमा पर घर जाने के लिए निकले मजदूरों के बच्चों की बिलखते आंसू और पेट की भूख की चिंता के साथ आँखों मे नींद और थकान मानो इनकी दंस्तान खुद बयां कर रहीं हैं।ऐसे में मानवता की मिशाल बनने वाले संस्था को भी इनकी खोज-खबर लेनी चाहिए।वैसे, हमदर्द तो सभी है।लेकिन, कुछ लोगो को मानवीय संवेदना ईश्वरीय शक्ति प्रदान होती है।जो आज उनके लिए खाना-बना रहे है और उनको खिला रहे है।जैसे ठाकुरगंज में जलकल्याण मंच मानव सेवा के साथ-साथ पशु सेवा में भी दिल से जुटे हैं।आज बोर्डर जाकर कवरेज करने के उद्देध्य तो नही निकला था।लेकिन, मन बार-बार मजदूरों के बारे में रिपोर्ट लिख़ने की सोच रहा था।लेकिन, आज अचानक बॉर्डर पर पहुँचा तो उन मजदूरों के हालात देखकर खुद को रोक नही सका।सुरक्षाकर्मियों और स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों का फ्रंट लाइन पर आकर सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के साथ सुरक्षित रखने और रहने जैसी चुनौतियां भी सामने मुँह बायें खड़ी है।ऎसे में ड्यूटी पर तैनात सभी कर्मियों को भी केवल सच टीम तहे दिल से शुक्रिया करता हैं।

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