किशनगंज : स्मैक का नशा सेहत के लिए नुकसानदेह, नशा एक सामाजिक बुराई।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, सूबे में युवा वर्ग से लेकर तमाम नशे के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। अब युवा वर्ग शराब की बजाय सूखे नशे यानी स्मैक, चरस व नशीले ड्रग्स के चंगुल में फंस रहा है। नशा हर रूप में सेहत के लिए नुकसानदेह है। यह सभी भलीभांति जानते हैं, लेकिन फिर भी युवा वर्ग से लेकर तमाम इसकी चंगुल में फंसते जा रहे हैं। हालात चुनौतीपूर्ण इसलिए भी होते जा रहे हैं कि अब युवा वर्ग शराब की बजाय सूखे नशे यानी स्मैक, चरस व नशीले ड्रग्स के चंगुल में फंस रहा है। इस नशे के दलदल में फंसने के बाद उनका कॅरियर तो बर्बाद हो रहा है, सेहत भी गंवा बैठ रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ कौशल किशोर ने बताया की स्मैक से पूरा स्नायु तंत्र प्रभावित होता है। इस नशे से व्यक्ति काफी उग्र हो जाता है और उसे लगता है कि दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान है। इसमें उसके अपराध करने की भी आशंका बनी रहती है।
काफी दिनों तक यह नशा करने के बाद व्यक्ति को अवसाद, अकेलेपन की दिक्कत होने लगती है। इससे नशा करने वाला व्यक्ति कल्पना की दुनिया में चला जाता है। ये नशा करने वाला दिमागी सुनपन और उच्च रक्तचाप की चपेट में आ जाता है। इसका असर स्नायु तंत्र पर तेजी से होता है, लेकिन अधिक सेवन से फेफड़े, किडनी, लीवर के फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया की स्मेक का नशा, जिसे हमारे समाज में एक बुराई माना जाता है, इसके कारण आज के युवा विनाश की गर्त में समा रहे हैं। समाज में नशाखोरी की प्रवृति इस कदर हावी होती जा रही कि युवा इसके कारण भविष्य को चौपट कर रहे। नशाखोरी के कारण समाज में अनुशासनहीनता बढ़ रही है। लोगों की मानसिक, शारीरिक व आर्थिक स्थिति भी बिगड़ रही है। नई पीढ़ी में तो नशाखोरी की प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन जिस तेजी से बढ़ रही है, वह युवा पीढ़ी को शिक्षा के मार्ग से विमुख कर रही है। नशाखोरी के चलते सामाजिक मर्यादाएं भंग हो रही। समाज में बढ़ रही आपराधिक प्रवृति के लिए भी सबसे ज्यादा जिम्मेदार नशाखोरी ही है।
युवाओं खासकर बच्चों में जिस तेजी से नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही, यह जानलेवा साबित हो सकती है। सिगरेट ही नहीं शराब, गुटखे से लेकर चरस, स्मैक, हेरोइन समेत नशीले इंजेक्शन व गोलियों का इस्तेमाल युवा कर रहे हैं। कम उम्र में नई चीजें के प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा का होना आम है। ऐसे में कुछ गलत साथियों की संगत किशोरों को नशे की ओर धकेल देती है। साथ ही परिवार से दूर रहने वाले किशोरों को आजादी का अहसास व पढ़ाई का दबाव भी उन्हें नशे की गिरफ्त में ले जाता है। अभिभावकों बच्चों को समय ही नहीं दे रहे। उन्हें बच्चों से बात व उनके व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों में आत्म निर्भरता और आत्म अनुशासन की आदत डालें बच्चे में खुद फैसले लेने और सही गलत में अंतर करने की क्षमता पैदा करें समय-समय पर उससे परेशानियों के बारे में पूछें और डांटने के बजाए उसकी मदद करें। टोकाटोकी के बजाए उसकी परेशानी समझने की कोशिश करें लगातार संवाद बनाए रखें, उसके दोस्तों से मिलें व उनके संबंध में जानकारी रखें। एसीएमओ डॉ सुरेश प्रशाद ने बताया की स्वस्थ जीवन के लिए नशे से दूरी जरूरी है। जो लोग भी किसी प्रकार के नशे की लत में हैं उसका तत्काल त्याग करें। किसी भी प्रकार का नशा शरीर को अंदर से कमजोर करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। नशा आर्थिक, मानसिक एवं शारीरिक रूप से मनुष्य को कमजोर करता और नशे की लत को मजबूत इच्छाशक्ति से ही छोड़ा जा सकता है। नशामुक्ति रथ लोगों को नशे के दुष्प्रभाव को लेकर जागरूक करेगा ताकि लोग इसकी लत से बच सकें और अविलंब इसका त्याग करें।