भारत और अमेरिका ने प्रौद्योगिकी संचालित समान के सहयोग युग की शुरुआत की
भारत और अमेरिका की प्रौद्योगिकी संचालित समान सहयोग के युग की शुरुआत
त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल ही में समाप्त हुई संयुक्त राज्य अमेरिका यात्रा इस अर्थ में ऐतिहासिक है कि इसने आने वाले वर्षों के लिए भारत को एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका प्रौद्योगिकी संचालित समान सहयोग के युग में प्रवेश कर रहे हैं और यह सहयोग उस यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है, जिसके बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है, “आकाश ही सीमा नहीं है।“
वास्तव में, इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है, जिन्होंने पिछले 9 वर्षों के दौरान कई गैर-परंपरागत और नयी राह दिखाने वाले अभिनव निर्णय लिए, जिनकी वजह से भारत प्रमुख क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ने में सक्षम हुआ। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका, जिसने भारत से कई वर्ष पहले अपनी अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत की थी, आज भारत को अपने भविष्य के प्रयासों में एक समान भागीदार के रूप में आमंत्रित करता है।
21 जून को वाशिंगटन स्थित विलार्ड इंटर-कॉन्टिनेंटल होटल में एक समारोह के दौरान, भारत आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला 27वां देश बन गया।
आर्टेमिस समझौता, शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए राष्ट्रों के बीच नागरिक अंतरिक्ष अन्वेषण सहयोग का मार्गदर्शन करने के लिए सिद्धांतों के एक व्यावहारिक समूह की स्थापना करता है। यह भारत को चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की खोज के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस कार्यक्रम में भाग लेने में सक्षम बनाता है। ध्यान देने योग्य है कि यह समझौता अंतरिक्ष क्षेत्र में, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स से संबंधित महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के आयात से जुड़े प्रतिबंधों में छूट देने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बाजारों के लिए प्रणाली विकसित करने और नवाचार करने में लाभ होगा। यह अन्य वैज्ञानिक कार्यक्रमों में भारत को संयुक्त रूप से भागीदार बनने की सुविधा प्रदान करेगा, मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों समेत विभिन्न गतिविधियों में दीर्घकालिक सहयोग के लिए सामान्य मानकों तक पहुंच की अनुमति देगा और माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम, अंतरिक्ष सुरक्षा आदि रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिका के साथ मजबूत भागीदारी की सुविधा प्रदान करेगा।
आर्टेमिस समझौता एक गैर-बाध्यकारी समझौता है, जिसके तहत कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं है। इस समझौते पर 13 अक्टूबर, 2020 को आठ संस्थापक राष्ट्रों -ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़मबर्ग, यूएई, यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका ने हस्ताक्षर किए थे। इसके सदस्यों में जापान, फ्रांस, न्यूजीलैंड, यूके, कनाडा, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन जैसे पारंपरिक अमेरिकी सहयोगी देश शामिल हैं, जबकि रवांडा, नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देश नए भागीदार हैं।
आइए, यह समझने की कोशिश करें कि आर्टेमिस समझौते में शामिल होने से भारत को क्या लाभ होगा। एक अनुमान के मुताबिक, अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए वैश्विक सरकारी खर्च पिछले साल लगभग 103 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। लगभग 62 बिलियन डॉलर के साथ, अमेरिकी सरकार ने अकेले कुल धनराशि का आधे से अधिक खर्च किया। अमेरिका के बाद चीन ने लगभग 12 बिलियन डॉलर खर्च किये, जो इस समूह का हिस्सा नहीं है। रूस 3.4 बिलियन डॉलर के वार्षिक खर्च के साथ 5वें स्थान पर है। भारत 1.93 बिलियन डॉलर के वार्षिक बजट के साथ 7वें स्थान पर है।
आइए, हम वर्ष 2022 में ऑर्बिटल लॉन्च की संख्या के आधार पर विभिन्न देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की तुलना करते हैं। पेलोडस्पेस वेबसाइट कहता है कि पिछले साल 186 ऑर्बिटल लॉन्च के प्रयास किये गए, जिनमें अमेरिका ने 76, चीन ने 62, रूस ने 21 और भारत ने 5 ऑर्बिटल लॉन्च किए। अब, हम तीसरे प्रमुख मानक – अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या – की तुलना करते हैं। उपग्रहों की निगरानी करने वाली वेबसाइट, “ऑर्बिटिंग नाउ” के अनुसार, 4 मई 2023 तक, विभिन्न पृथ्वी कक्षाओं में 7,702 उपग्रह सक्रिय थे। अमेरिका के पास अधिकतम 2,926 सक्रिय उपग्रह हैं, इसके बाद चीन – 493, यूके – 450, रूस – 167 आते हैं, जबकि भारत 58 उपग्रहों के साथ 8वें स्थान पर है।
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम छह दशक पुराना है और इसके सात साल बाद, 1969 में इसरो की स्थापना हुई। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग इसरो की पहचान रही है तथा इसने रूस की रुस्कोस्मोस और यूरोप की ईएसए जैसी विभिन्न लॉन्च एजेंसियों के साथ सहयोग किया है। इसरो ने 34 से अधिक देशों के 385 से अधिक विदेशी उपग्रह लॉन्च किए हैं।
2014 से पहले, इसरो कभी-कभार उपग्रह लॉन्च करता था, लेकिन पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की शुरुआत के बाद, आज इसरो लगभग 150 निजी स्टार्टअप के साथ काम कर रहा है। सुदूर अंतरिक्ष मिशनों के लिए अरबों डॉलर की आवश्यकता होती है और इससे पूरी मानवता लाभान्वित होती है। इसलिए, यह जरूरी है कि राष्ट्र मानवता के लाभ के लिए अपने संसाधनों का उपयोग करें। बिना समय गंवाए, समान विचारधारा वाले देशों को आगे आना होगा, सहयोग करना होगा और एक-दूसरे के लाभ और अनुभवों पर काम करना होगा, जैसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जोर देकर कहा है, “हमें अलग-थलग होकर काम नहीं करना चाहिए!”।
अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत-अमेरिका के बीच नए सहयोग का पहला बड़ा स्पष्ट लाभ देखने के लिए हमें शायद लंबे समय तक इंतजार नहीं करना होगा। अगले साल एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) भेजा जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठक के बाद व्हाइट हाउस में इसकी पुष्टि कर चुके हैं।
पीएम मोदी की मौजूदा यात्रा के दौरान भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि नासा अपने एक सुविधा केंद्र में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को “उन्नत प्रशिक्षण” प्रदान करेगा।
दोनों पक्षों के समान, अन्य क्षेत्रों के लिए भी परस्पर लाभ में तेजी देखने को मिलेगी। अमेरिकी मेमोरी चिप कंपनी, माइक्रोन टेक्नोलॉजी, इंक ने गुरुवार को कहा कि वह भारत के गुजरात में एक नई चिप असेंबली और परीक्षण सुविधा इकाई के लिए 825 मिलियन डॉलर तक का निवेश करेगी, जो देश में इसकी पहली निर्माण-इकाई होगी। केंद्र सरकार और गुजरात राज्य सरकार के सहयोग से इस सुविधा केंद्र में 2.75 बिलियन डॉलर का कुल निवेश किया जाएगा।
राष्ट्रपति बाइडेन और पीएम मोदी संयुक्त भारत-अमेरिका क्वांटम सहयोग व्यवस्था की स्थापना पर भी सहमत हुए, ताकि उद्योग, शिक्षा जगत और सरकार के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाया जा सके तथा एक व्यापक क्वांटम सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी समझौते की दिशा में काम किया जा सके। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और क्वांटम प्रौद्योगिकियों के संयुक्त विकास और व्यवसायीकरण और भारत में उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग (एचपीसी) सुविधाओं को विकसित करने के क्रम में सार्वजनिक-निजी सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए; यूएस-भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी एकमुश्त निधि के तहत 2 मिलियन डॉलर का अनुदान कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है।
राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत को एचपीसी प्रौद्योगिकी और स्रोत कोड के अमेरिकी निर्यात में बाधाओं को कम करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस के साथ काम करने की अपनी सरकार की प्रतिबद्धता भी दोहराई। अमेरिकी पक्ष ने भारत के उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (सी-डैक) के अमेरिकी एक्सेलरेटेड डेटा एनालिटिक्स और कंप्यूटिंग (एडीएसी) संस्थान के साथ सहयोग की शुरुआत के समर्थन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने का वादा किया। साथ ही, अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) और भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा उभरती प्रौद्योगिकियों में 35 अभिनव संयुक्त अनुसंधान सहयोग को वित्त पोषित किया जाएगा।
राष्ट्रपति बाइडेन ने एआई पर वैश्विक साझेदारी के अध्यक्ष के रूप में भारत को अमेरिकी समर्थन का आश्वासन दिया। दोनों राजनेताओं ने गूगल के अपने 10 बिलियन डॉलर के भारत डिजिटलीकरण फंड के माध्यम से शुरुआती चरण के भारतीय स्टार्टअप तथा अन्य में निवेश जारी रखने के इरादे की सराहना की।
भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) प्रोटॉन इम्प्रूवमेंट प्लान-II एक्सेलेरेटर की लॉन्ग बेसलाइन न्यूट्रिनो फैसिलिटी के सहयोगात्मक विकास के लिए अमेरिकी ऊर्जा विभाग (डीओई) की फर्मी नेशनल लेबोरेटरी को 140 मिलियन डॉलर का योगदान देगा, जो अमेरिका की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सुविधा केंद्र होगी।
स्वास्थ्य क्षेत्र में, दोनों देशों के अनुसंधान संस्थान किफायती कैंसर प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों पर सहयोग करेंगे, जिनमें एआई सक्षम निदान और पूर्वानुमान भविष्यवाणी उपकरणों का विकास और मधुमेह अनुसंधान शामिल होंगे।
भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र को गति देते हुए एयर इंडिया 34 बिलियन डॉलर में 220 बोइंग विमान खरीदेगी। भारत-अमेरिका संबंधों के सबसे अच्छे होने का सबसे स्पष्ट संकेत यह है कि जैसा पीएम मोदी ने अमेरिकी कांग्रेस के अपने संबोधन में उल्लेख किया था, अमेरिका आज न केवल भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है; बल्कि रक्षा क्षेत्र में सहयोग, भरोसेमंद संबंध को रेखांकित करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका की यात्रा के अंत में जारी संयुक्त वक्तव्य के समापन वाक्य का निष्कर्ष के तौर पर उल्लेख किया जा सकता है, “हमारी (भारत और अमेरिका) महत्वाकांक्षाएं और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचने की हैं…।”
****