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किशनगंज में नवविवाहिताओं ने उत्साहपूर्वक मनाया मधुश्रावणी पर्व

पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख-समृद्धि के लिए नवविवाहिताएं कर रही हैं विशेष पूजन

किशनगंज,15जुलाई(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, श्रावण मास की पवित्रता और पारंपरिक आस्था का प्रतीक मधुश्रावणी पर्व मंगलवार से जिले में हर्षोल्लास के साथ आरंभ हो गया है। यह पर्व विशेष रूप से नवविवाहित महिलाओं के लिए समर्पित होता है, जो वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और पति की लंबी उम्र के लिए यह विशेष व्रत करती हैं। पर्व का समापन आगामी 27 जुलाई को होगा।

मिथिलांचल की सांस्कृतिक झलक

वार्ड 30 स्थित डुमरिया, वार्ड 24 स्थित रूईधासा वाजपेई कॉलोनी सहित विभिन्न मोहल्लों में मधुश्रावणी की परंपरा पूरे विधि-विधान के साथ निभाई जा रही है। नवविवाहिता महिलाएं पारंपरिक वस्त्र पहनकर सुबह से ही पूजन में जुटी हुई हैं। उनके साथ आसपास की महिलाएं भी श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना कर रही हैं।

व्रत की विशेषता और धार्मिक मान्यता

इस पर्व में भगवान शिव-पार्वती और मनसा देवी की पूजा की जाती है। खास बात यह है कि बासी फूलों से मनसा देवी को अर्पण किया जाता है, जो इस व्रत की एक अनूठी परंपरा है। नवविवाहिता कृति कुमारी ने बताया, “यह जीवन का पहला महत्वपूर्ण व्रत होता है। इससे वैवाहिक जीवन में समर्पण और संस्कार की अनुभूति होती है।”

पुजारी जयहिंद मिश्रा ने बताया, “जिस कन्या का विवाह जिस वर्ष होता है, उसी वर्ष आने वाले पहले मधुश्रावणी पर्व में उसे यह व्रत करना होता है। पूजा मायके में होती है, लेकिन पूजन सामग्री और भोजन ससुराल से मंगाने की परंपरा निभाई जाती है, जो दोनों परिवारों के बीच संबंधों को और सशक्त बनाती है।”

उत्साह और श्रद्धा का माहौल

पूरे किशनगंज में नवविवाहिताओं के बीच इस पर्व को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है। धार्मिक भक्ति, पारिवारिक जुड़ाव और सामाजिक परंपराओं का संगम इस पर्व को विशिष्ट बनाता है। महिलाएं पारंपरिक गीत गा रही हैं और कथा श्रवण कर रही हैं। पूजा के दौरान सावधानीपूर्वक रीति-रिवाजों का पालन किया जा रहा है।

गौर करे कि मधुश्रावणी केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि नवविवाहिताओं के जीवन में एक सांस्कृतिक संस्कार की शुरुआत भी है। यह पर्व किशनगंज में पारंपरिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है, जिससे मिथिलांचल की समृद्ध संस्कृति की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

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