-महिलाओं ने मुख्यमंत्री सचिवालय को अपना मांग पत्र सौंपा
कुणाल कुमार/- महिलाओं को राजनीति में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी देने की उठी आवाज, अपनी मांगों को लेकर बिहार महिला समाज समाज द्वारा किया गया विधान सभा का घेराव
नारी शक्ति वंदन विधेयक या महिला आरक्षण विधेयक के नाम पर महिलाओं के साथ धोखा कर रही है मोदी सरकार
आज 25 मार्च को बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा
बिहार विधान सभा का घेराव किया गया। बिहार महिला समाज ने लोगों से अपील की कि वे मोदी सरकार की महिला विरोधी नीति और महिलाओं को राजनीतिक हिस्सेदारी से वंचित करने के खिलाफ आपस में एकजुट हों।
यह जुलूस मोदी सरकार द्वारा आरक्षण के नाम पर महिलाओं के साथ किया गया धोखा और देश में महिलाओं की सुरक्षा, न्याय, लैंगिक समानता, रोजगार, शिक्षा ,स्वास्थ्य जैसे तमाम मुद्दे पर केंद्रित रहा। जुलूस 11 बजे दिन में बिहार विधान सभा से राम गुलाम चौक से प्रस्थान किया, जहां जुलूस में शामिल सभी महिलाओं ने एकजुट होकर परिसीमन, जनगणना जैसी शर्तों को हटाने और महिलाओं को राजनीति में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी देने की पुरजोर मांग की। अपनी मांगों को लेकर आज एक प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री सचिवालय को अपना मांग पत्र सौंपा
बता दें कि हाल ही में मोदी सरकार द्वारा संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण के लिए, नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 यानी संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम, 2023 पेश किया गया है। इस अधिनियम के तहत, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, और दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी, लेकिन इसे तभी लागू किया जाएगा जब जनगणना के आंकड़ों और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होगी। बिहार महिला समाज की अध्यक्ष निवेदिता झा का कहना है कि दरअसल मोदी सरकार की मंशा महिलाओं को संसद में आरक्षण देने की नहीं है। आर एस एस और बीजेपी अपने विचार में ही महिला विरोधी रही हैं। बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि महिलाओं को राजनीति में समुचित भागीदारी मिले। संसद द्वारा पारित नारी शक्ति वंदन विधेयक की राह में अभी कई रोड़े हैं। इस बिल में कहा गया है कि जनगणना के आंकड़ों और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही इसके प्रावधान लागू हो सकेंगे इतिहास गवाह है कि महिला आरक्षण के मुद्दे पर पूर्व सांसद गीता मुखर्जी ने आंदोलन की नींव रखी थी। उन्होंने सदन के भीतर और बाहर इस मुद्दे पर लंबा संघर्ष किया। आज मोदी सरकार महिलाओं के संघर्ष को खत्म करने पर आमदा है। मगर संसद में महिलाओं की भागीदारी के आंकड़े आज भी बेहद निराशाजनक है। लोकसभा में इस समय 82 और राज्यसभा में सिर्फ 31 महिला सदस्य हैं। यानी, दोनों सदनों में महिलाओं की हिस्सेदारी 15 फीसदी से भी कम है। वर्ष 1951-52 में जब पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, तब सिर्फ 6.9 फीसदी महिलाएं ही सांसद बनकर आई थीं.
चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में 726 महिलाओं ने लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन इनमें से सिर्फ 78 ही जीती थीं. यानी, 10 फीसदी के आसपास। राजनीति में महिलाओं को जबतक आरक्षण नहीं मिलेगा उनकी भागीदारी नहीं हो पाएगी। मोदी सरकार की नीयत में खोट है। बीजेपी महिलाओं को आरक्षण से दूर रखना चाहती है। बिहार महिला समाज मोदी सरकार और बीजेपी के इस मंशा का फर्दाफाश करेगी।
बिहार महिला समाज की मांग है कि –
1. महिला आरक्षण बिल को लागू करने के लिए परिसीमन, जनगणना जैसी शर्तों को हटाया जाए।
2. मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी की गारंटी करो और 200 दिनों के काम की गारंटी दी जाए।
3. महिलाओं को रोजगार देने की गारंटी दी जाए।
4. राज्य की सभी महिलाओं को प्रत्येक माह 5000 हजार राशि दी जाए।
5. महिलाओं और बच्चियों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ बने कानून का अनुपालन सख्ती से हो और फास्ट ट्रैक कोर्ट के तहत मामलों का निपटारा हो।
बता दें कि जुलूस राम गुलाम चौक से निकलकर विधान सभा के लिए आगे बढ़ा। इस अवसर पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात थी। जे पी गोलंबर के पास उन्हें रोक दिया गया। जुलूस में शामिल महिलाएं अपने मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने की मांग कर रही थीं। उनके द्वारा मुख्यमंत्री के नाम एक मेमोरेंडम भी सौपा गया।
जुलूस में बिहार महिला समाज की महासचिव राजश्री किरण, उपाध्यक्ष अनिता मिश्रा, पूर्व एमएलसी उषा साहनी, कोषाध्यक्ष चन्दना झा, प्रीति झा, रिंकू कुमारी, ललिता कुमारी, अनिता शर्मा, सीता देवी, देवकी, शगुफ्ता रसीद, इबराना नाज , सबीना खातून, नीलू फातिमा, खूशबू सहित कई सारे युवा शामिल हुए।