किशनगंज : जिले में स्तनपान को बढ़ावा देने में आंगनबाड़ी सेविकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका : डीपीओ
गोदभराई हो या गृहभ्रमण आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गर्भवती व धातृ महिलाओं को नियमित रूप से करती हैं प्रेरित, जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों पर विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से महिलाओं को किया जा रहा है जागरूक

स्तनपान से होने वाले फ़ायदें :
- शिशुओं की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि।
- शिशु मृत्यु दर में कमी डायरिया एवं निमोनिया के साथ कई गंभीर रोगों से करता।
- शिशुओं का सम्पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास।
किशनगंज, 03 अगस्त (के.स.)। धर्मेंद्र सिंह, शिशुओं को बीमारी से दूर रखने का सबसे कारगर तरीका है स्तनपान। जिससे शिशु के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता रहता है। इसके प्रति महिलाओं को जागरूक करने के लिए प्रत्येक साल स्तनपान सप्ताह का आयोजन किया जाता है। जिसमें एक से सात अगस्त तक विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर जागरूकता फैलाई जाती है। इसी क्रम में एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) अंतर्गत सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी विश्व स्तनपान सप्ताह के तहत गर्भवती व धातृ महिलाओं को स्तानपान के संबंध में जागरूक करने के लिए गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। 07 अगस्त को विशेष समारोह के तहत गर्भवती माताओं की गोदभराई की रस्म निभाई जाएगी। इस विश्व स्तनपान सप्ताह को लेकर जिले में स्वास्थ्य विभाग एवं आईसीडीएस द्वारा शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके महिलाओं को स्तनपान के लिए जागरूक किया जा रहा है। साथ ही साथ उन्हें भी बताया जा रहा है कि नवजात शिशुओं को जन्म के 1 घंटे के अंदर से लेकर 6 महीने तक लगातार सिर्फ मां का दूध हीं पिलाएं। इससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। यह दस्त के साथ-साथ कुपोषण एवं कई अन्य बीमारियों से लड़ने में अहम भूमिका निभाता है। स्तनपान के संबंध में जिला प्रोग्राम पदाधिकारी जया मिश्रा ने बताया अभी विश्व स्तनपान सप्ताह चल रहा है। एक अगस्त को शुरू यह सप्ताह 07 अगस्त तक चलेगा। इसे लेकर जिले में तमाम तरह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। विश्व स्तनपान सप्ताह के अलावा भी पूरे साल आंगनबाड़ी केंद्रों पर लाभार्थी महिलाओं को शिशुओं को स्तनपान कराने के लिए प्रेरित किया जाता है। विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान नवजात स्वास्थ्य में स्तनपान की भूमिका के प्रति जागरूकता प्रदान कर सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाया जाता है। लोगों को बताया जाता है कि जन्म के पहले घंटे में स्तनपान शुरू करने वाले नवजात शिशुओं में मृत्यु की संभावना 20 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसके साथ ही पहले छह महीने तक केवल स्तनपान करने वाले शिशुओं में डायरिया एवं निमोनिया से होने वाली मृत्यु की संभावना 11 से 15 गुना तक कम हो जाती है। स्तनपान करने वाले शिशुओं का समुचित ढंग से शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है एवं वयस्क होने पर उसमें गैर संचारी (एनसीडी) बीमारियों के होने की भी संभावना कम होती है। साथ ही स्तनपान कराने वाली माताओं में स्तन एवं ओवरी कैंसर होने का खतरा भी नहीं होता है। सिविल सर्जन डा. कौशल किशोर ने बतया कि जिले के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में लोगों को स्तनपान के महत्व के बारे में बताया जाता है। जो जानकारी दी जाती है, उसे लोगों को ध्यान में रखना चाहिए। जन्म के एक घंटे के अंदर ही बच्चे को मां का दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए। मां का यह गाढ़ा पीला दूध बच्चों के लिए अमृत के समान होता है। बच्चे के सर्वांगीण शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जन्म से लेकर छह माह तक सिर्फ मां का दूध पिलाना चाहिए। इससे बच्चा न सिर्फ शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होता है, बल्कि उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है जो कि उसका बीमारियों से बचाव करता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने पर अगर बच्चा बीमार भी पड़ जाता है तो वह उससे आसानी से उबर जाता है। इसलिए बच्चे के जन्म के बाद छह माह तक माताओं को स्तनपान कराने पर जोर देना चाहिए। महिला चिकित्सा पदाधिकारी डा. शबनम यास्मिन ने बताया कि बच्चे के जन्म के छह माह तक तो सिर्फ मां का ही दूध पिलाना चाहिए। इसके बाद बच्चे को पूरक आहार, जैसे कि खिचड़ी, खीर इत्यादि देनी चाहिए। पूरक आहार देने के बाद भी बच्चे को दो साल तक मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए। तभी बच्चे का सर्वांगीण शारीरिक और मानसिक विकास हो पाता है। साथ ही स्वस्थ शरीर का भी निर्माण होता है। इसलिए, स्तनपान कराने वाली सभी माताओं को पुराने ख्यालातों और अवधारणाओं से बाहर आकर दो वर्षों तक अपने शिशु को स्तनपान कराना चाहिए।