गांधी की अर्थनीति हजारो वर्षो से चली आ रही भारत की पंरपरा गत ग्रामीण अर्थ व्यव्यवस्था पर आधारित है

रीता सिंह :-स्वावलम्बन जिनकी कुंजी थीं।जहाँ समाज के हर वर्ग को जरूरी काम की जिम्मेवारी निर्धारित थीं औऱ उन्हें अपने कार्यो में पूर्ण दक्षता हासिल थी ।जहाँ किसान आने मेहनत से अन्न ,दूध ,फल और सब्जि उठाकर गाँव का पालन करता दिखता था ।जहाँ वैद,यो ने जिम्मे आयुर्वेदिक ,औऱ प्राकृतिक चिकित्सा की पूरी जिमेवरिया थी ।पीपल की छांव में हमारे बच्चे आध्यायात्मिक ,नैतिक और बुनियादी शिक्षा पाते थे । चौपालों में बैठकर हम पंचायतो से न्याय और पाते थे ।पंचो को जहा परमेश्वर का दर्जा हासिल था।वहा आपदाओं से निपटने के भी स्वनिर्मित तरीके थे । गाँव एक स्वतंत्र और आत्म निर्भर इकाई थी ।वह किसी राज्य और केंद्र पर आश्रित नही था।धनोपार्जन की जहा गलाकाट प्रतियोगिता नही थी ।’सन्तोषम, परम, सुखम,जहाँ का मूल मंत्र था ।पर औधोगिक क्रांति से पैदा विन्ध्वनस्करी ,शैतानी प्रगति ,’ ने गांधी के भारतीयअर्थ व्यव्यवस्था को पूरी तरह चौपट औऱ समाजिक ताने -बाने को छिन्न भिन्य कर दिया ।गांधी का चरखा प्रतीक था छोटी मशीन का कुटिल और ग्रामीण उधोग का रीता सिंह की रिपोर्ट