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किशनगंज : कैदियों के संरक्षण और सुविधाओं पर मानवाधिकार व न्याय व्यवस्था मौन।

डिस्ट्रिक्ट जेल जमुई, मधेपुरा, समस्तीपुर व सब जेल बाढ़, पटना सिटी में कैदी एक-दूसरे पर सोने को मजबूर।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, बिहार में शराबबंदी कानून लागू हैं। सख्ती से पालन में पुलिस-प्रशासन कोई कसर नहीं छोड़े हुये हैं। शराब तस्करी व सेवन में कोई कमी नहीं आ रही हैं यहां कहें तो सबसे अधिक गिरफ्तारी और छापेमारी इसी मामले में किया जा रहा हैं। आलम यह है की बिहार के जेलों में कैदियों को ठूंस-ठूंस कर रखा जा रहा हैं। कैदी एक दूसरे पर सोने को मजबूर हैं। कैदियों को सांस लेना मुश्किल हो गया हैं, या यूं कहें तो संक्रमण का खतरा बना हुआ हैं। ऐसी बात नहीं हैं की गृह विभाग के अधीन कारा विभाग बेखबर है। लेकिन कैदियों के संरक्षण के लिए काम कर रहा मानवाधिकार, न्याय व्यवस्था का मौन रहना संविधान व मौलिक अधिकारों पर अघात साबित होगा। बिहार में सेंट्रल जेल, जिला जेल, सब डिवीजनल जेल एवं ओपन मिलाकर कुल 59 जेल है। राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल (एनपीआईपी) के आकड़े पर गौर करें तो पटना में आदर्श केन्द्रीय कारा बेउर सहित 6 जेल हैं। इसमें केन्द्रीय कारा बेऊर में कैदियों के रहने की क्षमता 2360 है, जबकि वर्तमान में 6107 कैदी रह रहे हैं। जिसके कारण कैदियों के दैनिक क्रियाक्रम पर असर पड़ना लाजमी हैं। सोने की बात छोड़िए करवट लेना भी कष्टदायक होता होगा। सब डिवीजनल जेल पटना सिटी और बाढ़ का तो बहुत बुरा हाल हैं। पटना सिटी जेल का क्षमता मात्र 37 कैदियों के रखने का है जबकि वर्तमान में 175 कैदी हैं। इसी तरह बाढ़ जेल की क्षमता 173 की हैं और वर्तमान में 571 कैदी हैं। इस तरह तो एक कैदी-दूसरे कैदी पर सोने को मजबूर होते होंगे। सब जेल दानापुर में कैदियों की क्षमता 87 की है वहीं आज 210 कैदी हैं। मसौढ़ी जेल की क्षमता जहां 253 की है वहीं 361 कैदी रह रहे हैं। फुलवारीशरीफ कैंप जेल का हाल बेहतर है यहां 700 कैदियों के रहने की क्षमता है उससे मात्र 14 अधिक 714 कैदी रह रहे हैं। सूबे के अन्य जेलों का हाल भी बहुत बुरा हैं। यहां कैदी मानव या इंसान के रूप में नहीं रहते बल्कि जानवरों से भी बदतर स्थिति में रहने को मजबूर हैं। डिस्ट्रिक्ट जेल जमुई में कैदियों के रहने की क्षमता 188 है जबकि वर्तमान में 824 कैदी रह रहे हैं। वहीं जिला जेल मधेपुरा में कैदियों की क्षमता 182 है वहीं वर्तमान में 635 कैदी रह रहे हैं। कल्पना कीजिए कुम्भ के मेले में ऐसी भीड़ नहीं होती होगी। इसी तरह क्षमता से अधिक सीतामढ़ी जेल का हैं यहां कैदियों के रहने की क्षमता 578 है वहीं 1996 कैदी को रखा गया हैं। नवादा जेल की क्षमता 614 की है जबकि 1884 कैदियों को रखा गया हैं। आरा जेल की क्षमता 1195 की है वहीं 2377 कैदी हैं। औरंगाबाद जेल की क्षमता 309 की जबकि तीन गुणा से अधिक 979 कैदियों को रखा गया हैं। बांका जेल की क्षमता 732 की है और वर्तमान में कैदियों की संख्या 1036 है। इसी तरह बेगुसराय की क्षमता 1026 है वहीं 2083 कैदी हैं। कैमुर जेल की क्षमता 355 है वहीं कैदियों की संख्या 771 हैं। बिहारशरीफ जेल की क्षमता 739 है वहीं कैदी 1319 हैं। छपरा जेल में कैदियों के रहने की क्षमता 931 है जबकि 2434 कैदी हैं। दरभंगा जेल की क्षमता 550 है वहीं 1227 कैदी रह रहे हैं। गोपालगंज जेल की 1100 है वहीं 1372 कैदी हैं। हाजीपुर जेल में 2186 कैदी रखे गये है जबकि क्षमता 1141 की हैं। खगड़िया जेल की क्षमता 800 की है वहीं 1409 कैदियों को रखा गया हैं। इसी तरह लखीसराय डिस्ट्रिक्ट जेल की क्षमता 571 की है जबकि वहां 840 कैदी को रखा गया हैं ।मधुबनी जेल की क्षमता 819 की है जबकि वहां 1240 कैदी हैं।सहरसा जेल की क्षमता 557 की है जबकि जबकि कैदियों की संख्या 970 हैं। सासाराम जेल की क्षमता 1278 है वहीं इसमें 1949 कैदी हैं। सीवान जेल में 1296 कैदी है जबकि क्षमता  684 की है। सुपौल जेल की क्षमता 534 है जबकि 1054 कैदियों को रखा गया हैं। सेंट्रल जेल बेऊर की हालत तो आप जान ही चुके है। अन्य सेंट्रल जेलों में भी क्षमता से अधिक कैदियों को रखा जा रहा हैं। सेंट्रल जेल गया में कैदियों के रखने की क्षमता 2606 है जबकि 3479 कैदियों को रखा गया है। इसी तरह मोतीहारी सेंट्रल जेल की क्षमता 2503 है जबकि 3423 कैदियों को रखा गया हैं। सेंट्रल जेल पुर्णिया की क्षमता 1198 है वहीं कैदी 1950 हैं। शहीद जुब्बा साहनी भागलपुर सेंट्रल जेल की क्षमता 1962 है वहीं इसमें 2538 कैदी हैं। वहीं शहीद खुदीराम बोस सेंट्रल जेल की बात करें तो इसमें कैदियों के रहने की क्षमता 2135 है जबकि 3899 कैदियों को रखा गया हैं। वही किशनगंज जेल की बात करे तो इसमें कैदियों की रहने की क्षमता 607 है जिसमे मात्र 422 कैदियों को रखा गया हैएनपीआईपी की रिपोर्ट से तो यह स्पष्ट हो चुका है की बिहार के जेलों में बंद कैदियों की हालत कोई इंसान या मानव जैसा नहीं है बल्कि जानवरों से भी बदतर हैं। कैदियों के संरक्षण और सुविधाओं के लिए अनुमंडल से लेकर जिला और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक कमिटी गठित हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी जेलों का निरीक्षण और सुविधाओं का समीक्षा करती हैं। संबंधित जिलाधिकारी और न्यायिक दंडाधिकारी को प्रतिमाह जेल का भौतिक निरीक्षण करना होता है। इसी तरह डिस्ट्रिक्ट जज को तीन माह एवं हाईकोर्ट के जज को 6 माह में एक बार जेल का भौतिक निरीक्षण करने की बातें हैं। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने भी कहां है की शराबबंदी कानून को लेकर न्यायालय पर बोझ बढ़ा हैं।

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