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माननीय मंत्री, स्वास्थ्य विभाग एवं विधि विभाग, बिहार सरकार श्री मंगल पांडेय द्वारा आज ज्ञान भवन, पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में जिलाधिकारी, पटना डॉ. त्यागराजन एस.एम. की उपस्थिति में पटना जिला के सभी 23 प्रखंडों में श्रवणश्रुति कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

त्रिलोकी नाथ प्रसाद/ इस अवसर पर कार्यपालक निदेशक, राज्य स्वास्थ्य समिति श्री सुहर्ष भगत; अपर सचिव, स्वास्थ्य विभाग श्री वैभव चौधरी एवं अन्य अधिकारी भी उपस्थित थे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए माननीय मंत्री ने कहा कि गया जिले में श्रवणश्रुति की अद्भुत पहल ने उन बच्चों के लिए एक जीवनरेखा का काम किया जो जन्म से ही सुन नहीं सकते थे। इसे डॉ. त्यागराजन एस.एम. (गयाजी के तत्कालीन जिलाधिकारी) ने शुरू किया। वे वर्तमान में पटना के जिलाधिकारी हैं। इसे वैश्विक स्तर पर सराहा गया। बच्चों में बहरेपन की जांच, उपचार और सर्जरी की पहल को लेकर गया जिला में चलाये गये श्रवण श्रुति कार्यक्रम को नेशनल समिट ऑन बेस्ट प्रैक्टिसेज के लिए चयनित किया गया। यह योजना उन बच्चों के लिए थी जो जन्म से या बचपन में सुन नहीं सकते थे। इसका उद्देश्य बहुत स्पष्ट था – जल्दी पहचान, सटीक इलाज, और समावेशी पुनर्वास। श्रवणश्रुति कार्यक्रम ने न सिर्फ बच्चों के कानों को सुनने की शक्ति दी, बल्कि उनके जीवन में नई आशा, नई ऊर्जा, और सबसे महत्वपूर्ण – एक आवाज़ लौटाई।

इसमें सरकार की कई योजनाएँ जैसे – ADIP, RBSK, ICDS और सक्षम को जोड़ा गया। अप्रैल 2021 से जनवरी 2024 तक चली इस योजना ने बच्चों की जाँच, इलाज, कॉक्लियर इम्प्लांट (कान का ऑपरेशन) और स्पीच थेरेपी जैसी सभी सेवाएं दीं। यह एक ऐसा मॉडल बना जिसे देशभर में अपनाया जा सकता है।

लेकिन यह काम उतना आसान नहीं था। बहुत से माता-पिता को यह जानकारी ही नहीं थी कि उनका बच्चा सुन नहीं सकता। सबसे बड़ी चुनौती – विकलांगता से जुड़ी सामाजिक शर्म और हिचक। इसने इस पूरे कार्य को एक मेडिकल नहीं, बल्कि मानवीय चुनौती बना दिया। इसके लिए संवेदनशीलता के साथ रणनीति बनाकर काम किया गया। इन समस्याओं का समाधान किसी एक विभाग से नहीं हो सकता था। इसलिए श्रवणश्रुति ने साझेदारी और समर्पण की नीति अपनाई गई। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया गया। पंचायतों और स्वयं सहायता समूहों को जोड़ा गया। घर-घर जाकर बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। जिन बच्चों में संदेह हुआ, उनका BERA टेस्ट कराया गया। फिर या तो उन्हें हियरिंग एड या गंभीर मामलों में कॉक्लियर इम्प्लांट दिया गया। मेडिकल कैंप – यह सारी सेवाएं नि:शुल्क दी गईं। ऑपरेशन के बाद बच्चों को स्पीच थेरेपी दी गई, और उनकी प्रगति की डिजिटल ट्रैकिंग की गई। यह एक ऐसा सिस्टम था जिसमें सरकार, समुदाय और तकनीक – तीनों ने मिलकर काम किया।

परिणाम काफी अच्छा रहा। आँकड़े मुस्कान में बदल गए:

 2659 आंगनवाड़ी केंद्रों में 4.25 लाख बच्चों की स्क्रीनिंग की गई ।

 1,739 बच्चों का BERA टेस्ट किया गया।

 70 बच्चों को कॉक्लियर इम्प्लांट,

 1,769 बच्चों को हियरिंग एड दिए गए।

 और सबसे सुंदर आंकड़ा – 1,839 बच्चे, जो पहले एक शब्द भी नहीं बोल पाते थे, अब स्पीच थेरेपी से बोलने लगे हैं।

*ये सिर्फ आँकड़े नहीं हैं, ये हैं – सुनने की पहली ध्वनि, माँ को पुकारने की पहली कोशिश, स्कूल में ‘प्रेज़ेंट सर’ कहने की खुशी।

इस योजना के फलस्वरूप बच्चों का स्कूल में दाख़िला बढ़ा, विकलांगता को लेकर समाज में झिझक घटी, और सबसे अहम – परिवारों में आशा की लौ जगी। UNICEF, WHO और भारत सरकार ने भी इसे सराहा है। यह योजना अब राज्य स्तर पर लागू हो चुकी है और राष्ट्रीय नीति में शामिल करने की सिफारिश की गई है।

श्रवण श्रुति अब केवल एक योजना नहीं, यह एक आंदोलन है – इसने न सिर्फ बच्चों के कानों को ठीक किया, बल्कि उन आवाज़ों को सुना, जो पहले कभी सुनी ही नहीं गई थीं। यह एक समावेशी और संवेदनशील स्वास्थ्य प्रणाली का प्रतीक बन गई है। बिहार सरकार, हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में, सदैव दिव्यांगजनों के अधिकारों, गरिमा और समान अवसरों के लिए कटिबद्ध है।यह एक समावेशी भारत, एक सहानुभूति-पूर्ण समाज और एक स्वस्थ भविष्य की ओर डॉ. त्यागराजन जी द्वारा उठाया गया सशक्त कदम है। यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक संकल्प है — सुनने की शक्ति लौटाने का, सम्मान लौटाने का, और सबसे बढ़कर एक पूर्ण जीवन लौटाने का।

जिलाधिकारी, पटना ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में प्रति 1000 बच्चे में 5 से 6 बच्चे बधिर जन्म लेते हैं। जागरूकता की कमी के कारण कुछ ही बच्चों का समुचित स्क्रीनिंग हो पाता है।

जिलाधिकारी ने कहा कि लगभग दो महीने पहले उन्होंने एडिप योजना के अंतर्गत मूक बधिर बच्चों में कोक्लियर इम्पलांट किये जाने के संबंध में जिला स्वास्थ्य समिति की बैठक की थी। उन्होंने कहा कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंद मूक बधिर बच्चों को आधुनिक, टिकाऊ, परिष्कृत तथा वैज्ञानिक आधार पर निर्मित मानक सहायक यंत्रों एवं उपकरणों को खरीदने में सहायता प्रदान करना है ताकि वे दिव्यांगता के प्रभावों को कम करके अपने शारीरिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पुनर्वास में वृद्धि कर सकें। साथ ही अपनी आर्थिक क्षमता को भी बढ़ा सकें। उन्होंने कहा कि योजना के तहत दिव्यांगजन को सहायक यंत्र एवं उपकरण उनकी दिव्यांगता को सीमित करने एवं स्वतंत्र कार्य प्रणाली में सुधार के लिए दी जाती है।

जिलाधिकारी ने कहा कि आज पटना जिला में यह योजना प्रारम्भ की जा रही है। दो महीने पहले की बैठक के बाद दो प्रखंडों- दानापुर एवं फुलवारीशरीफ- में इस कार्यक्रम को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रारंभ किया गया था। इन प्रखंडों के स्वास्थ्य, आईसीडीएस एवं शिक्षा की टीम का उन्मुखीकरण किया गया। आँगनबाड़ी केन्द्रों के पोषक क्षेत्रों में बच्चों की स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्क्रीनिंग की गयी। ऑडियोलोजिस्ट को रोस्टर के अनुसार दोनों पायलट प्रखंडों में तैनात किया गया। राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम की टीम को स्क्रीनिंग शिविरों में सहायता प्रदान करने का निदेश दिया गया। स्वास्थ्य संस्थानों में नवजात बच्चों की स्क्रीनिंग सुनिश्चित करने के लिए पीडियाट्रिशियन को लगाया गया। सिविल सर्जन, पटना को योजनाबद्ध ढंग से इसके लिए कार्य करने का निदेश दिया गया। साथ ही उन्हें विभिन्न विभागों के साथ समन्वय स्थापित करने का निदेश दिया गया। जिलाधिकारी ने कहा कि दानापुर एवं फुलवारीशरीफ प्रखंडों में इन कार्यक्रमों की सफलता का अध्ययन किया गया। आज उन्हें खुशी है कि इसे माननीय मंत्री के कर-कमलों से पूरे पटना जिला में लागू किया गया है। इस योजना से मूक बधिर बच्चों को समुचित सहायता उपलब्ध होगी। उन्होंने इस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए पदाधिकारियों को अंतर्विभागीय समन्वय सुनिश्चित करने का निदेश दिया। सिविल सर्जन, जिला पंचायत राज पदाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी, जिला प्रोग्राम पदाधिकारी (आईसीडीएस), जिला जन-सम्पर्क पदाधिकारी, जिला खनन पदाधिकारी सहित सभी अस्पतालों के अधीक्षकों को ऐसे बच्चों को सरकारी योजनाओं का लाभ प्रदान करने के लिए सजग एवं तत्पर रहने का निदेश दिया गया। उन्होंने नवजात बच्चों की स्क्रीनिंग के लिए जागरूकता बढ़ाने का निदेश दिया।

आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि “कोई भी बच्चा पीछे न छूटे” – यही हमारा ध्येय होना चाहिए।

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