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अपने तेजू भैया बहुरूपिया को भी शरमा देते हैं। रूप-रंग बदलने में गिरगिट को भी मात देते हैं।

मुकेश कुमार/वे मौसम के हिसाब से ख्वाहिश बदलते हैं.. रूप धरते हैं… सावन में शंकर.. भादो में कृष्ण कन्हैया..कभी जलेबी छानने की कला का प्रदर्शन तो कभी गिरते-पड़ते साइकलिंग व घुड़सवारी… ..

कभी सेना बनाते नजर आते हैं.. तो कभी चापाकल पर अर्ध्य नग्न स्नान से शोहरत बटोरते हैं … कभी रासलीला तो कभी चल अकेला…

फिलहाल देश सेवा के जुनून में हवाबाजी का शौक, हवा की तरह ही भैया टिकते कहीं नहीं हैं, बस बहते रहते हैं, आराम से.. अपनी रौ में कभी महुआ कभी हसनपुर, है न भैया कमाल के!

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