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*पितृपक्ष मेला में गूंजा लोकगीत और भजन – कलाकार मुन्ना पंडित उर्फ देवराज मुन्ना ने दी शानदार प्रस्तुति*

जितेन्द्र कुमार सिन्हा/ :पितृपक्ष मेला की भव्यता और श्रद्धा के बीच जब लोकसंगीत और भजनों की मधुर ध्वनि गूंज उठी, तो माहौल और भी भक्तिमय हो गया। इस वर्ष के आयोजन में जिला प्रशासन गया एवं कला-संस्कृति विभाग गया द्वारा स्थानीय कलाकारों को विशेष अवसर प्रदान किया गया। इसी कड़ी में प्रतिभाशाली गायक मुन्ना पंडित उर्फ देवराज मुन्ना ने अपनी लोकगायन कला से श्रोताओं का दिल जीत लिया।

गांधी मैदान स्थित टेंट सिटी में आयोजित इस सांस्कृतिक संध्या का आरंभ श्रद्धा और आस्था से परिपूर्ण माहौल में हुआ। मंच पर जब देवराज ने पहला गीत “सजा दो घर को गुलशन सा मेरे सरकार आए हैं” गाया, तो पूरा पंडाल भक्ति भाव में सराबोर हो गया। श्रोता तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकार का उत्साहवर्धन करते रहे।
इसके बाद उन्होंने दूसरा गीत “जब समय होला कमजोर तो हर कोई साथ छोड़ देला” प्रस्तुत किया। इस गीत ने जीवन के यथार्थ और सामाजिक भावनाओं को उजागर करते हुए दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान श्रोता पूरी तन्मयता से प्रस्तुति का आनंद लेते रहे।

पितृपक्ष मेला में हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिए गया पहुंचते हैं। इस अवसर पर प्रशासन द्वारा धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, ताकि श्रद्धालुओं को बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराया जा सके। इस वर्ष स्थानीय कलाकारों को मंच देने की विशेष पहल की गई, जिससे नए और उभरते कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला।

अपनी प्रस्तुति के बाद मुन्ना पंडित उर्फ देवराज मुन्ना ने कहा कि यह उनके लिए गर्व का क्षण है कि उन्हें जिला प्रशासन और कला-संस्कृति विभाग ने इतना बड़ा मंच प्रदान किया। पितृपक्ष मेला विश्वस्तरीय आयोजन है और यहां गाना गाना किसी भी कलाकार के लिए गौरव की बात है।

गया का पितृपक्ष मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से यह बिहार की पहचान भी बन गया है। यहाँ के लोकगीत, भजन और पारंपरिक संगीत श्रद्धालुओं के मन को छू जाता है और उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ता है।

गांधी मैदान की उस शाम ने यह साबित कर दिया कि स्थानीय कलाकारों में अपार क्षमता छिपी हुई है। मुन्ना पंडित उर्फ देवराज मुन्ना जैसे कलाकार जब मंच पर आते हैं, तो आस्था और कला का अनोखा संगम देखने को मिलता है। पितृपक्ष मेला 2025 में उनकी प्रस्तुति ने न केवल श्रद्धालुओं का मन मोह लिया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि यदि मंच और अवसर मिले तो स्थानीय कलाकार भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकता है।
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