District AdminstrationR.T.Iताजा खबरब्रेकिंग न्यूज़राज्य

सूचना अधिकार अधिनियम को कमजोर करने का षड्यंत्र।

किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में केंद्र सरकार ने प्रस्तावित डेटा संरक्षण कानून में संशोधन के माध्यम से किसी भी व्यक्तिगत जानकारी से इनकार करके व्यक्तिगत गोपनीयता की रक्षा के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव दिया है। सरकार को इस मंशा ने आरटीआई कार्यकर्ताओं के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी है, क्योंकि उनका कहना है कि आरटीआई एक्ट मिल में प्रस्तावित संशोधन इसे सीमित कर देंगे और मांगी गई सूचनाओं को जारी करने में बाबू लोग और ज्यादा मनमानी करेंगे संशोधित बिल में यह कहा गया है कि किसी भी व्यक्तिगत जानकारी को देने से रोका जा सकता है, जब तक कि जन सूचना अधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो कि इस तरह का प्रकटीकरण व्यापक जनहित में उचित है।आरटीआई कार्यकर्ताओ को लगता है कि इसको ढाल बनाकर अधिकारी सूचना देने में आनाकानी करेंगे। निजता के संरक्षण को लेकर लंबी चुप्पी के बाद केन्द्र सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा (प्रोटेक्शन विधेयक का मसौदा) जारी कर दिया है। विधेयक में निजता को संरक्षण के नाम पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) में संशोधन का प्रावधान भी जोड़ा गया है, जिसको लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट चेतावनी दे रहे हैं कि संशोधन के नाम पर आरटीआइ को कमजोर करने का प्रयास हुआ तो विरोध होगा। कार्यकर्ताओं को अंदेशा है कि लोक सूचना अधिकारी को ऐसा अधिकार दिया तो 80 फीसदी सूचनाएं मिल ही नहीं पाएंगी। विधेयक के मसौदे की धारा 30 (2) में आरटीआई अधिनियम की धारा 8(जे) में संशोधन का प्रस्ताव है, जिसके जरिए आरटीआइ में व्यक्तिगत जानकारी देने पर पाबंदी लगाई जाएगी। आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (जे) में कहा है कि व्यक्तिगत सूचना सार्वजनिक नहीं की जाएगी, यदि उस सूचना का जनहित से कोई संबंध नहीं है। सूचना जनहित में होने पर लोक सूचना अधिकारी को गोपनीयता के तर्क को खारिज करने का अधिकार दिया गया है।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन विधेयक क्या कहता है।

विधेयक में व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है। इसको लेकर विधेयक की धारा 30 में प्रावधान जोड़ा गया है कि सार्वजनिक गतिविधि या डिजिटल पर्सनल डेटा जनहित से कोई संबंध नहीं रखने वाली और निजता के विपरीत सूचना को सार्वजनिक करने से रोका जा सकेगा। आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (जे) के परन्तुक के जरिए दी जाने वाली सूचनाओं को भी रोका जा सकेगा।

आरटीआइ एक्ट क्या कहता है ?

सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (जे) कहती है कि व्यक्तिगत जानकारी जिसे संसद या राज्य विधानमंडल से इनकार नहीं किया जा सकता है, उसे आरटीआइ में भी देने से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर सरकारी निकायों से किस नागरिक से कितने पैसे (शुल्क, पेनाल्टी, रायल्टी, अनुज्ञप्ति, टैक्स, सेवाओं इत्यादि से) आयें और उन आयें पैसों का जिन योजनांतर्गत खर्चों में किन किन व्यक्तियों (अधिकारी-कर्मचारी, ठेकेदार, सप्लायर, सब्सिडी या लाभ लेने वाले, सर्विस प्रदाता इत्यादि) को संवितरण हुआ भी जानना व्यक्तिगत डेटा/सूचना बताकर नहीं मिलेंगी, तो आखिर कैसे सूचना का अधिकार अधिनियम से लोक प्राधिकरणों में पारदर्शिता एवं जवाबदेही आयेगी, भला कैसे भ्रष्टाचार कम होगा, कैसे संसाधनों का अधिकतम उपयोग होकर दक्ष प्रचालन में लोकतंत्रात्मक गणराज्य में जागरुक नागरिक भारत देश की स्वतंत्रता एवं सम्प्रभुता की रक्षा कर पायेगा। कुछ पूंजीपति एवं राजनितिज्ञ निश्चित तौर पर अपने देश को ही बेचने के लिए एक बार भी नहीं हिचकेंगे। जिस कारण इस कानून में अपेक्षित सुधार के बिना लागू होना अभिशाप है जिसका मैं (धर्मेन्द्र सिंह आरटीआई कार्यकर्ता) पूरजोर विरोध करता हूं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button