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किशनगंज: सीमांचल की राजनीति का धुरी, 2025 में सियासी संग्राम के लिए तैयार

किशनगंज,08अगस्त(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, सीमांचल का मुस्लिम बहुल किशनगंज विधानसभा क्षेत्र, बिहार की राजनीति में हमेशा खास महत्व रखता आया है। जैसे-जैसे 2025 के विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, यहां की सियासी बिसात पर मोहरे तेजी से सजने लगे हैं। यह सीट न सिर्फ चुनावी आंकड़ों में बल्कि अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व के कारण भी सुर्खियों में रहती है।

इतिहास और नाम की दास्तान

किशनगंज का इतिहास खगड़ा नवाब मोहम्मद फकीरुद्दीन के दौर से जुड़ा है। एक हिंदू संत के विरोध के बाद ‘आलमगंज’ का नाम ‘कृष्णा-कुंज’ और फिर ‘किशनगंज’ हो गया। 14 जनवरी 1990 को यह पूर्णिया से अलग होकर जिला बना और आज 1,884 वर्ग किलोमीटर में फैला है।

भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान

पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित किशनगंज नेपाल और पश्चिम बंगाल की सीमाओं से सटा है। महानंदा, मेची और कंकई जैसी नदियां इसे उपजाऊ और प्राकृतिक रूप से समृद्ध बनाती हैं। यह बिहार का एकमात्र जिला है जहां वाणिज्यिक स्तर पर चाय की खेती होती है, जो इसे आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से खास बनाती है।

जनसंख्या और चुनावी समीकरण

2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की आबादी 16,90,948 है, जिसमें मुस्लिम बहुलता है। मुस्लिम वोट यहां के चुनावी समीकरण का सबसे अहम हिस्सा हैं — 19 में से 17 बार मुस्लिम उम्मीदवार ही विजयी रहे हैं। 1967 में सुशीला कपूर के बाद कोई हिंदू उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर पाया।

कनेक्टिविटी और रणनीतिक महत्व

किशनगंज रेल और सड़क नेटवर्क का अहम केंद्र है। एनएच-31 इसे बिहार और पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पटना और गुवाहाटी से सीधा रेल संपर्क है, जबकि गरीब नवाज एक्सप्रेस यहां की पहचान को और मजबूत बनाती है।

2025 का चुनावी परिदृश्य

2020 में कांग्रेस के इजहारुल हुसैन ने यह सीट जीती, लेकिन एआईएमआईएम के आने से मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ और मुकाबला त्रिकोणीय बन गया।

2025 में कांग्रेस अपनी परंपरागत पकड़ बचाने की कोशिश करेगी, बीजेपी पूरे दमखम के साथ पहली जीत की तलाश में होगी और एआईएमआईएम फिर से मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की रणनीति बनाएगी।
यदि मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता है और हिंदू वोट एकजुट रहते हैं, तो इस बार बीजेपी के लिए इतिहास रचने का मौका बन सकता है।

किशनगंज की यह लड़ाई सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि सीमांचल की राजनीतिक दिशा तय करने वाली जंग होगी। यहां की नतीजे बिहार के चुनावी नक्शे में दूरगामी असर डाल सकते हैं।

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