*जन्म-दिवस”*तपस्वी राजनीतिज्ञ कैलाशपति मिश्र*।।…

रंजीत कुमार सिन्हा:-राजनीति को प्रायः उठापटक और जिन्दाबाद-मुर्दाबाद वाला क्षेत्र माना जाता है; पर संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री कैलाशपति मिश्र ने यहां रहकर अपने आदर्श आचरण से समर्थक ही नहीं, तो घोर विरोधियों तक को प्रभावित किया। बिहार और झारखंड में उन्होंने जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। सबसे वरिष्ठ होने के कारण वे ‘भीष्म पितामह’ माने जाते थे।
श्री कैलाशपति मिश्र का जन्म पांच अक्तूबर, 1923 को बिहार के बक्सर जिले में स्थित ग्राम दुधारचक में श्री हजारीप्रसाद मिश्र के घर में हुआ था। इस परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी; लेकिन कैलाशपति जी की रुचि पढ़ने में बहुत थी। 1942 में वे कक्षा दस के छात्र थे। उन दिनों देश भर में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन का जोर था। श्री कैलाशपति मिश्र ने भी उस आंदोलन में सहभाग करते हुए जेल की यात्रा की।
जेल से आकर वे फिर पढ़ाई में लग गये। 1945 में उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ और फिर वही उनके जीवन का ध्येय बन गया। उन्होंने अविवाहित रहकर संघ के माध्यम से देशसेवा का व्रत ले लिया। शिक्षा पूर्ण कर उनके प्रचारक जीवन की यात्रा 1947 में प्रारम्भ हुई। क्रमशः आरा, पटना और पूर्णिया में संघ का काम करने के बाद 1959 में उन्हें जनसंघ के बिहार प्रदेश संगठन मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी। इससे पूर्व संघ पर 1948 में लगे प्रतिबंध के विरोध में वे जेल भी गये थे।
उन दिनों सब ओर कांग्रेस और नेहरू जी का डंका बज रहा था। ऐसे विपरीत माहौल में श्री कैलाशपति मिश्र के परिश्रम से बिहार के हर जिले और तहसील तक जनसंघ का नाम और काम पहुंचा गया। आपातकाल की समाप्ति के बाद उन्होंने संगठन के निर्देश पर प्रत्यक्ष चुनावी राजनीति में प्रवेश किया और पटना की विक्रम विधानसभा से विजयी होकर विधायक बने। मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने उनकी योग्यता देखकर उन्हें वित्तमंत्री की जिम्मेदारी दी।
1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन होने पर उन्हें उसकी बिहार इकाई का पहला अध्यक्ष बनाया गया। 1987 तक वे इस पद पर रहे। 1984 में उन्हें राज्यसभा में भेजा गया। भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री और उपाध्यक्ष के नाते उन्हें समय-समय पर अनेक राज्यों में चुनाव तथा संगठन सम्बन्धी कार्यों की जिम्मेदारी दी गयी, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया।
जीवन के संध्याकाल में उन्होंने सक्रिय राजनीति से अवकाश ले लिया; पर जिन दिनों केन्द्र में भाजपा एवं सहयोगियों का शासन था, तब उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें गुजरात का राज्यपाल बनाया गया। कुछ समय उन पर राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी रहा। 2004 में केन्द्र में शासन बदलने पर वे इस जिम्मेदारी से मुक्त होकर पटना में ही रहने लगे।
श्री कैलाशपति मिश्र राजनीतिक क्षेत्र में कार्यरत एक निष्कंलक व्यक्तित्व वाले तपस्वी राजनीतिज्ञ थे। लगभग 50 वर्षीय राजनीतिक यात्रा में उन पर न कभी कोई आरोप लगा और न ही वे कभी किसी विवाद में फंसे। राजनीति के दलदल में कमल के समान अहंकार, बुराई, द्वेष, लोभ-लालच आदि से वे मीलों दूर रहे। वे सत्ता में भी रहे और विरोध पक्ष में भी; पर अपने विचारों से कभी विचलित नहीं हुए। इस कारण विरोधी भी उनका सम्मान करते थे।
आगे चलकर बिहार और झारखंड में भाजपा ने कई बार सत्ता का सुख भोगा। यह श्री कैलाशपति मिश्र की तपस्या का ही सुपरिणाम था। तीन नवम्बर, 2012 को पटना में लम्बी बीमारी के बाद उनका देहांत हुआ। प्रखर विचारों और विशुद्ध आचरण वाले ऐसे मनीषी राजनेता को बिहार में भाजपा के कार्यकर्ता आज भी अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं।
 
				


