कभी कांग्रेस की गढ़ बात बिक्रमगंज सह काराकाट सीट पर समाजवादियों का रहा कब्जा,दो बार से अधिक नही बना कोई सांसद, काराकाट में त्रिकोणीय संघर्ष की आसार।…..

दिनेश कुमार सिंह/सासाराम-परिसीमन के पूर्व भारत के मानचित्र पर वर्तमान में काराकाट बिक्रमगंज लोकसभा के नाम से जाना जाता था। तब भी छह विधानसभा क्षेत्र थे। लेकिन परिसीमन बदलने के साथ ही अस्तित्व में आया काराकाट का भूगौलिक स्वरूप भी बदल गया। अब भी छह विधानसभा ही शामिल है।
अंतर सिर्फ इतना है कि पहले सोन इस पार के इलाके शामिल थे और अब सोन उस पार के तीन विधानसभा क्षेत्र काराकाट में शामिल हो गए है। परिसीमन के पूर्व यह संसदीय क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ भी रहा है तथा पूर्व में बिक्रमगंज अब काराकाट संसदीय क्षेत्र पर 1989 के बाद से इस क्षेत्र में समाजवादियों का कब्जा रहा है। देश की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा काराकाट सीट से दूर ही रही है। यहां राजद, जदयू, समता व रालोसपा जैसी क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। 1991 के बाद भाजपा ने तो काराकाट में कभी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे। भाजपा इसके बाद हर चुनाव में यह सीट अपने सहयोगी जदयू, समता या रालोसपा, रालोमो को देती रही है। सहकारिता सम्राट तपेश्वर सिंह की कर्मस्थली रहे इस क्षेत्र में अब कांग्रेस का नाम लेने वाले भी कम ही रह गए हैं। 2009 में कांग्रेस ने अवधेश सिंह को प्रत्याशी जरूर बनाया था। लेकिन इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बाद दोनों प्रमुख दल लड़ाई से बाहर ही रहे हैं। इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री व रालोम सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा को तो महागठबंधन की ओर से मौजूदा भाकपा माले के पूर्व विधायक राजा राम को प्रत्याशी बनायी है। इस सीट की विडंबना रही है कि क्षेत्र व पार्टी के साथ सासंद बदलते रहे हैं।
कोई प्रत्याशी यहां से दो बार से अधिक सांसद नहीं बन सका है।1952 में शाहाबाद दक्षिणी क्षेत्र के नाम से जाने जाने वाले इस क्षेत्र से निर्दलीय सांसद बने थे कमल सिंह।1962 में यह सीट बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र बन गया। पहले सांसद कांग्रेस के राम सुभग सिंह बने। 1971 में शिवपूजन शास्त्री कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने।1977 में भारतीय लोक दल के राम अवधेश सिंह सांसद बने। 1980-84 में कांग्रेस के दिग्गज नेता तपेश्वर सिंह दो बार सांसद बने। इसके बाद कांग्रेस इस सीट पर कभी जीत नहीं दर्ज कर सकी। 1989-91 में जनता दल के लहर में रामप्रसाद सिंह कुशवाहा यहां से दो बार सांसद बने। काराकाट संसदीय क्षेत्र से किसी सांसद को दो बार से अधिक प्रतिनिधित्व का मौका अब-तक नहीं मिला है।1996 में जनता दल से कांति सिंह सांसद बनी। 1998 के चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नरायण सिंह सांसद बने।1999 में कांति सिंह दूसरी बार सांसद बनी। 2004 में स्व0 पूर्व सासंद तपेश्वर सिंह के बेटे अजीत सिंह लड़े और जीते।अजीत सिंह के निधन होने पर उनकी पत्नी मीना सिंह उप चुनाव में सांसद बनी। 2009 में जदयू के महाबली सिंह सांसद बने। 2014 में रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा सांसद बने।फिर 2019 में जदयू के टिकट पर महाबली सिंह दोबारा सांसद बने।लेकिन एनडीए गठबंधन में इस बार राष्ट्रीय लोक मोर्चा के खाते में यह सीट चले जाने से महाबली सिंह चुनाव लडने से वंचित रह गए।18 वीं लोस चुनाव में एनडीए की ओर से राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा व महागठबंधन की ओर से भाकपा माले के पूर्व विधायक राजा राम सिंह तथा निर्दलीय उम्मीदवार भोजपुरी फिल्म अभिनेता पावर स्टार पवन सिंह के बीच त्रिकोणीय संघर्ष होने का आसार दिख रहा है। वैसे बनते बिगड़ते जतीय समीकरण के बीच इस संघर्ष को रोचक व कांटेदार बनाकर चारकोणीय लड़ाई बनाने में अन्य प्रत्याशी भी जोर शोर से जुटे हुए है।हालांकि सातवे व अंतिम चरण के तहत होने वाले काराकाट लोस क्षेत्र का मतदान 1 जून को होना है।
दोनों गठबंधनों ने जातीय समीकरण को ध्यान में रख प्रत्याशियों का चयन किया गया है। बसपा द्वारा इस सीट पर जहां धीरज सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है।वही एआईएमआईएम ओवैसी की पार्टी ने प्रियंका चौधरी को मैदान मे उतरा हैं। राजनीति में पहली बार कदम रख भोजपुरी फिल्म के अभिनेता पावर स्टार पवन सिंह को उतरने से काराकाट का मुकाबला रोचक होने की संभवना है।वही राष्ट्र सेवा दल हम डेहरी से पूर्व विधायक प्रदीप जोशी भी इन्ही खेवनहार के सहारे अपनी कश्ती को पार लगाने की फिराक में है।महागठबंधन को जहां यादव, मुस्लिम व कुशवाहा, दलित महादलित वोट का दरकार है। वहीं एनडीए को भी कुशवाहा समेत सवर्ण वोटरों के अलावा अति पिछडा,दलित, महादलित, वैश्य आदि वोटों की सियासत कर चुनावी जीत हासिल करना चाह रही है।
वैसे इन वोटो में निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह,एआईएमआईएम के उम्मीदवार प्रियांका चौधरी,बसपा के धीरज सिंह तथा पूर्व विधायक प्रदीप जोशी भी सेंधमारी करने की जुगत में रहेंगे। बसपा प्रत्याशी धीरज सिंह , राजपूत के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों,हरिजन तथा निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह को सवर्णो के अलावा अन्य सभी जातियों का वोट अपनी ओर कितना आकर्षित व प्रभावित करने में कसरत कर पा रहे है यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है। लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में एनडीए की घटक दल रहे नीतीस-मोदी लहर व क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की बखूबी चर्चा कर रालोसपा के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को पटखनी देकर पास आउट हो गई थी। काराकाट संसदीय सीट से 2014 के आम चुनाव में रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा पहली बार सांसद बने। मोदी लहर पर सवार होकर चुनाव जीतने पर कुशवाहा को मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री की जिम्मेवारी मिली। मूल रूप से वैशाली जिले के जंदाहा विस क्षेत्र के जावाज गांव निवासी उपेंद्र कुशवाहा इस बार 2024 के चुनाव में काराकाट से इंडिया गठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। देखने वाली बात होगी कि चुनाव लड़ने वाले कुशवाहा कितनी हद तक जनता की उम्मीदों पर खरा उतरते हैं। बहरहाल सभी काराकाट में मौसम के बढ़ते तपिस के साथ ही सियासी तापमान का पारा भी चढ़ते जा रहा है। सभी प्रत्याशी अपने कार्यकर्ताओं, समर्थको के साथ क्षेत्र का सघन दौरा प्रारंभ कर मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद कर मतदान करने के लिए मतददाताओ से अपील करने का सिलसिला तेजी से शुरू कर दिया है।