किशनगंज : नवरात्रि के पांचवे दिन करें मां स्कंदमाता की पूजा।

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन मां स्कंदमाता की पूजा करते हैं। मां स्कंदमाता की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और निःसंतान लोगों को संतान सुख की भी प्राप्ति होती है। सबसे पहले मन में सवाल यह आता है कि मां स्कंदमाता कौन हैं ? मां दुर्गा के पांचवे विग्रह या स्वरूप का अवतार क्यों हुआ ? इस देवी की गोद में छह मुख वाले कुमार कौन हैं ? श्री महाकाल जी आनंद दीपक जी महाराज से जानते हैं इन प्रश्नों का जवाब। महाराज जी बताते है चार भुजाओं वाली मां स्कंदमाता देवी पार्वती या मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप हैं। ये चार भुजाओं वाली माता शेर पर सवारी करती हैं। इनके हाथों में कमल पुष्प होता है और अपने एक हाथ से ये अपने पुत्र स्कंद कुमार यानि भगवान कार्तिकेय को पकड़ी हुई हैं। भगवान कार्तिकेय को ही स्कंद कुमार कहते हैं। स्कंदमाता का अर्थ है स्कंद कुमार की माता। मां स्कंदमाता की उत्पत्ति की बात करे तो पौराणिक कथाओं के अनुसार, संसार में जब तरकासुर का अत्याचार बढ़ने लगा तो सभी देवी, देवता, मनुष्य, गंधर्व, ऋषि-मुनि आदि चिंतित हो गए। उन सभी ने माता पार्वती से तरकासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। उसके पश्चात आदिशक्ति ने अपने तेज से 6 मुख वाले बालक स्कंद कुमार को जन्म दिया। आगे चलकर उनके हाथों ही तरकासुर का अंत हुआ और सभी को उसके अत्याचार से मुक्ति मिली। इस प्रकार से मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप मां स्कंदमाता बनीं। मां अपने भक्तों पर पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं। मां की उपासना से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। मां का स्मरण करने से ही असंभव कार्य संभव हो जाते हैं। स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसी कारण उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। मां की उपासना से संतान की प्राप्ति होती है। मां का वाहन सिंह है। श्री महाकाल जी आनंद दीपक जी महाराज बताते है मां स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां स्कंदमाता को श्वेत रंग प्रिय है। मां की पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र धारण करें। मां को विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। मां की उपासना से अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है। महाराज जी बताते है पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता कि कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। जिन लोगों को संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो, उन्हें मां के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। आदिशक्ति का यह स्वरूप संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण करनेवाला माना गया है। स्कंदमाता की पूजा में कुमार कार्तिकेय का होना जरूरी होता है। स्कंदमाता को भोग स्वरूप केला अर्पित करना चाहिए। जो भक्त देवी स्कंद माता का भक्ति-भाव से पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है।