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हेमंत सोरेन और सरकार को डबल झटका,चुनाव आयोग का ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले की आदेश की कॉपी देने से इंकार, हाईकोर्ट ने भी की फजीहत।….

तारकेश्वर कुमार गुप्ता :-मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिछले कई दिनों से एक पर लोकलुभावन योजनाओं के घोषणाओं का ऐलान कर रहे हैं। वहीं संवैधानिक संस्थाएं उन पर आंखें तरेरी हुई हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक सीएम हेमंत सोरेन के वकील ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग से आदेश की प्रति मांगी थी लेकिन चुनाव आयोग ने आदेश की प्रति देने से इनकार कर दिया है। वहीं दूसरी ओर झारखंड हाई कोर्ट ने जमीन विवाद से जुड़े एक मामले में स्पष्ट जानकारी नहीं दिए जाने पर राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह और देवघर के तत्कालीन अंचलाधिकारी अनिल कुमार सिंह को अवमानना नोटिस जारी किया है।अदालत ने उनसे पूछा है कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए। अदालत ने मुख्य सचिव से पूछा है कि क्यों नहीं केंद्रीय कार्मिक विभाग से उनके रेकार्ड में यह प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करने को कहा जाए कि उन्हें न्यायिक कार्य में दिलचस्पी नहीं है।
खबरों के मुताबिक चुनाव आयोग ने भाजपा ने हेमंत सोरेन के खिलाफ जो ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला उठाया था। इस मामले में दोनों पक्षों की सुनवाई करने के बाद अपना मंतव्य राज्यपाल को बंद लिफाफे में सौंप दिया है। राज्यपाल भी फिलहाल तक चुनाव आयोग के फैसले को सार्वजनिक नहीं किए हैं। ऐसी स्थिति में मामले में आदेश की प्रति की मांग सीएम हेमंत सोरेन के वकील ने चुनाव आयोग से की थी लेकिन चुनाव आयोग ने आदेश की प्रति देने से इनकार कर दिया है। जिसे हेमंत सोरेन को डबल झटका बताया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने इसके लिए न्यायिक आदेश और संवैधानिक संस्थाओं के बीच हुए पत्राचार को प्रिविलेज कम्युनिकेशन की संज्ञा दी।हालांकि हेमंत सोरेन के अधिवक्ता वैभव तोमर की ओर से आयोग के जवाब को नैसर्गिक न्याय के खिलाफ बताते हुए फिर से आदेश की प्रति देने की मांग की गयी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनाव आयोग ने वैभव तोमर को भेजे गये अपने जवाब में कहा है कि राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 192(2) के आलोक में राय मांगी गयी थी।संवैधानिक संस्थाओं राज्यपाल और चुनाव आयोग के बीच हुआ पत्राचार प्रिविलेज कम्युनिकेशन है।आयोग द्वारा इस मामले में अपनी राय की प्रति उपलब्ध कराना संवैधानिक प्रावधानों के भी प्रतिकूल है।पत्र में डीडी थाइसी बनाम चुनाव आयोग के मामले में तोमर द्वारा दिये गये उदाहरण को भी आयोग ने अस्वीकार कर दिया है। इस सिलसिले में आयोग द्वारा यह कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 103(2) और 192(2) के तहत दी गयी राय को सार्वजनिक करने से छूट है।

वहीं इसके इतर आयोग के इनकार के बाद फिर से सीएम हेमंत के अधिवक्ता वैभव तोमर ने आदेश की प्रति ना देने को नैसर्गिक न्याय के खिलाफ बताते हुए कहा कि आयोग ने सिविल कोर्ट की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इस मामले में सुनवाई की। चुनाव आयोग द्वारा की गयी सुनवाई एक न्यायिक प्रक्रिया है, इसलिए यह जरूरी है कि चुनाव आयोग फैसले की जानकारी दे।उन्होंने लिखा है कि जांच का निष्कर्ष उनके क्लाइंट को न देना असंवैधानिक है।उनके क्लाइंट को कॉपी नहीं दी गयी है, पर प्रेस को लीक कर दी गयी है। इससे राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बन गया है. मौके का फायदा उठाते हुए भाजपा द्वारा हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है और एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार को अस्थिर करने की कोशिश हो रही है। अत: पुन: आयोग से आग्रह है कि फैसले की प्रतिलिपि दी जाये।

हाईकोर्ट में भी सरकार की फजीहत

झारखंड हाई कोर्ट ने जमीन विवाद से जुड़े एक मामले में स्पष्ट जानकारी नहीं दिए जाने पर राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह और देवघर के तत्कालीन अंचलाधिकारी अनिल कुमार सिंह को अवमानना नोटिस जारी किया है।अदालत ने राज्य के कार्मिक विभाग को देवघर के तत्कालीन अंचलाधिकारी को नोटिस भेज कर यह पूछने को कहा है कि 14 जून 2022 के कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया। अदालत ने सभी को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई नौ नवंबर को होगी। इस संबंध में शहादत हुसैन ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

इस याचिका में कहा गया है कि देवघर के एसडीओ ने वर्ष 1940 में उनके पिता के नाम जमीन की बंदोबस्ती की थी। इसके बाद से उस जमीन पर उनका मालिकाना हक है। देवघर एयरपोर्ट के निर्माण के दौरान उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया। जमीन अधिग्रहण करने के पहले उन्हें नोटिस भी नहीं दिया गया। उन्होंने इसकी शिकायत की तो अधिकारियों ने उनसे जमीन से संबंधित दस्तावेज जमा करने को कहा।

प्रार्थी के अनुसार वर्ष 1940 में उनके पिता के एसडीओ द्वारा किए गए सेटलमेंट का दस्तावेज सौंपा गया। इसकी जांच के बाद सीओ ने अपना मंतव्य देते हुए कहा कि प्रार्थी के पिता के नाम सेटेलमेंट नहीं हुआ है और उनका दस्तावेज फर्जी है। प्रार्थी की याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और पूरे स्थिति स्पष्ट करने को कहा। इसको लेकर अदालत ने कई बार मुख्य सचिव को निर्देश दिया। लेकिन मुख्य सचिव की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया गया।

इसके बाद अदालत ने मुख्य सचिव को पूछा कि क्या एसडीओ के आदेश को एक अंचलाधिकारी गलत करार दे सकते हैं। अदालत ने उक्त जमीन की वास्तविक स्थिति से कोर्ट ने मुख्य सचिव को अवगत कराने का निर्देश दिया। मुख्य सचिव की ओर से दाखिल शपथपत्र में अदालत की ओर से न तो मांगी गई जानकारी दी गई और न ही अंचलाधिकारी के आदेश के बारे में स्थिति ही स्पष्ट की गई। इस पर अदालत ने नाराजगी जताई और अवमानना का नोटिस जारी किया।

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