हर गांव में 2 से 3 महिलाएं आज भी हैं डायन” बिहार राज्य के 10 जिलों के 114 गांव में 145 महिलाओं के साथ डायन कुप्रथा जनित हिंसा पर किए गए सर्वे के आंकड़े
पटना डेस्क “महिलाओं के खिलाफ जेंडर आधारित हिंसा : उसकी स्थिति, कारण, चुनौतियों और एवम रोकथाम पर प्रभावी रणनीतियों को लेकर राज्य स्तरीय परिचर्चा का आयोजन किया है। परिचर्चा का आयोजन – निरंतर संस्था, बिहार लीगल नेटवर्क और बिहार फेडरेशन महासंघ – इन तीन संस्थाओं द्वारा मिलकर किया गया।
कार्यक्रम में निरंतर संस्था की टीम लीडर संतोष शर्मा ने ‘डायन कुप्रथा जनित हिंसा : प्रताड़ित महिलाओं से जुड़े सर्वे को प्रस्तुत करते हुए बताया कि आज के समय में भी हर एक गांव में 2 या 3 महिलाओं को डायन बताया जाता है।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार : 118 गांवों में 145 महिलाओं के साथ हुए सर्वे में यह बात निकल कर आई कि जिन महिलाओं को डायन बताया जाता है उनमें से 76 फीसदी महिलाओं की उम्र 45 -46 वर्ष है। 97 प्रतिशत महिलाएं, दलित SC, ST, अतिपिछड़ा समुदायें से हैं। सर्वे में शामिल 73 फीसदी महिलाएं कभी स्कूल नहीं गई हैं। अक्सर, डायन बताने की घटना ससुराल या पड़ोसियों द्वारा ही शुरुआत की जाती है।
सुबह के सत्र में पैनल डिस्कशन में शामिल होने वाले मुख्य अतिथियों में सुश्री अश्वमेघ देवी, अध्यक्ष राज्य महिला आयोग, बिहार; श्री अशोक पासवान, सदस्य, अनुसूचित जाति एवम अनुसूचित जनजाति आयोग, बिहार; और निरंतर संस्था की निदेशक अर्चना द्विवेदी शामिल थीं।
डायन कुप्रथा जनित हिंसा : प्रताड़ित महिलाओं का सर्वे ‘ पर बातचीत करते हुए अशोक पासवान जी ने कहा, “कहीं न कहीं यह शिक्षा का मामला है और जब शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा तो इन घटनाओं में कमी जरूर आएगी।”
राज्य महिला आयोग अध्यक्ष सुश्री अश्वमेघ देवी ने सवाल जवाब के दौरान अपनी बात रखते हुए सबसे पहले इस तरह के कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए तीनों संस्थाओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि डायन प्रथा से जुड़े कानून के प्रचार की बहुत आवश्यकता है।
सर्वे में निकलने वाली यह बात कि डायन कुप्रथा से जूझने वाली महिलाओं में सिर्फ 30 फीसदी महिलाएं ही न्याय का दरवाजा खटखटाती हैं। इसका प्रमुख कारण बदनामी और प्रशासन द्वारा किसी भी तरह की कार्यवाही न होने से निकली निराशा है। इस बात का संज्ञान लेते हुए अश्वमेघ देवी जी ने कहा कि ‘आयोग अपनी तरफ से टोल फ्री नंबर की मांग को सरकार तक पहुंचाने का काम करेगी ताकि महिलाएं बिना झिझक शिकयत दर्ज कर सकें।”
“मुझे डायन -डायन कहकर मेरा हाथ पैर तोड़ दिया। हम किसी के घर नहीं जाते, कोई मुझे नहीं बुलाता। मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि मैं किसी के घर जाऊंगी तो मुझे मारेंगे, मेरे साथ गाली गलौच करेंगे।” यह कहना है बिहार के पश्चिम चंपारण जिले से आई पच्चास वर्षीय जुलेखा का जिन्हें डायन कहकर प्रताड़ित किया जाता है। कार्यक्रम में डायन कुप्रथा से जूझ रही और भी महिलाएं शामिल थीं। इसमें शिवहर बिहार से आईं राम रति और कौशल्या ने भी अपनी बात रखी।
सत्र के समापन में अपनी बात रखते हुए निरंतर संस्था की निदेशक अर्चना द्विवेदी ने कहा, “डायन कुप्रथा को मान लिया गया है कि अब यह नहीं होता। और निरंतर संस्था द्वारा किया गया यह सर्वे इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित करने की घटना लगातार हो रहे हैं, और बड़े स्तर पर हो रहे हैं। और इसे सिर्फ आंकड़ों से नहीं देखा जा सकता। यह अधिकार और मानवाधिकार के बारे में है।”
पूरे दिन चलने वाले इस कार्यक्रम में डायन प्रताड़ना को केंद्र में रखते हुए जेंडर आधारित हिंसा को संबोधित करने की रणनीतियों और रोकथाम के प्रयासों पर चर्चा की गई।
कार्यक्रम में शामिल मुख्य अतिथियों में बिहार राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण से जुड़ी सुश्री शिल्पी धनराज और बिहार कानूनी सेवा प्राधिकरण की संयुक्त सचिव सुश्री धीरता जसलीन शर्मा शामिल थीं।