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*यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों को न्याय दिलाने के लिए सरकार बनाए मानवीकृत मूल्याकंन पद्धति: हाईकोर्ट*

पाक्सो एक्ट बनाने का उद्देश्य नहीं हो रहा है पूरा।..

गुड्डू कुमार सिंह:-प्रयागराज/इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीडऩ के शिकार बच्चों को न्याय दिलाने के लिए बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की ओर से तैयार की जाने वाली रिपोर्ट पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि सीडब्ल्यूसी की ओर से सहीं तरीके से रिपोर्टें तैयार नहीं की जा रही हैं। इससे यौन शोषण के शिकार बच्चों को न्याय मिलने में दिक्कतें खड़ी हो रही हैं और विधायिका का पॉस्को अधिनियम को बनाने का उद्देश्य भी नहीं पूरा हो पा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार को तत्काल उपचारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। उसे यौन उत्पीडन के शिकार बच्चों को न्याय दिलाने के लिए एक मानवीकृत मूल्यांकन पद्धति बनाने की जरूरत है, जिसमें पीड़ित के सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखा जाए।

कोर्ट ने कहा है कि इस मूल्यांकन पद्धति को बनाने का काम चार महीने में पूरा कर लिया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने सहारनपुर के सिद्धांत उर्फ आसू की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने मानवीकृत मूल्यांकन पद्धति बनाने के लिए कुल आठ बिंदुओं पर निर्देश भी जारी किया है। साथ ही बाल कल्याण समितियों को निर्देश जारी किया है कि वे ऐसी रिपोर्टों को तैयार करने में सावधानी बरतें। रिपोर्ट तैयार करते समय पीड़ित के सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को भी मूल्यांकन करें, जिससे कि दोषी को सजा मिलने के साथ उसके पुनर्वास और समाज की मुख्य धारा में शामिल होने में दिक्कते न आएं।

इसको देखते हुए एक मानवीकृत मूल्यांकन पद्धति विकसित किया जाना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि मूल्यांकन पद्धति विकसित करने के लिए न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान लखनऊ (जेटीआरआई), उच्च कानूनी शिक्षण संस्थानों, उच्च अनुसंधान और शिक्षा संस्थानों, एनआईएमएचएएनएस, सीडब्ल्यूसी जैसे विशेष विशेषज्ञता वाले संस्थानों और क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञों से परामर्श लिया जाए। महिला एवं बाल विकास विभाग यूपी इस काम में जेटीआरआई को सहायता प्रदान करेंगे।
मूल्याकंन पद्धति विकसित होने के बाद सीडब्ल्यूसी सदस्यों के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार करेगा और उसे धरातल पर लागू करेगा।

कोर्ट ने कहा कि सीडब्ल्यूसी को उपलब्ध कराएं जाएं आवश्यक संसाधन। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी माना कि यूपी सरकार की ओर से सीडब्ल्यूसी को आवश्यक बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं कराया गया है और उनके कार्यों का निर्वहन करने के लिए आवश्यक साधन की कमी है। कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि वह सीडब्ल्यूसी को उपलब्ध बुनियादी ढांचे का तत्काल मूल्यांकन करे और उसके उन्नयन करने के लिए कदम उठाए।

कोर्ट ने बाल कल्याण समितियों को भी निर्देश दिया है कि वह रिपोर्ट बनाते समय अपने अधिकार के दायरे और सीमाओं के प्रति सचेत रहे। उसके द्वारा तैयार होने वाली रिपोर्ट सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अपराधों में पुलिस द्वारा की गई जांच का हिस्सा न हो। रिपोर्ट को सीआरपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत दिए गए पीड़ित के बयानों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम समिति और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम समिति के समक्ष विचार और उचित कार्रवाई के लिए और निदेशक न्यायिक को भेजने को कहा है।

क्या है मामला।….

याची पर आरोप है कि उसने 12 साल की बच्ची को उठा ले गया और उसका यौन उत्पीड़न किया। लोगों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया। याची के खिलाफ सहारनपुर के बड़गांव थाने में रेप सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के साथ पॉस्को में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। पुलिस ने उसे जेल भेज दिया। पीड़िता ने सीआरपीसी के 161 और 164 के बयान में उत्पीड़न का आरोप लगाया लेकिन ट्रायल के दौरान वह बदल गई। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीड़िता की ओर से सीडब्ल्यूसी की ओर से जो रिपोर्ट तैयार की गई उसमें कई गलतियां पाईं गईं। पीड़िता की सामाजिक और आर्थिक पहलुओं को ध्यान में नहीं रखा गया। इसका लाभ आरोपी को मिला। कोर्ट ने इन परिस्थितियों को देखते हुए एक मूल्यांकन पद्धति विकसित करने का आदेश पारित किया।

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