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सुहागिनों ने सुहाग की रक्षा ,सौभाग्य व पुत्र कामना के लिए वट सावित्री का ब्रत रखा।..

गुड्डू कुमार सिंह – ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पारंपरिक तरीके से सुहागिनों ने सुंहाग की रक्षा के लिए वट सावित्री का व्रत रखा। त्याग,पति प्रेम और पतिव्रत धर्म को समर्पित वट सावित्री व्रत को सुहागिन पति के दीर्घायु होने की कामना के साथ करती हैं । इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा अर्चना व निर्जला उपवास रहने की परम्परा है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावित्री व्रत में वट वृक्ष का विशेष महत्व है। बरगद के पेड़ की जड़ में ब्रह्मा,तना में विष्णु तथा शाखाओं में शिव का वास होता है।यह वृक्ष दीर्घायु व विशाल होता है। इस लिए इसे अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है।इसकी लटकती शाखाओं को माता सावित्री माना जाता है। मान्यता है माता सवित्री यमराज से अपनी पति को अपने पतिब्रत के दम पर वापस ले आई थी ।इसी लिए वट सावित्री की पूजा अखण्ड सौभाग्य के साथ ही संतान प्राप्ति के लिए की जाती है। शुक्रवार को स्नानादि के बाद सुहागिनें सोलह श्रृंगार करके वट वृक्ष का पूजन किया।रोली, चंदन आदि चढ़ाये तथा कच्चे धागे के साथ सात परिक्रमा किए और अखण्ड सौभाग्य का वरदान मांगा।

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