नए भारत में डॉ. अम्बेडकर की स्वीकार्यता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर मात्र एक व्यक्ति ही नहीं थे, बल्कि न्याय की सदृश ज्वलंत भावना का एक प्रतीक थे।
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त्रिलोकी नाथ प्रसाद:-उनके द्वारा प्रस्तावित विचारों, कृत्यों और कार्यों ने हमारे अतीत को न्यायोचित बनाया है, वर्तमान को रोशन किया है और भविष्य के लिए सतत् मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है। आज जब, राष्ट्र पवित्र आत्मा वाले उस महान व्यक्तित्व की 132वीं जयंती मना रहा है तब यह पल उस अमर व्यक्तित्व के नैतिक बल को पहचानने का है।
यह जयंती समारोह एक विशेष अवसर है, क्योंकि यह अम्बेडकर के शोध प्रबंध ‘’द प्रॉब्लम ऑफ रुपीः इट्स ओरिजिन एण्ड इट्स सोल्यूशन’ का 100वां वर्ष है, जिसने 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक की नींव रखी थी। यह वही समय था जब देश औपनिवेशिकता की बेड़ियों में बंधे अपने आवरण से छूटने की योजना बना रहा था। डॉ. अम्बेडकर बहु-आयामी तरीके से राष्ट्र-निर्माण के महत्वपूर्ण उपायों की शुरुआत करने के कार्यों का उत्साहपूर्वक समर्थन कर रहे थे। साइमन कमीशन के समक्ष, तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भागीदारी के दौरान दलित वर्ग के उत्थान संबंधी कार्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए, वायसराय की परिषद में श्रमिक सदस्य (1942-46), संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष जैसे अपने प्रत्येक कार्य में उन्होंने लक्षित लोगों के यथोचित हितों का दृढ़तापूर्वक संरक्षण किया। उन्होंने एक न्यायपूर्ण समाज के लिए संस्थाओं की स्थापना करने पर बल दिया। भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए दूरदर्शितापूर्ण दृष्टिकोण रखते हुए उन्होंने नेहरू सरकार द्वारा उठाए गए जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष दर्जा और यूएनओ हस्तक्षेप आदि जैसे कुछ कदमों का विरोध किया।
डॉ अम्बेडकर ऐसे चमकते सितारे के समान थे जो गौरवशाली राष्ट्र की हमारी धरोहर का प्रतिनिधित्व करते थे। हम किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को जितना अधिक स्वीकार करते हैं, उतना ही अधिक हमारे व्यवहार में उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने की प्रबल संभावना होती है। नव स्वतंत्र भारत में, अम्बेडकर जी द्वारा प्रचारित कल्याण और न्याय के विचारों की स्वीकृति से हम उनके और अधिक निकट हो सकते हैं। इस दृष्टि से देखते हुए, यह प्रश्न उचित है कि क्या हमने अम्बेडकर की विचारधारा को पूर्ण रूप से स्वीकार किया है?
इतिहास के पन्नों को पलटने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस और अन्य सरकारों के लिए अम्बेडकर के व्यक्तित्व को स्वीकार करने हेतु उन्हें मान्यता प्रदान करने की यात्रा कठिन, या यह कहें कि बाध्यकारी थी। इस बात का प्रमाण यह है कि मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न प्रदान करने और संसद के केंद्रीय कक्ष में उनका आदमकद चित्र स्थापित करने के लिए 34 वर्षों का निरंतर संघर्ष करना पड़ा।
विडम्बना यह थी कि केंद्रीय हॉल में डॉ. अम्बेडकर की बैठी हुई मुद्रा में लगाए गए प्रथम चित्र (9 अगस्त 1989) को हटा दिया गया था जिसे बाद में 12 अप्रैल 1990 को पुनः लगाया गया, जबकि इसकी तुलना में मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के चित्रों को लगाने में काफी कम समय लिया गया था। ये ऐतिहासिक रूप से प्रलेखित तथ्य स्पष्टतः अम्बेडकर को समग्र रूप में स्वीकार करने की उनकी मंशा को दर्शाते हैं।
इसी तरह, नेहरू परिवार के सदस्यों के साजो-सामान और संबंधित वस्तुओं को परिरक्षित, संरक्षित किया गया और उन्हें उनके नामों पर बनाए गए स्मारकों में प्रदर्शित किया गया, जबकि बाबा साहेब द्वारा उपयोग में लाए गए साजो-सामान की सुरक्षा और संरक्षण की ओर इनके शासन काल में कोई ध्यान नहीं दिया गया। अम्बेडकर के अनुयायियों के सरोकारों के लिए प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई को करना मोदी सरकार का संवेदनशील दृष्टिकोण है। संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्पदा संरक्षण अनुसंधानशाला, लखनऊ ने बाबा साहेब के साजो-सामान को दीर्घकालीन संरक्षण के लिए सुरक्षित रखा है। संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए इस्तेमाल किए गए टाइपराइटर सहित कुल 1358 वस्तुओं को संरक्षित किया गया है जिन्हें आगामी समय में नव निर्मित बाबा साहेब डॉ बी आर अंबेडकर सामाजिक-आर्थिक और संस्कृति केंद्र, चिंचोली, नागपुर में प्रदर्शित किया जाएगा। राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान की झलकियों को प्रदर्शित करते हुए, यह केंद्र एक पवित्र स्थल के रूप में उभरेगा। भारतीय-थाई वास्तुकला के संयोजन पक्षों को प्रदर्शित करने वाले 11.5 एकड़ में फैले इस केंद्र में अन्य सांस्कृतिक पक्षों के साथ-साथ एक संग्रहालय, स्मारक, ध्यान-योग कक्ष और पुस्तकालय भी मौजूद है।
2014 के बाद से, मोदी सरकार द्वारा की गई कार्रवाई पूर्ण रूप से डॉ अंबेडकर की विचारधारा को स्वीकार किए जाने को दर्शाती है। योजना से लेकर कार्यान्वयन स्तर तक, शासन व्यवस्था को अम्बेडकर की प्रेरणा के अनुरूप बनाने और ढालने का प्रयास किया गया है। यह सरकार के ही अथक प्रयासों का परिणाम है जिसके कारण पंच तीर्थ, डॉ अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केन्द्र का समर्पित विकास हुआ है और जीवन को सरल बनाने के लिए गरीबों की सहायता करने वाले और जन-केंद्रित नीतिगत उपायों का कार्यान्वयन ऐसे कदम हैं जो सरकार को डॉ अंबेडकर के विचारों के और करीब ले जाते हैं। सुधार, निष्पादन और परिवर्तन के मूल्यों के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण की अनवरत यात्रा, बेहतर भविष्य के लिए जीवन को बहुआयामी रूप से प्रभावित कर रही है। कई अन्य पहलों के अलावा स्टैंड-अप, स्टार्टअप, पीएम आवास योजना, भीम, मुद्रा, और जेएएम (जैम) ट्रिनिटी आदि इस बात का प्रमाण है कि सरकार, अपने लक्ष्यों को पूरा करने तथा और संतुष्टि स्तर तक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सरकार के ‘दरकिनार किए गए मुद्दों को मुख्यधारा में लाने‘ के परिवर्तन संबंधी एजेंडा ने देश की विकास संबंधी संभावनाओं को गति दी है।
मनव केन्द्रित विकसित भारत, गुलामी के सभी चिहनों से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता और नागरिक कर्तव्यों के पालन जैसे प्रधानमंत्री के पंच प्रण मंत्र में भी डॉ. अम्बेडकर का प्रतिबिंब है जिनका यह मानना था कि ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व‘ के संवैधानिक आदर्श और सामाजिक दर्शन, भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं जो उन्हें उनके गुरु महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से प्राप्त हुए हैं, न कि फ्रांसीसी क्रांति से। आजादी का अमृत महोत्सव, राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले यशवंचित, गुमनाम नायकों की साहसपूर्ण गाथाओं को खोज निकालने की पहल है, जो भावी पीढ़ियों के लिए यथोचित ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को प्रस्तुत करने का अभियान है।
एक तरफ ‘डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की विचारधारा को मूल रूप में‘ स्वीकार करना और दूसरी ओर, की गई कार्रवाई के माध्यम से उनके मूल्यों का अनुकरण करना ही भारत के इस महान सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना है। यदि, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की विचारधारा को स्वीकार करने की प्रवृत्ति पूर्ववर्ती सरकारों के लिए प्राथमिकता का विषय रही होती तो देश को अत्यधिक लाभ होता और व्यापक स्तर पर जन कल्याण देखने को मिलता। उनकी 132वीं जयंती पर, आइए इस क्षण के साक्षी बनें और एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण के लिए मान्यताओं और मूल्यों को अपनाने का संकल्प लें। ये उपाय हमारे पूर्वजों द्वारा परिकल्पित एक विकसित भारत के निर्माण के वृहत लक्ष्य को पूरा करने में सहायक सिद्ध होंगे।