मधुबनी : बनकर तैयार हुआ मनसा देवी मंदिर, 24 मई को होगी प्राण प्रतिष्ठा।

शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती करेंगे उद्घाटन। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बिहार के मुख्यमंत्री, राज्यपाल सहित कई मंत्रियों और विधायकों के पहुंचने की है संभावना।
- तीन फीट ऊंची काले पत्थर की मनसा देवी लाल पत्थरों को तराशकर बने 6-6 फीट ऊंचे शेर मुख्य द्वार पर देंगे पहरा।
- गर्भगृह में लक्ष्मी-गणेश, नव ग्रहों की 9 प्रतिमाएँ, 10 महविद्या की प्रतिमाएँ, नौ दुर्गा की 9 प्रतिमाएँ, महिषासुर मर्दिनी, स्कन्द माता (पार्वती), स्कन्द भगवान (कार्तिकेय) और चण्डिका भवानी की प्रतिमाएँ विराजमान होंगी।
मधुबनी/धर्मेन्द्र सिंह, जिले के हरिपुर बख्शीटोल में मनसा देवी का भव्य मन्दिर बनकर तैयार हो गया है। यह भूमि पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती की जन्मस्थली है। इस मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा 24 मई को होगी। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती स्वयं इसका उद्घाटन करेंगे।
70 फीट लंबा और 33 फीट चौड़ाई वाला यह मन्दिर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती की सिद्धस्थली सती माई स्थान पर बना है। इस नवनिर्मित मन्दिर से सटे 350 साल प्राचीन सती माई स्थान पर वर्तमान शंकराचार्य को अपने बाल्यकाल में ही सिद्धि प्राप्त हो गयी थी। नवनिर्मित मनसा देवी मन्दिर के बगल में 15 एकड़ में फैला प्राचीन सतियार पोखर है। मन्दिर का निर्माण करा रहे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट की संस्थापक सचिव प्रोफेसर इंदिरा झा ने बताया कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और बिहार के मुख्यमंत्री समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, बिहार के राज्यपाल और देश-विदेश के कई प्रमुख लोगों को आमंत्रण भेजा जा रहा है।
अमेरिका, यूरोप, नेपाल समेत कई देशों के सनातनी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। शुक्रवार को मीडिया प्रभारी शैलेश तिवारी ने बताया कि बिहार के मुख्यमंत्री, राज्यपाल सहित कई मंत्री और विधायक गन इस अवसर पर उपस्थित रहने की संभावना है। इस अवसर पर 16 से 24 मई तक शतचण्डी यज्ञ, देवी भागवत कथा, विशाल धर्मसभा, सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे कई आयोजन होंगे। इस मन्दिर को भुवनेश्वर के लिंगराज मन्दिर की तर्ज पर उड़ीसा शिल्प शैली में बनाया गया है।
तीन गुम्बद वाले इस मन्दिर का मुख्य गुम्बद जमीन से 59 फीट ऊंचा है। अन्य गुम्बद क्रमशः 35 और 23 फीट के हैं। गुम्बदों पर शेरों की आकृतियां बनी हैं। गुम्बदों पर पीतल के कलश, चक्र और त्रिशूल स्थापित किए जा रहे हैं। निर्माण समिति से जुड़े इंजीनियर प्रभाष चंद्र झा ने बताया कि गर्भगृह लाल ईंट को तराशकर बना है। गर्भगृह की दीवारें चार फीट मोटी हैं। मन्दिर के गर्भगृह में मनसा देवी की मुख्य प्रतिमा के साथ काले पत्थर की कुल 37 प्रतिमाएँ होंगी। साढ़े तीन फीट के सिंहासन पर विराजमान तीन फीट ऊंची मनसा माता की प्रतिमा के चारों ओर गर्भगृह की दीवारों पर बने खांचों में डेढ़ फीट की अन्य प्रतिमाएँ स्थापित होंगी। मनसा देवी के ठीक सामने स्तम्भ पर शेर की प्रतिमा शोभा बढ़ाएगी।
गर्भगृह में लक्ष्मी-गणेश, नव ग्रहों की 9 प्रतिमाएँ, 10 महविद्या की प्रतिमाएँ, नौ दुर्गा की 9 प्रतिमाएँ, महिषासुर मर्दिनी, स्कन्द माता (पार्वती), स्कन्द भगवान (कार्तिकेय) और चण्डिका भवानी की प्रतिमाएँ विराजमान होंगी। इनके अतिरिक्त मनसा देवी माता की अष्टधातु से बनी 35 किलोग्राम वजन की एक चल प्रतिमा भी होगी जो विभिन्न अवसरों पर झांकी आदि के रूप में भ्रमण करेंगी। गौर करे कि आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में पूर्वाम्नाय ॠग्वेदीय गोवर्द्धन मठ पुरी पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती हैं। जगद्गुरु शंकराचार्य के अनन्य शिष्य और आयोजन समिति के अशोक सिंह ने बताया कि आदि शंकराचार्य की जयन्ती 25 अप्रैल को गोवर्द्धन मठ, पुरी से ये प्रतिमाएँ शोभायात्रा के रूप में निकलेंगी और उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड होते हुए 29 अप्रैल को जानकी नवमी के दिन पुरी शंकराचार्य की जन्मभूमि पर पहुंचेंगी। डॉ इंदिरा झा बताती हैं कि प्रारंभ में तो मंदिर निर्माण एक कल्पना से दिख रही थी।
लेकिन डॉ अशोक सिंह, निभा प्रकाश, शंकर सिंह, हेमचंद्र झा, निर्मल झा, संजय कुमार, ललन, नथुनी शाह, बसंती मिश्रा सहित समस्त ग्रामीणों के सहयोग से यह कार्य आज पूरा होने को है। उन्होंने अपील किया कि 24 तारीख को इस महापर्व में शामिल होकर कार्यक्रम को सफल बनाएं और शंकराचार्य धाम हरिपुर बख्शी टोल को विश्व के मानचित्र पर कला संस्कृति के केंद्र के रूप में विकसित करें।