पूर्णियाँ विश्वविद्यालय, पूर्णियाँ की अधिषद (सीनेट) ने ध्वनिमत से डॉ सजल द्वारा रचित संगीतबद्ध गीत को पूर्णियाँ विश्वविद्यालय के “कुल-गीत” के रूप में किया अंगीकार।
ऐतिहासिक निर्णय व ऐतिहासिक उपलब्धि,
किशनगंज/धर्मेन्द्र सिंह, ऐतिहासिक निर्णय व ऐतिहासिक उपलब्धि, पूर्णियाँ विश्वविद्यालय, पूर्णियाँ की अधिषद (सीनेट) ने ध्वनिमत से मेरे द्वारा रचित व संगीतबद्ध गीत को पूर्णियाँ विश्वविद्यालय के “कुल-गीत” के रूप में अंगीकार कर लिया। महामहिम राज्यपाल-सह-कुलाधिपति के प्रतिनिधि के रूप में माननीय कुलपति प्रोफेसर राज नाथ यादव 07 मार्च, 2022 को सीनेट की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। कुलसचिव डॉ.आर.एन.ओझा व सीनेट के सम्मानित सदस्यों की गरिमामयी उपस्थिति थी। सीनेट के सदस्यों ने डॉ. सजल प्रसाद, एसोसिएट प्रोफेसर व अध्यक्ष, हिंदी विभाग मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज के द्वारा रचित व संगीतबद्ध गीत को पहले डॉ. सजल व छात्राओं को साज के साथ गायन करने की अनुमति दी और सुनने के बाद ही इसे ‘कुल-गीत’ के रूप में अंगीकार करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।
माननीय कुलपति की अध्यक्षता में सीनेट की हुई इस द्वितीय बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि अब पूर्णियाँ विश्वविद्यालय एवं इसके क्षेत्रान्तर्गत सभी अंगीभूत व सम्बद्ध महाविद्यालयों के सभी कार्यक्रमों में ‘कुल-गीत’ का गायन किया जाएगा। पूर्णियाँ विश्वविद्यालय का ‘कुल-गीत’ रचने व संगीतबद्ध करने के लिए माननीय कुलपति प्रोफेसर आर.एन.यादव व सीनेट के सम्मानित सदस्यों ने मंच पर ही डॉ. सजल को सम्मान दिया।
आप भी ‘कुल-गीत’ सुनें ..
पूर्ण अरण्य की धरती पर,
ज्ञान का दीप जलाएंगे,
सबको शिक्षा, सबका मान,
ऐसी रीत चलाएंगे।
वेद-पुराण में इसकी गाथा,
माटी इसका चन्दन है,
गंगा कोसी महानन्दा,
पुण्य-धरा का वन्दन है।
रेणु के इस मैला आँचल,
द्विजदेनी भोला आएंगे,
अनूप-भादुड़ी-द्विज धरा को,
बनफूल लक्ष्मी सजाएंगे।
पूर्ण अरण्य की धरती पर,
ज्ञान का दीप जलाएंगे,
सबको शिक्षा, सबका मान,
ऐसी रीत चलाएंगे।
मिथिला अंग की भाषा प्रांजल,
कोसी का यह आँचल है,
पुरखों की ही मेहनत से,
धरती शस्य श्यामल है।
धरती से अम्बर तक हम,
ध्वज कुल का लहराएंगे,
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण,
ज्ञान की गंगा बहाएंगे।
पूर्ण अरण्य की धरती पर,
ज्ञान का दीप जलाएंगे,
सबको शिक्षा, सबका मान,
ऐसी रीत चलाएंगे।
सदियों से हम मिल के रहते,
शांति का पैगाम है,
दुनिया ले रही है करवट,
इल्म से मिलता मुकाम है।
घर-घर फैले ज्ञान की आभा,
यह माहौल बनाएंगे,
विश्व-गुरु हो अपना भारत,
यह संकल्प दुहराएंगे।
पूर्ण अरण्य की धरती पर
ज्ञान का दीप जलाएंगे,
सबको शिक्षा, सबका मान,
ऐसी रीत चलाएंगे।
ध्यातव्य शब्द-संकेत :
पूर्ण अरण्य-पूर्णियाँ
रेणु-आंचलिक कथा सम्राट फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
(फारबिसगंज अनुमंडल निवासी)
मैला आँचल-कालजयी आंचलिक उपन्यास
द्विजदेनी-साहित्यकार, शिक्षक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी पं. रामदेनी तिवारी ‘द्विजदेनी’ (फारबिसगंज निवासी)
भोला-भोला पासवान शास्त्री, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार (पूर्णियाँ निवासी) अनूप-साहित्यकार व बिहार हिन्दी अकादमी के प्रथम अध्यक्ष अनूप लाल मंडल (पूर्णियाँ निवासी)
भादुड़ी-उपन्यासकार सतीनाथ भादुड़ी (पूर्णियाँ निवासी)
द्विज-साहित्यकार जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’, पूर्व प्रधानाचार्य, पूर्णियाँ कॉलेज, पूर्णियाँ।
लक्ष्मी-साहित्यकार व बिहार विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’ (चंदवा, पूर्णियाँ निवासी)
बनफूल-साहित्यकार बलाई चंद मुखोपाध्याय ‘बनफूल’ (मनिहारी, कटिहार निवासी)