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पत्रकारों पर हमला पहले तो अपराधी करते थे, और अब पुलिस…

क्यो की एक भारतीय नागरिक के रूप मे मैं इस बात से भयभीत हु कि जब पत्रकार को संविधान के अनुच्छेद 19 मे विर्णित अभिव्यक्ति का अधिकार नही मिल पा रहा हैं तो मेरा क्या होगा ये एक सवाल है जो मै आपके समक्ष छोड़ रहा हुुं।जवाब जरूर तलाशियेगा ।

पटना फुलवारी की आए दिन पत्रकार पर हमला हो रहा है।पहले तो अपराधी करते थे, और अब पुलिस।थानेदार भी पत्रकारों पर जुल्म करना शुरु कर दिए हैं।इस बात को सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।एक तरफ जहां पत्रकार को चौथा स्तंभ कहा जाता हैं, दूसरे ओर गाली दिया जा रहा है।यह कहाँ से न्याय है ? कब तक पत्रकार सहन करते रहेंगें ? जब कानून वाले ही कानून को ताक पर रख दिए हैं।आपको मालूम हो कि मसूद आलम, जामी पत्रकार के साथ जो भी बदसलूकी फुलवारी थाने पर की गयी, वह खेदजनक समाचार है।पत्रकार जब तक एक नहीं होंगे, तब तक कोई भी इसी प्रकार अपमानित करता रहेगा।यह पत्रकार के लिए चिन्ता के विषय है।डीजीपी बिहार के आदेश का पालन नहीं हो रहा है।या युं कह ले कि दोनो मे समानता केवल ही थी, कि दोनो के दोनो हमारे भारतीय संविधान मे स्वतंत्रता का अधिकार जो हमारे मूल अधिकारो में सम्मिलित है और जिसकी 19, 20, 21 और 22 क्रमांक की धाराए नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ 6 प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करती है जिसे हर भारतीय का जन्म सिद्ध अधिकार बताया गया है।यहाॅ ये उल्लेख करना जरूरी था क्योकी हम बात कर रहे है एक पत्रकार की, जो व्यवथापिका न्यायपालिका और कार्यपालिका के बाद भारतीय लोकतंत्र का चैथा स्तंभ है।पत्रकार को, समाज का दर्पण भी कहा जाता है वो इसलिये, क्योकी जो समाज मे चल रहा है पत्रकार उसका मूल्यांकन करता हैं और समाज मे उससे संबधित सत्य को पहुंचाता है पर जब वही दर्पण, कुछ विकृत मांसिकता वाले हथियारो से चकनाचूर होने लगे तो ये सवाल ज़ेहन मे उठना लाज़़मी है कि जब कलमकार को ही, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नही है तो आम जनता को कैसे मिलेगी ? 

रिपोर्ट-रणजीत कुमार सिन्हा

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