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किशनगंज के राष्ट्रीय राजमार्गों पर ‘एंट्री माफिया’ का राज

बिना चढ़ावे के नहीं मिलती राह, कोड व पासवर्ड से चलता है खेल

किशनगंज,16दिसम्बर(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह/फरीद अहमद, जिले से गुजरने वाली राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहन चलाना अब केवल सड़क नियमों का पालन भर नहीं रह गया है। यहां ट्रक और बड़े मालवाहक वाहनों को एक अदृश्य लेकिन संगठित एंट्री माफिया के बनाए नियमों का पालन करना पड़ता है। बिना ‘शुल्क’ दिए आगे बढ़ने की कोशिश करने पर चालकों के साथ मारपीट, लूटपाट और वाहन रोकने जैसी घटनाएं आम बताई जा रही हैं।

जिले से होकर गुजरने वाले दो प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग— एनएच-27 (पूर्णिया–सिलीगुड़ी) और
एनएच-327ई (अररिया–सिलीगुड़ी, कोचाधामन–बहादुरगंज–ठाकुरगंज–गलगलिया मार्ग) इन दिनों कथित तौर पर एंट्री माफियाओं के कब्जे में हैं।

सामान के हिसाब से तय होता है ‘रेट’

सूत्रों के अनुसार, इन राजमार्गों से गुजरने वाले वाहनों से लोड किए गए सामान के प्रकार के आधार पर वसूली की जाती है। तय रेट से कम राशि देने या भुगतान से इनकार करने पर वाहन को आगे बढ़ने नहीं दिया जाता। कई मामलों में जब चालक चोरी-छिपे वाहन निकालने का प्रयास करते हैं, तो माफिया उन्हें रोककर मारपीट तक करता है।

कोड–पासवर्ड से मिलती है ‘अनुमति’

इस अवैध व्यवस्था को और भी संगठित बनाने के लिए माफियाओं ने कोड सिस्टम विकसित कर रखा है। चढ़ावा देने के बाद चालकों को एक पासवर्ड या कोडवर्ड बताया जाता है। यदि रास्ते में कोई रोके—चाहे वह सिंडिकेट का सदस्य हो या कभी-कभी पुलिस—तो चालक वही कोड बता देता है, जिसके बाद वाहन को तुरंत छोड़ दिया जाता है।

हर दिन बदलता है कोड

सूत्र बताते हैं कि माफियाओं के कोड भी तय हैं और रोज बदलते हैं—

  • ‘मेजर’ : ओवरलोड वाहनों के लिए
  • ‘ब्लैक गोल्ड’ : मवेशी लदे वाहनों के लिए
  • ‘सफा’ : कोयला लदी गाड़ियों के लिए

इसी तरह बालू, पत्थर, राख (ऐश) समेत अन्य मालवाहक गाड़ियों के लिए भी अलग-अलग कोड और रेट निर्धारित हैं।

सैकड़ों गाड़ियां रोज पार

बताया जाता है कि हर दिन सैकड़ों की संख्या में कोयला, मवेशी, बालू, पत्थर और राख से लदे वाहन इन राजमार्गों से गुजरते हैं। प्रत्येक वाहन से अलग-अलग दर पर वसूली होती है, जिससे माफियाओं का नेटवर्क करोड़ों के अवैध कारोबार में तब्दील हो चुका है।

भूटान और सिक्किम तक जाती है राख

किशनगंज के रास्ते विभिन्न पावर प्लांटों से निकलने वाली राख (फ्लाई ऐश) की गाड़ियां पश्चिम बंगाल, सिक्किम और भूटान के सीमेंट कारखानों तक पहुंचती हैं। लेकिन इन गाड़ियों को भी किशनगंज पार करने के लिए एंट्री माफिया को भुगतान करना अनिवार्य बताया जाता है।

रसूखदारों की छाया में सिंडिकेट

सूत्रों का दावा है कि इस पूरे खेल के पीछे सफेदपोश माफिया हैं, जिनकी राजनीतिक रसूखदारों, प्रशासनिक महकमे और तंत्र के कुछ हिस्सों से गहरी सांठगांठ है। यही कारण है कि कभी-कभार कार्रवाई होने के बावजूद असली सरगना कानून के शिकंजे से बाहर रह जाते हैं।

सवालों के घेरे में प्रशासन

राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे संवेदनशील मार्गों पर खुलेआम चल रहा यह खेल कई गंभीर सवाल खड़े करता है—

  • क्या प्रशासन को इस सिंडिकेट की जानकारी नहीं?
  • यदि है, तो अब तक ठोस कार्रवाई क्यों नहीं?
  • आखिर कब तक चालक और ट्रांसपोर्टर इस अवैध वसूली के शिकार होते रहेंगे?

किशनगंज के राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल रहा यह ‘कोड–कनेक्शन’ का खेल अब महज अफवाह नहीं, बल्कि एक संगठित तंत्र का संकेत देता है, जिसकी निष्पक्ष जांच समय की मांग बन चुकी है।

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