सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा और सेना की नई तैनाती
बांग्लादेश-पाकिस्तान सैन्य संपर्कों के बीच भारत का बड़ा रणनीतिक कदम

किशनगंज/सिल्लीगुड़ी,29नवंबर(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, पूर्वोत्तर भारत को मुख्यभूमि से जोड़ने वाली महत्त्वपूर्ण जीवनरेखा — सिलीगुड़ी कॉरिडोर — एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति के केंद्र में है। हाल के दिनों में बांग्लादेश और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों की बढ़ती निकटता को भारत ने बेहद गंभीर संकेतों के रूप में लिया है। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय सेना ने इस संवेदनशील क्षेत्र की सुरक्षा को अभूतपूर्व स्तर पर सुदृढ़ करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं।
तीन नए सैन्य स्टेशन: रणनीतिक तैयारी का नया अध्याय
खुफिया सूत्रों के अनुसार, सेना ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर और बांग्लादेश सीमा के निकट तीन नए सैन्य स्टेशन/गैरिसन स्थापित किए हैं—
- बामुनी (असम)
- किशनगंज (बिहार)
- चोपड़ा (पश्चिम बंगाल)
इन ठिकानों का चयन कॉरिडोर की भौगोलिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर किया गया है। चरम स्थिति में ये गैरिसन सेना और बीएसएफ को फास्ट, फ्लेक्सिबल और मल्टी-डायमेंशनल जवाबी क्षमता प्रदान करेंगे।
‘चिकन नेक’: देश की सबसे पतली धमन
22 किलोमीटर से भी संकरी यह पट्टी भारत को उसके आठों पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ती है। यहां किसी भी प्रकार की बाधा न केवल सैन्य आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकती है, बल्कि अरबों रुपये के व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता को भी खतरे में डाल सकती है।
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के अनुसार, “यह भारत की कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी ताकत है — क्योंकि इस क्षेत्र में तीन दिशाओं से हमारी तैनाती किसी भी खतरे को स्थिर रहने नहीं देती।”
बदलते समीकरण: क्यों बढ़ी चिंता?
बांग्लादेश में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद लगातार बदल रहा राजनीतिक परिदृश्य भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इसी बीच ढाका में बांग्लादेश के अस्थायी चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के प्रमुख जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा की मुलाकात ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को और सतर्क किया है। भारत इसे महज कूटनीतिक औपचारिकता के बजाय उभरते क्षेत्रीय समीकरणों का संकेत मान रहा है।
किशनगंज: संवेदनशीलता और सामरिक महत्व
बिहार का किशनगंज, जहां लगभग 70% मुस्लिम आबादी निवास करती है, बांग्लादेश सीमा से केवल 23 किलोमीटर दूर है। गृह मंत्री अमित शाह सहित कई केंद्रीय मंत्री इस क्षेत्र का लगातार दौरा कर चुके हैं और इसकी रणनीतिक उपयोगिता को रेखांकित कर चुके हैं। केंद्रीय नेतृत्व स्पष्ट कर चुका है कि— “सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं होगा।”
यही कारण है कि किशनगंज सहित सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य उपस्थिति को अब स्थायी और शक्तिशाली संरचना का रूप दिया जा रहा है।
सुरक्षा ढांचे में बड़ा अपग्रेड
नई तैनाती के साथ-साथ सीमा प्रबंधन को हाई-टेक और मल्टी-लेयर्ड सुरक्षा रिंग में बदल दिया गया है।
मुख्य अपग्रेड में शामिल हैं—
- उच्च क्षमता वाले ड्रोन निगरानी सिस्टम
- डिजिटल वॉच टावर और सेंसर नेटवर्क
- फास्ट रेस्पॉन्स यूनिट्स की तैनाती
- उन्नत बाड़बंदी और सीमा प्रबंधन सिस्टम
- रियल-टाइम इंटेलिजेंस शेयरिंग सिस्टम
ये सभी उपाय संकेत देते हैं कि भारत अब इस कॉरिडोर को लेकर शून्य-जोखिम नीति पर काम कर रहा है।
भारत का स्पष्ट संदेश: नॉर्थ ईस्ट की नब्ज को कोई छू नहीं सकता
सिलीगुड़ी कॉरिडोर सिर्फ एक भूगोल नहीं, बल्कि भारत की सामरिक जीवनरेखा है। बांग्लादेश-पाकिस्तान की नजदीकी के संकेतों के बीच भारत ने जिस तेजी से अपनी रणनीति को अपडेट किया है, वह साफ दर्शाता है कि भारत किसी भी संभावित खतरे को पूर्व-निष्प्रभावी करने की क्षमता और इच्छा दोनों रखता है।
उन्नत निगरानी, मजबूत सैन्य ढांचा और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता के साथ अब सिलीगुड़ी कॉरिडोर पहले से कहीं अधिक सुरक्षित, सक्षम और भविष्य-तैयार हो चुका है।


