“शिक्षा की अंधेरी गली: किशनगंज के सरकारी स्कूलों में उजाले की उम्मीद कब?”
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य सिर्फ उनके हाथों में नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जिम्मेदारी में है। यदि अब भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाली पीढ़ियां चमचमाते स्कूल भवनों के भीतर अज्ञान के अंधेरे में ही भटकती रहेंगी।

किशनगंज,22मई(के.स.)। धर्मेन्द्र सिंह, सरकार की योजनाओं की फेहरिस्त जितनी लंबी है, जमीनी हकीकत उतनी ही चौंकाने वाली। बिहार के सीमावर्ती जिले किशनगंज से आई ताजा खबर न केवल शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती है, बल्कि एक पूरे तंत्र की निष्क्रियता पर कठोर सवाल खड़े करती है। किशनगंज जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय से महज 400 मीटर की दूरी पर स्थित राजकीय कन्या मध्य विद्यालय (डे मार्केट) में 7वीं और 8वीं कक्षा के बच्चे “Sunday”, “Monday” जैसे बुनियादी अंग्रेजी शब्द भी ठीक से नहीं लिख पाए।
यह दृश्य तब सामने आया जब एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें छात्रों को सप्ताह के सातों दिन के नाम अंग्रेजी में ब्लैकबोर्ड पर लिखने को कहा गया। इस बेहद सामान्य-सी लगने वाली परीक्षा में छात्रों की विफलता ने पूरे जिले की शिक्षा व्यवस्था को कटघरे में ला खड़ा किया है।
सिर्फ एक स्कूल नहीं, ये एक सिस्टम की असफलता है
यह समस्या किसी एक स्कूल या एक शिक्षक तक सीमित नहीं है। यह शिक्षा व्यवस्था में मौजूद उस दीमक का नतीजा है, जो वर्षों से सरकारी योजनाओं को कागजों पर सफल दिखाने में लगी रही, लेकिन कक्षाओं की हकीकत तक कभी पहुंची ही नहीं। बुनियादी शिक्षा कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान, समग्र शिक्षा योजना – नामों की भरमार है, लेकिन परिणाम शून्य के आसपास।
शिक्षा या सिर्फ औपचारिकता?
राजद विधायक इजहारूल हुसैन ने इस मामले को “शिक्षा के नाम पर मजाक” करार दिया। उनका कहना है कि शिक्षक स्कूल आकर सिर्फ हाजिरी दर्ज करवा लेते हैं और बच्चों की पढ़ाई से उनका कोई वास्ता नहीं होता। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब 8वीं कक्षा तक के बच्चे प्राथमिक अंग्रेजी भी नहीं जान रहे, तो ऐसे में उनके भविष्य की कल्पना कैसे की जाए?
प्रशासन जागा, लेकिन क्या कुछ बदलेगा?
मामला अब राज्य के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ तक पहुंच चुका है, जिससे उच्चस्तरीय जांच की संभावना जताई जा रही है। जिला शिक्षा पदाधिकारी नासिर हुसैन ने भी इसे गंभीर मामला बताया है और संबंधित विद्यालय के हेडमास्टर से जवाब तलब किया है।
विद्यालय के प्रभारी एचएम प्रशांत दास ने हालांकि सफाई दी कि “बच्चे डर गए होंगे”, लेकिन सवाल उठता है कि यदि डर भी कारण हो, तो यह डर पैदा करने वाला वातावरण किसने बनाया?
भविष्य की ओर देखना जरूरी है
इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य सिर्फ उनके हाथों में नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जिम्मेदारी में है। यदि अब भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाली पीढ़ियां चमचमाते स्कूल भवनों के भीतर अज्ञान के अंधेरे में ही भटकती रहेंगी।
किशनगंज की यह घटना एक चेतावनी है – समय रहते सिस्टम नहीं बदला गया, तो सिर्फ विद्यालय नहीं, पूरा समाज अनपढ़ भविष्य की ओर बढ़ेगा।