हथकरघा-आत्म निर्भर भारत का एक सोपान

पटना/त्रिलोकीनाथ प्रसाद, भारत में हथकरघा का पुरातन एवं गौरवशाली इतिहास रहा है जिसपर भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है।भारत के बुनकरों द्वारा तैयार किए गये कपड़ों की मांग देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रही है।18वीं सदी के उतरार्ध एवं उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक यहाँ के वस्त्र उद्योग की तूती पूरी दुनिया में बोलती थी।यहाँ के बुनकरों द्वारा तैयार किए गये रेशम और मखमल के कपड़े इंग्लैंड में काफी पसंद किये जाते थे।यहाँ तक कि वहाँ की महारानी भी भारतीय बुनकरों द्वारा तैयार वस्त्रों को पहचाने में गर्व महसूस किया करती थी परंतु औद्योगिक क्रांति ने भारतीय वस्त्र उद्योग की कमर को तोड़ कर रख दिया। भारतीय बुनकर आर्थिक दृष्टि से कमजोर और बिखरे हुए थे। वे मशीनों से प्रतिस्पर्धा कर सकने में असफल रहे।ईस्ट इंडिया कंपनी इंग्लैंड के वस्त्र उद्योगों के लिए भारत में पैदा होने वाले कपास, रेशम इत्यादि कच्चा माल वहाँ भेज दिया करती थी।जिससे भारतीय बुनकरों को कच्चे माल का अभाव हो जाता था।अन्ततः वे खेती के पेशा को अपना कर किसान बन गये। उनकी संख्या तब अत्यंत कम हो गई।इसके बावजूद भी भारतीय हथकरघा द्वारा तैयार कपड़ों का एक अलग आकर्षण बना रहा।
तीसरी हथकरघा गणना (2009-10) के अनुसार भारत में लगभग 43.31 लाख लोग हथकरघा उद्योग से जुड़े हुए हैं जिसमें 77% महिलाएँ हैं।कृषि के बाद यह ग्रामीण भारत में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है और भारत के कुल कपड़ा उत्पादन का 15% हिस्सा इसके द्वारा उत्पादित किया जाता है।
2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुनकरों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को जाना और उसे दूर करने का भरोसा दिलाया इससे उनमें एक नई उम्मीद जागृत हुई।इसके बाद से उनकी स्थिति को सुधारने एवं भारतीय हथकरघा उद्योग का पुराना गौरव वापस लाने के लिए सरकारी स्तर पर कई प्रयास किये गये।बुनकरों को प्रशिक्षित करने एवं उनके उत्पादों को बाजारों तक आसानी से पहुँचाने के लिए कई योजनाए चलाई गई तथा इस उद्योग को समृद्ध करने का प्रयास अब तक जारी है।देश में जगह-जगह बुनकर सेवा केन्द्र स्थापित किये गये हैं।जो बुनकरों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ ही एकल खिड़की सेवा केन्द्र भी बने हुए हैं।इसी कड़ी में सरकार ने 29 जुलाई 2015 को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में अधिसूचित किया।गुलाम भारत में बंगाल विभाजन के विरोध करने और घरेलू उत्पाद एवं उत्पादन इकाईयों को नया जीवन प्रदान कर उन्हें मजबूत करने के लिए 7 अगस्त 1905 के दिन ही स्वदेशी आन्दोलन का आरम्भ हुआ था।इसी दिन की याद में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के लिए चयनित किया गया।इस बार देश पांचवा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मना रहा है।इस वर्ष मुख्य कार्यक्रम का आयोजन भुवनेश्वर में किया गया है।भारत के कुल बुनकरों की लगभग 50% आबादी पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रों में निवास करती है जिनमें अधिकतर महिलाएं एवं बालिकाएं हैं।अतः भुवनेश्वर का चयन इस बात को ध्यान में रख कर ही किया गया है।
हथकरघा उद्योग बुनकरों के अतिरिक्त कपास, रेशम, ऊन इत्यादि रेशा उत्पादकों के लिए भी आय का प्रमुख स्रोत है।आज जब हर भारतवासी आत्मनिर्भर भारत का सपना देख रहा है तो ऐसे में हमारा हथकरघा उद्योग इसमें एक सोपान बन रहा है।यह उद्योग आज लाखों लोगों को रोजगार प्रदान कर उनकी जीविका का साधन बना हुआ है।पश्चिम बंगाल, असम की महिला बुनकरों द्वारा तैयार किया जाने वाला गमछा आज फुटपाथों पर सजे मशीनों से बनी चीनी तौलियों को चैलेंज देने के लिए बेकरार है और यदि इन बुनकरों को बढ़वा मिला तो वो दिन दूर नहीं जब इन चीनी और अन्य विदेशी उत्पादों की जगह हमारा हैण्लुम उत्पाद ले लेगा।भारत में ये गमछा किसान , मजदूर से लेकर धनवनों एवं रईशों तक में लोकप्रिय है।इसी प्रकार इन बुनकरों द्वारा बुनी हुई साड़ियों की भी बड़ी मांग है। उत्तर प्रदेश के बनारस एवं आजमगढ़ की बनारसी साड़ियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं।बिहार का भागलपुर भी रेशमी साड़ियों के उत्पादन के लिए जाना जाता है।दक्षिण भारत भी साड़ियों के उत्पाद का केन्द्र रहा है।जरूरत यह है कि हमारे बुनकरों की और हथकरघा उद्योग की मुश्किलों को चिन्हित कर उसे दूर किया जाए ताकि आने वाले समय में ये अपने अधिक से अधिक उत्पादों को विदेशी बाजर में पहुँचा सके जिससे देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त हो और हमारे बुनकरों की आय बढ़ सके।इसके लिए हम भारतीयों को भी आगे आना होगा। हमें इस उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए इसके उत्पादों को अपनाना होगा।इस संदर्भ में प्रथम हथकरघा दिवस के अवसर पर हमारे प्रधानमंत्री ने अपील किया था कि देश के सभी परिवार कम से कम एक खादी और एक हथकरघा उत्पाद जरूर रखें।इस क्रम में केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने सोशल मीडिया पर ‘आई वियर हैण्डलूम’ अभियान की शुरुआत किया था जिसका देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों ने समर्थन भी किया था।उम्मीद है आने वाले दिनों में हमारा हथकरघा उद्योग भारत की सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए एक नई ताकत बन कर उभरेगा और भारतीय कपड़ा बाज़ार को विदेशी वस्त्र से मुक्त कराने के लिए ठीक वैसी ही ऊर्जा प्रदान करेगा जैसी स्वदेशी आंदोलन के दिनों में भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराने के लिए किया था और आत्म निर्भर भारत के सपने को सकार कर सकने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगा।
सुनिता कुमारी ‘गुंजन’