देशराज्य

शिवाजी की मूर्ति का वायरल सच…

  • क्या शिवाजी की ये मूर्ति मुंबई की ढाल भी होगी ?
  • मुंबई के अरब सागर में समंदर तट से डेढ़ किलोमीटर अंदर छत्रपति शिवाजी की मूर्ति की ऊंचाई करीब 630 फीट होगी।लेकिन क्या ये मूर्ति मुंबई को आतंक के खतरे से भी बचाएगी ?
  • क्या 3600 करोड़ की लागत से समंदर के सीने पर खड़ी होने जा रही छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति सिर्फ एक स्टैच्यू नहीं है ?
  • क्या ये मूर्ति मुंबई की महारक्षक बनने वाली है ?
  • क्या समंदर वाली शिवाजी की मूर्ति मुंबई का बिजलीघर बनने वाली है ?
  • क्या समंदर वाली शिवाजी की मूर्ति जनरेटर टर्मिनेटर बनने वाली है ?
  • समंदर वाली शिवाजी की मूर्ति सूर्यमित्र और आतंक संहारक बनने वाली है ?

क्या समंदर में बन रही एक मूर्ति मुंबई शहर को रौशन कर सकती है।शहर की तरफ बढ़ने वाले आतंक का विनाश कर सकती है।ये सवाल हैरान करने वाले हैं लेकिन ये दावा मुंबई के समंदर में तैयार होने जा रही छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति के बारे में किया जा रहा है।समंदर की लहरों के बीच अपनी भव्यता की गवाही देगा छत्रपति शिवाजी महाराज का ये स्मारक।ये मूर्ति मुंबई शहर की शान होगी।लेकिन आप सोच रहे होंगे कि भला ये सवाल एक मूर्ति के साथ क्यों जोड़े जा रहे हैं ? इन सवालों के पीछे सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा वो मैसेज है जो ना सिर्फ दावे कर रहा है बल्कि दावों को सच साबित करनेवाली एक कहानी भी सुना रहा है।वायरल मैसेज में क्या लिखा है देखिए-सबसे ऊपर लिखा है शिवाजी की मूर्ति-क्या आइडिया है सर जी।बहुत सारे लोग शिवाजी की मूर्ति के बारे में चर्चा कर रहे हैं लेकिन जो वो नहीं जानते वो ये कि मूर्ति मोदी जी का मास्टरस्ट्रोक है जो आनेवाले वक्त में अपनी लागत से कई गुना ज्यादा अदा करेगा।

पहला दावा

मूर्ति amorphous silicon,cadmium telluride,और copper indium gallium selenide से बनी है।ये वो मैटेरियल है जो सोलर सेल्स बनाने में इस्तेमाल होते हैं।हमारी सरकार ने फिनलैंड में वीटीटी रिसर्च के सीनियर सोलर साइंटिस्ट डॉ इमोनेन किरसी से सलाह ली है।जो ऐसे मैटेरियल स्टैच्यू में डालने की तकनीक जानते हैं।दावा है कि इस रिसर्च में ढाई साल का वक्त लगा और 3 दिसंबर वो तारीख थी जब डॉ किरसी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक प्राइवेट मेल भेजा जिसमें लिखा था कि ये अब मुख्यधारा में इस्तेमाल के लिए ये तैयार है दावे के मुताबिक ये स्टैच्यू इतनी बिजली पैदा करेगा कि मुंबई के सभी सरकारी दफ्तरों में बिजली की जरूरत पूरी हो जाएगी।इस कहानी में एक और दावा है आतंक के संहार के बारे में है।

दूसरा दावा

दावा ये कि स्टैच्यू में रेडियल यूनिफॉर्म प्रोजेक्शन एंड रेंजिंग यानि (RUPAR) तकनीक है जो अरब सागर में नाव को ट्रेस कर सकती है ताकि फिर कभी साल 2008 जैसा मुंबई हमला ना हो जिसमें आतंकवादी देश में समंदर के रास्ते घुसे थे।रुपर सोनार तकनीक से भी आगे की चीज है औऱ ये बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान में तैयार की गई है।दावे चौंकाने वाले हैं लेकिन हर दावे के साथ एक तर्क और रिसर्च की कहानी भी पेश की जा रही है यही वजह है कि लोग इस मैसेज को पढ़ने के बाद खारिज नहीं कर पा रहे हैं।लेकिन मैसेज में लिखे तर्क और रिसर्च सच हों ये जरूरी तो नहीं. इसलिए एबीपी न्यूज ने वायरल हो रहे मैसेज की पड़ताल की. हमने जानने की कोशिश की कि मुंबई को करंट देने वाली और आतंक से बचाने वाली समंदर वाली शिवाजी की मूर्ति का सच क्या है ?हमने मैसेज का सच जानने के लिए तीन मोर्चों पर पड़ताल की।दावा सोलर एनर्जी के बारे में है इसलिए हमने सौर ऊर्जा के एक्सपर्ट से संपर्क किया जो सौर ऊर्जा पर काम करने वाली कंपनी माईसन के सीईओ गगन वर्मानी हैं।इसके अलावा हमने समुद्र एवं मानव किताब के लेखक और राष्ट्रपति से सम्मानित हो चुके राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के रिटायर्ड चीफ प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर जियालाल जैसवार से से बात की।इस मैसेज का सच बताने के लिए तीसरा चेहरा शिवाजी के स्टैच्यू को डिजायन करनेवाले अनिल राम सुतार हैं।ये वो तीन चेहरे हैं जो हमें इस चौंकाने वाले दावे के सच तक लेकर जाएंगे।हमने सबसे पहले ये जानने की कोशिश की क्या ऐसी कोई तकनीक है जिसके जरिए एक मूर्ति किसी शहर का बिजलीघर बन सकती है ?

सोलर एक्सपर्ट गगन वर्मानी ने बताया,जहां तक तकनीक की बात है,फ्लैट सतह पर भी इस्तेमाल हो सकती है।फ्लेकसिबल शेप में भी इस्तेमाल हो सकते हैं,एक किमी सड़क बनी है फ्रांस में।तकनीक के जरिए संभव है,लेकिन मूर्ति में बनना ठीक नहीं लगता।सालों से सौर ऊर्जा पर काम कर रहे गगन वर्मानी तकनीक के जरिए कुछ हद तक इसे मुमकिन तो बता रहे हैं लेकिन वो इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि इतनी बड़ी मूर्ति में ऐसा कुछ किया जा सकता है।हमने दूसरा सवाल समंदर के एक्सपर्ट जियालाल जैसवार से किया।हम इन्हें समंदर का एक्सपर्ट इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ये समंदर और इंसान पर किताब लिख चुके हैं उस संस्थान का हिस्सा रह चुके हैं जो समंदर के विज्ञान पर काम करता है हमने उनसे पूछा कि क्या एक मूर्ति मुंबई शहर के सरकारी दफ्तरों को बिजली दे सकती है।जियालाल जैसवार ने बताया,‘फिल्म लगानी होगी ताकि एनर्जी रेडियेट हो सके इसके लिए बड़े सिस्टम की जरूरत होगी लेकिन यहां ना तो कोई सिस्टम है ना ही आगे होने की योजना।मूर्ति में ऐसा होगा ये नहीं लगता।यह जो स्मारक बन रहा है उसका मकसद पर्यटको को आकर्षित करना है ना की बिजली उत्पादन।हमारे एक्सपर्ट मूर्ति से करंट मिलने वाली बात को खारिज कर रहे थे लेकिन वायरल मैसेज में तो तर्क भी पेश किए गए थे इसलिए हमने फिर से अपने सोलर एक्सपर्ट से पूछा कि मैसेज में जिन मैटेरियल की बात की गई है क्या वो वाकई सौर ऊर्जा बनाने में इस्तेमाल होते हैं।तो उन्होंने बताया,जिन मैटेरियल की बात हो रही है बाजार में जो 3-4 तकनीक मौजूद है उसमें एमॉर्फस तकनीक सबसे कमजोर मानी जाती है।तो उस तकनीक को एक स्टैच्यू के लिए इस्तेमाल करना गलत लगता है।

कहानी आगे बढ़ रही थी और दावे कमजोर साबित होते जा रहे थे।पहला दावा झूठ की तरफ बढ़ने लगा था हमने दूसरे दावे के बारे में यानि समंदर में नाव ट्रेस करने को लेकर सवाल पूछा-कि क्या शिवाजी की मूर्ति दुश्मनों को मुंबई तक पहुंचने से रोक सकती है ? तो जियालाल जैसवार ने बताया,‘नावों को ट्रैक करने के लिए इंडियन नेवी के पास तमाम संसाधन है।एक्सपर्ट ने दोनों दावे खारिज कर दिए थे लेकिन हमें एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जिसकी बात आखिरी मुहर साबित हो।ये तलाश पूरी हुई अनिल राम सुतार पर अनिल राम सुतार ने ही छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति का डिजायन तैयार किया है।अनिल राम सुतार देश के बहुत बड़े शिल्पकार हैं और पद्मभूषण से सम्मानित हो चुके हैं इस मामले में अनिल राम सुतार ने हमसे कैमरे पर तो बात नहीं की लेकिन ये जरूर कहा कि तांबा इकलौता ऐसा मटेरियल है जो मौसम में होनेवाले बदलाव में 1000 साल तक जस का तस रह सकता है।जबकि किसी भी सोलर पैनल मटैरियल की उम्र 20 साल से ज्यादा नहीं होती।तो फिर सवाल ये उठता है कि हर 20 साल में इसे कौन बदलेगा और अगले कितने सालों तक आप इसे बदलते रहेंगे ?

हमने उनसे एक आखिरी सवाल पूछा कि क्या आपको मूर्ति की डिजायन करते वक्त किसी तरह की तकनीक को ध्यान में रखते हुए डिजायन करने को कहा गया था।इस सवाल के जवाब में उन्होंने हमसे कहा कि किसी भी तरह की तकनीक को ध्यान में रखते हुए उन्हें मूर्ति को डिजायन करने के लिए नहीं कहा गया था और मूर्ति में सिर्फ कॉपर का ही इस्तेमाल होगा बाकी जो मैटेरियल बताए जा रहे हैं उनका नहीं,अनिल राम सुतार ने ये भी कहा कि ये सिर्फ एक झूठ है।अगर सोलर एक्सपर्ट कह रहे हैं कि मूर्ति करंट नहीं दे सकती।अगर समंदर विज्ञान पर काम कर चुके वैज्ञानिक कह रहे हैं कि मूर्ति समंदर में नावों को ट्रेस नहीं कर सकती।अगर मूर्ति की डिजायन तैयार करने वाले शिल्पकार कह रहे हैं कि उन्होंने इसे ध्यान में रखकर मूर्ति तैयार नहीं की।तो इसका मतलब ये कि शिवाजी की मूर्ति के बारे में जो दावा है वो गलत है।

रिपोर्ट:-न्यूज़ रिपोटर 

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