एईएस/जेई के ख़िलाफ़ जंग में सतर्क हुआ स्वास्थ्य विभाग

रोकथाम के लिए सामुदायिक स्तर पर लोगों में जागरूकता जरुरी, चिन्हित क्षेत्रों के स्वास्थ्य केन्द्रों में उपलब्ध कराई जा रही सुविधाएं, बच्चों के दिनचर्या में सुधार से रोग पर नियंत्रण संभव।
नवादा राज्य के विभिन्न हिस्सों से एईएस (एक्यूट इन्सेफ़लाईटीस सिंड्रोम) एवं जेई (जापानी इन्सेफ़लाईटीस) से पीड़ितों की संख्या में अचानक हुई बढ़ोतरी की खबर को जिला स्वास्थ्य विभाग ने गंभीरता से लिया है।इसके लिए जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण विभाग जिले के एईएस/जेई प्रभावित क्षेत्रों में रोग के प्रति सामुदायिक जागरूकता को बढ़ाने पर विशेष रूप से कार्य रही है।साथ ही पीड़ित बच्चों को बेहतर ईलाज मुहैया कराने के लिए जिले के स्वास्थ्य केन्द्रों में समस्त सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी है।जिला सिविल सर्जन श्रीनाथ प्रसाद ने बताया कि राज्य के अन्य जिलों में एईएस एवं जेई के बढ़ते मरीजों को देखते हुए जिले में भी अलर्ट जारी किया गया है।इसके लिए जिला वेक्टर बोर्न जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. उमेश चंद्र की निगरानी में कोर कमेटी का गठन किया गया है।साथ ही चिकित्सकों को एईएस/जेई पर प्रशिक्षण प्रदान कर हर स्थिति में मुस्तैद रहने के लिए निर्देशित भी किया गया है एवं सामुदायिक स्तर पर रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आशा एवं एएनएम को भी ज़िम्मेदारी दी गयी है।जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. उमेश ने बताया कि अभी तक इस साल जिले में जेई या एईएस के एक भी केस सामने नहीं आया है।गया मे ये बीमारी बरसात के मौसम मे जायदा होता है, इसके बावजूद इस गंभीर रोग से निपटने की तैयारी पूरी कर ली गयी है।इसके लिए जिले के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर किट उपलब्ध करा दिया गया है।साथ ही सामुदायिक स्तर पर रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आशा एवं एएनएम को भी ज़िम्मेदारी दी गयी है।
68 से 75 प्रतिशत एईएस केस में वजह अज्ञात
अमेरिकन जनरल ऑफ़ हेल्थ रिसर्च द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक एईएस होने की पीछे वायरस, बैक्टीरिया, फंगी एवं अन्य टोकसिंस ज़िम्मेदार होते हैं।जेई (जापानी इन्सेफलाईटीस) वायरस से फैलने वाला रोग होता है जिसे सामान्यता एईएस के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है।जेई वायरस के अलावा डेंगू वायरस, एंटेरो वायरस, हर्पिस वायरस एवं मिजिल्स वायरस भी एईएस फ़ैलाते हैं।इनके बावजूद 68 से 75 प्रतिशत एईएस केस में इसके होने की वजह ज्ञात नहीं हो पाती है।
मस्तिष्क ज्वर को जानें
एईएस को मस्तिष्क ज्वर भी कहा जाता है।समय से ईलाज कराने पर यह ठीक हो सकता है।अत्यधिक गर्मी की शुरुआत होने से एईएस से ग्रसित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी शुरू होती है जो बारिश की शुरुआत पर ख़त्म हो जाती है।जबकि जेई की शुरुआत बारिश के बाद शुरू होती है एवं ठंड की शुरुआत होते ही ख़त्म हो जाती है।इनके लक्षणों को जानकर इसका सटीक उपचार संभव है।
- तेज बुखार आना।
चमकी अथवा पूरे शरीर या किसी खास अंग में ऐंठन होना
दांत का चढ़ जाना।
बच्चे का सुस्त होना या बेहोश हो जाना।
शरीर में हरकत या सेंसेशन का खत्म हो जाना।
सामान्य उपचार एवं सावधानियाँ
कुछ उपायों के माध्यम से बच्चे को इस रोग से बचाया जा सकता है।इसके लिए बच्चे को तेज धूप से बचाएं, बच्चे को दिन में दो बार नहाएं, गरमी बढ़ने पर बच्चे को ओआरएस या नींबू का पानी दें, रात में बच्चे को भरपेट खाना खिलाकर ही सुलाएं, तेज बुखार होने पर गीले कपडे से शरीर को पोछें, बिना चिकित्सकीय सलाह के बुखार की दवा बच्चे को ना दें, बच्चे की बेहोशी की हालत में उसे ओआरएस का घोल दें एवं छायादार जगह लिटायें एवं दांत चढ़ जाने की स्थिति में बच्चे को दाएँ या बाएं करवट लिटाकर अस्पताल ले जाएं।इसके अलावा तेज रौशनी से मरीज को बचाने के लिए आँख पर पट्टी का इस्तेमाल करें एवं यदि बच्चा दिन में लीची का सेवन किया हो तो उसे रात में भरपेट खाना जरुर खिलाएं।
बच्चे को मस्तिष्क ज्वर से बचाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरुरी है।
- बच्चों को खाली पेट लीची ना खिलाएं।
अधपके एवं कच्चे लीची बच्चों को खाने नहीं दें।
बच्चों को गर्म कपडे या कम्बल में ना लिटायें।
बेहोशी की हालत में बच्चे के मुँह में बाहर से कुछ भी ना दें।
बच्चे की गर्दन झुका हुआ नहीं रहने दें।
आपातकाल की स्थिति में निःशुल्क एम्बुलेंस के लिए टोल फ्री नंबर 102 पर संपर्क करें।
रिपोर्ट-मिथिलेश कुमार