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आज आजादी के 72वे दिवस पर आइये कुछ संकल्प हम भी ले:-एसपी कुमार आशिष

अक्सर हम सोचते हैं कि एक आम नागरिक कर ही क्या सकता है ? सब कुछ सरकार-प्रशासन-पुलिस या प्रभावशाली व्यक्तियो के हाथ तक ही सीमित होता है। पर आज आजादी के 72वे दिवस पर आइये कुछ संकल्प हम भी ले, एक बेहतर समाज, उन्नत बिहार और सशक्त भारत की परिकल्पना को साकार करने लिये, देश के एक अच्छे और जिम्मेदार नागरिक होने का फर्ज़ निभाये:

  • क्या हम कभी सोचते हैं अपने दायित्वों के बारे में ?
  • क्या कभी हमारे मन में किसी गरीब बच्चे को पढ़ाने का खयाल आता है ?
  • क्या कभी हम किसी भूखे को खाना खिलाते हैं ?
  • क्या हमने कभी बिना किसी स्वार्थ के किसी जरूरतमंद की मदद की है ?
  • क्या कभी शोहदों को सरेराह छेड़छाड़ करते देखकर हमारा खून खौलता है ?
  • क्या कभी हमारे मुंह से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज निकली है ?
  • क्या हमने कभी दहेज लने या देने का विरोध किया है ?
  • क्या हमने कभी किसी सरकारी दफ्तर में अपना काम जल्दी कराने के लिए रिश्वत नहीं दी है ?
  • क्या कोई नियम तोड़ने पर ट्रैफिक पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर हम कॉंस्टेबल की जेब में चंद नोट सरकाकर बच निकलने की जुगत में नहीं रहते ?
  • क्या हमारे मन में सिनेमाघर, बस, टिकट बुकिंग या बैंक की लाइन तोड़कर अपना काम जल्दी कराने की मंशा होती है ?
  • क्या हम बस या ट्रेन में बच्चों-बूढ़ों-महिलाओं को अपनी सीट देते हैं ?
  • क्या हम जरा ठहरकर, सड़क पार करते किसी नेतृहीन की मदद करते हैं ?
  • क्या हम सड़क पर आपस में लड़ते हुए  लोगों को अलग करने की कोशिश करते हैं ?
  • क्या हमने कभी किसी को सार्वजनिक स्थान पर थूकते, कचरा फैलाते या पेशाब करते हुए देखकर टोका है ?
  • क्या अपने से ताकतवर के सामने सिर झुकाने और अपने से कमजोर का सिर अपने सामने झुकवाने की आदत से हम बाज आये हैं ?
  • क्या किसी घर से झगड़े की आवाज सुनकर हमने उसे सुलझाने के बारे में कभी सोचा है ?
  • क्या कभी किसी बाल मजदूर को छुड़ाने की कोशिश की है ?
  • क्या दूसरों का दुख दूर करने और अपनी खुशियां दूसरों में बांटने की भावना हमारे मन में कभी आयी है ?
  • क्या हमने कभी सार्वजनिक स्थानों पर परीक्षाओं के दौरान लाउडस्पीकर बजाये जाने का विरोध किया है ?
  • क्या अफवाहें और सांप्रदायिक तनाव फैलाने वालों का कॉलर पकड़कर हमने कभी उनसे पूछा है कि भई,ऐसा क्यों करते हो ?
  • क्या कभी खराब साइलेंसर वाले किसी बाइकर को फटकार लगाई है ?
  • क्या ऑटो-टैक्सी में ज्यादा सवारी बैठाने वाले ड्राइवर की शिकायत कभी ट्रैफिक पुलिस से की है ?

ऐसे बहुत से सवाल और भी हो सकते हैं। इनके जवाब में बहुत से लोग यह भी कह सकते हैं कि यह क्या हमारा काम है ? सरकार, पुलिस और अदालतें आखिर किसलिए हैं ? मगर, इस सवाल के बाद यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि इन सबके होने के बाजूद ये तमाम हालात आखिर पैदा क्यों होते हैं ? इस सवाल का जवाब ऊपर के सवालों में ही छिपा है। ठीक है, तमाम जिम्मेदारी सिस्टम की है। फिर हमारे दायित्व क्या हैं ? क्या समाज के लिए हमारा कोई सरोकार नहीं है ? क्या हमारी यह सोच सही मानी जा सकती है कि अधिकार हमारे और कर्तव्य सिस्टम के ? जिस दिन हम अधिकारों और कर्तव्यों में सही तालमेल बिठाना सीख जाएंगे, उसी दिन हमारी या कहें कि समाज की ज्यादातर समस्याएं दूर नहीं तो कम जरूर हो जाएंगी।जरा करके तो देखिये…अच्छा महसूस होगा किशनगंज पुलिस आपके साथ आपके लिए।

रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह

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