ताजा खबर

गुरु तेग बहादुर ने अपनी जान दे दी लेकिन मुगलों के आगे झुके नहीं।…

पूनम जायसवाल :-जी हां हम आज बात करने वाले हैं सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर के बारे में, गुरु तेग बहादुर जी का आज शहीदी दिवस है और इतनी गौरव गाथाएं इनसे जुड़ी हुई है कि हर भारतीयों को इससे गर्व होना चाहिए। तो आज हम इन्हीं के बारे में बात करेंगे जिन्होंने अपने धर्म के लिए नहीं बल्कि दूसरे के धर्म के लिए अपनी जान दे दी। उन्हीं के याद में आज 24 नवंबर जिसको शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु तेग बहादुर का जन्म अमृतसर में 21 अप्रैल, 1621को माता नानकी और छठे सिख गुरु, गुरु हरगोविंद के घर हुआ था, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ एक सेना खड़ी की थी। एक लड़के के रूप में, बहादुर को उनके तपस्वी स्वभाव के कारण त्यागमल कहां जाता था। उन्होंने अपना प्रारंभिक बचपन भाई गुरुदास के संरक्षण में अमृतसर में बिताया, जिन्होंने उन्हें गुरुमुखी, हिंदी, संस्कृत और भारतीय धार्मिक दर्शन सीखाया, जबकि बाबा युद्ध में उन्हें तलवारबाजी, तीरंदाजी और घुड़सवारी का प्रशिक्षण दिया। वह लगभग 13 वर्ष के थे जब उसने एक मुगल के खिलाफ लड़ाई में खुद को प्रतिष्ठित किया। युद्ध मे उनकी बहादुरी और तलवारबाजी ने उन्हें तेग बहादुर का नाम दिया। उनका विवाह 1632 में करतारपुर मे माता गुजरी के साथ हुआ था। गुरू तेग बहादुर ने औरंगजेब को संबोधित करते हुए कहा, भले ही मेरा धर्म हिंदू ना हो, मैं भले ही वेदों की श्रेष्ठता, मूर्ति पूजा और दूसरे रीति रिवाजो में यकीन ना करता हूं लेकिन मैं हिंदुओं के सम्मान से रहने और उनके धार्मिक अधिकारों के लिए लड़ता रहूंगा। जैसे ही जलालुदीन से गुरू तेग बहादुर का सिर धर से अलग किया वैसे ही जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर की शहादत हुई थी उसी स्थान पर बाद में शीशगंज गुरुद्वारा बनवाया गया। गुरु के शिष्य जै ता दास ने कटे हुए शीश को इसलिए’ हिंद के चादर ‘ नाम से भी जाना जाता है।
“केवल सच के पूरे परिवार” की तरफ से गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button