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देश में मनरेगा को शुरू हुए 11 साल,लेकिन जिले में इसका सफर अभी आठ साल का ही…

यूं तो देश में मनरेगा को शुरू हुए 11 साल हो चुके हैं लेकिन जिले में इसका सफर अभी आठ साल का ही है।इन आठ सालों में मनरेगा के तहत जिले में 52,919.508 लाख खर्च किए जा चुके हैं तथा औसतन हर साल 87,617 मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराए जा रहे हैं।अगले वित्तीय वर्ष के लिए भी सरकार ने केंद्रीय बजट में अब तक की सबसे अधिक राशि मनरेगा हेतु उपलब्ध कराई है पर विडंबना है कि अभी भी सीमांचल से मजदूरों का पलायन नहीं रुक पाया है तथा हर साल बड़ी संख्या में मजदूर काम की तलाश में दूसरे प्रांतों का रुख कर रहे हैं।आठ सालों में मनरेगा ने नारकीय जिंदगी जी रहे लोगों को कई पगडंडियों से मुक्ति दिलाई,बांध बनवाए, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पेड़ लगवाए गए लेकिन मजदूरों को घर में ही काम उपलब्ध कराने की जिस उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई,वह अभी भी अधूरी है।गांव के हालात बदलने और लोगों के लिए रोजगार के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने फरवरी 2006 को इस महात्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी।पहले इसकी शुरुआत देश के सिर्फ 200 जिलों से की गई थी।लेकिन अप्रैल 2008 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया।जिले में वित्तीय वर्ष 2008-09 से इस योजना की शुरुआत की गई।भारत सरकार इस योजना को दुनिया का सबसे बेहतरीन महात्वाकांक्षी सामाजिक सुरक्षा और जनरोजगार कार्यक्रम बताती है वहीं विश्व बैंक ने भी वर्ष 14 के वल्र्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट में मनरेगा को ग्रामीण विकास का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण बताया था।इस योजना को दुनिया का सबसे बड़ा जॉब स्नोत भी माना जाता है।लेकिन आगे चलकर यह योजना भ्रष्टाचार और विवादों में घिरती गई।इस वजह से केंद्र की इस योजना में प्रदेश का बजट घटता गया।जिले की बात करें तो इसके तहत अब तक आठ वर्षों में 7,88,558 परिवारों को रोजगार मिला है।मनरेगा के तहत जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कई काम हुए हैं। दुरूह ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पगडंडियां ही लोगों का सहारा थी वहां आज सड़कों पर लोग फर्राटे से चलते हैं।बावजूद इस योजना का असली उद्देश्य आज भी पूरा नहीं हो पाया है।मजदूरों में शिक्षा और जागरूकता के अभाव के कारण आज भी इस योजना का पूर्ण लाभ असली हकदारों तक नहीं पहुंच पाता है।साथ ही योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितता के कारण इस योजना से सभी बेरोजगार नहीं जुड़ पाए हैं जिस कारण रोजगार के लिए पलायन आज भी जारी है।

रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह 

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