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454 वर्ष बाद पटना के बापू सभागार में मनाई जाएगी रानी दुर्गावती की शहादत दिवस…

बिहार की धरती पर पहली बार क्षत्राणी वीरांगना रानी दुर्गावती का 454 वर्ष बाद शहादत दिवस पहली बार बिहार के पटना में 24 जून को बापू सभागार में मनाया जा रहा है।श्रुति कम्युनिकेशन ट्रस्ट के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर हैं।रानी दुर्गावती का 24 जून 1564 को देहांत हुआ था।इस मौके पर बतौर अतिथि के रूप में उद्घाटन के लिए बिहार के पूर्व राज्यपाल व वर्तमान भारत के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद,गृहमंत्री राजनाथ सिंह,यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ,राज्यपाल गंगा प्रसाद के साथ सूबे के सीएम नीतीश कुमार के भी भाग लेने की पूर्ण संभावना है।वही भाजपा के वरिष्ठ नेता आदरणीय श्री संजय जोशी ने केवलसच चीफ श्री ब्रजेश मिश्रा को 24 जून को होने वाले प्रोग्राम क्षत्राणी रानी दुर्गावती सम्मान

भाजपा के वरिष्ठ नेता आदरणीय श्री संजय जोशी एवं केवल सच चीफ श्री ब्रजेश मिश्रा

समारोह का शुभकामनाएं दिए।क्षत्राणी रानी दुर्गावती के जीवन और बलिदान के साथ महिलाओं पर 200 पृष्ठ के एक विशेषांक का भी विमोचन किया जाएगा।उक्त जानकारी श्रुति कम्युनिकेशन ट्रस्ट के चयरमेंन सुषमा मिश्र ने दी।मौके पर ट्रस्ट के सदस्य धर्मेन्द्र सिंह भी मौजूद थे।आपको बताते चले की ट्रस्ट के चेयरमैन सुषमा मिश्र की अध्यक्षता में संगठन के 13वे स्थापना वर्ष के कार्यक्रम को लेकर विचार गोष्ठी की गई।चेयरमैन ने बताया कि नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के दृष्टि कोण से गोंडवाना राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती जी के शहादत वर्ष को चुना गया है।क्षत्राणी रानी दुर्गावती भारत वर्ष की वह वीरांगना है,जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुग़ल शासको से युद्ध करके वीरगति को प्राप्त हो गई थी।महिलाएं आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कर्मठता,योग्यता,एवं

दक्षता का परिचय देने में कामयाब हो रही है और अपने पराक्रम से देश के विकास एवं रक्षा के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही है।24 जून 1564 में मुगलो से युद्ध करने के क्रम में रानी दुर्गावती वीरगति को प्राप्त हुई थी और अपने क्षत्राणी एवं हिन्दू होने का दायित्व निर्वहन किया था।इन्होंने अनेक मंदिर,मठ,कुएं,और धर्मशालाएं बनवाई।श्रुति कम्युनिकेशन ट्रस्ट इस शहादत वर्ष के अवसर पर 200 पृष्ठ का विशेषांक का प्रकाशन एवं 30 कर्मयोगियों का सम्मान समारोह बापू सभागार में किया जायेगा।हिंदुस्तान को विश्वगुरु बनाने की दिशा में विश्व स्तर पर कार्य करने वाले भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री एवं बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संयुक्त प्रयास से देश-प्रदेश का विकास दुर्तगति से हो रहा है।विक्रम संवत 2075 के 24 जून 2018 को गौरवशाली बिहार की राजधानी पटना के नवनिर्मित 5000 सीटों की क्षमता वाले सम्राट अशोक कन्वेंशन केंद्र पटना के बापू सभागार में 13 वे स्थापना वर्ष के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित है और भारतीय क्षत्राणी वीरांगना रानी दुर्गावती के शहादत दिवस के अवसर पर अपना स्थापना वर्ष वीरांगना को समर्पित करता है।मुग़ल शासकों के अत्याचार एवं बर्बरता का मुहतोड़ जवाब देनेवाली क्षत्राणी महारानी दुर्गावती के पूर्ण जीवन पर यह विशेषांक प्रकशित होगा।इस बैठक

में दूरसंचार विभाग के सेवानिवृत्त श्री गोपाल मिश्रा, सेवानिवृत आईएफएस अखिलेश्वर मिश्र, सेवानिवृत डीएसपी श्री तारकेश्वर प्रसाद, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अमिताभ रंजन मिश्र, ने भी वीरांगना रानी दुर्गावती के शहादत वर्ष को संगठन अपने 13 वे स्थापना वर्ष में शामिल करना चेयरमैन की अच्छी पहल है और वर्त्तमान समय में महिलाओं की प्राथमिकता को नज़र अंदाज़ नही किया जा सकता है।इस बैठक में बिहार-झारखण्ड के सक्रिय 70 सदस्यों ने भाग लिया और इस कार्यक्रम को सफल बनाने से लेकर 6 हज़ार लोगों की उपस्थिति पर भी चर्चा की गई।बैठक में निर्णय लिया गया कि देश भर में अपने कार्य सेवा के दम पर लोगो को सहयोग करने वाले कर्मयोगियों को सम्मानित किया जायेगा उसका कार्य प्रारंभ आज ही से शुरू हो गया है।केवल सच चीफ ब्रजेश मिश्रा ने कहा की रानी दुर्गावती (5 अक्टूबर, 1524-24 जून, 1564) भारत की एक वीरांगना थीं जिन्होने अपने विवाह के चार वर्ष बाद अपने पति दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया।इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई।दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था।चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी।उनके राज्य का नाम गोंडवाना था जिसका केन्द्र

जबलपुर था।वे इलाहाबाद के मुगल शासक आसफ खान से लोहा लेने के लिये प्रसिद्ध हैं।महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ई० की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया।नाम के अनुरूप ही तेज,साहस,शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके,उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही

राजा दलपतशाह का निधन हो गया।उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था।अतःरानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया।उन्होंने अनेक मठ,कुएं,बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था।उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल,अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधार सिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाज बहादुर ने कई बार हमला किया,पर हर बार वह पराजित हुआ।महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था।उसने विवाद

प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधार सिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा।रानी ने यह मांग ठुकरा दी।इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया।एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ,पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला।दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे।उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया।इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी।अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था,अतःरानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया।तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा,रानी ने उसे निकाल फेंका।दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया,रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी।तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे,पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ।अतःरानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं।महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था,उस स्थान का नाम बरेला है,जो मंडला रोड पर स्थित है,वही रानी की समाधि बनी है,जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।

रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह 

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