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बड़ीजान के सूर्य प्रतिमा एवं अन्य अवशेष सिमांचल के हिन्दू-मुस्लिम शोभा का प्रतीक पहचान है…

सत्तर के दशक में अन्वेषण व उत्खनन विभाग की खुदाई के दौरान सूर्य देव की प्रतिमा,मंदिर के मुख्य द्वार के शिलाखंड सहित अन्य अवशेष के साथ प्राचीन कालीन सिक्के भी मिले थे।मुस्लिम राजाओं के शासन काल से पहले यहां हिन्दू राजाओं का प्रमुख शासन केंद्र रहा है।जानकारी अनुसार राजा बेणु के वंशज ने बड़ीजान में एक किला बनवाया था।राजा बेणु नेपाली वंशज के थे।

किशनगंज उड़ीसा के कोणार्क मंदिर को जहां सूर्य देव का इकलौता मंदिर होने का गौरव हासिल है,वहीं बड़ीजान हाट में सूर्य देव की प्रतिमा भी इस क्षेत्र के लिए अपना महत्व रखती है।भले ही सरकार व पर्यटन विभाग की अनदेखी के कारण इस प्रतिमा की कोई कद्र नहीं रह गई है लेकिन सूर्य की प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।प्रतिदिन दूरदराज नेपाल, बंगाल से आकर श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं।पालवंश कालीन 9 वीं शताब्दी के सात घोड़ों पर सवार यह सूर्यदेव की प्रतिमा दो भाग में है।प्रतिमा बेसाल्ट पत्थर से निर्मित है।प्रतिमा के दोनों ओर ऊषा व प्रत्यषा एवं अनुचरदण्ड व पंगल खड़े हैं।गले में मनकों की माला व चंद्रहार पहने हुए सूर्य की प्रतिमा आभूषणों से अलंकृत हैं।प्रतिमा की उंचाई 5 फीट 6 इंच व चौड़ाई 2 फीट 11 इंच है।इतिहासकारों के अनुसार बड़ीजान गांव अपने अंदर 11 सौ साल पुरानी दास्तां समेटे हुए हैं।ग्रामीणों का कहना है कि कई दशक पूर्व प्रखंड के बड़ीजान पंचायत के बड़ीजान दुर्गापूर में सूर्यदेव का मंदिर था।मंदिर तो अब नहीं है लेकिन खुदाई के दौरान जमीन के अंदर से मिली सूर्य की प्रतिमा बड़ीजान हाट में एक पीपल के पेड़ के नीचे चबूतरे पर विराजमान है।सत्तर के दशक में अन्वेषण व उत्खनन विभाग की खुदाई के दौरान सूर्य देव की प्रतिमा,मंदिर के मुख्य द्वार के शिलाखंड सहित अन्य अवशेष के साथ प्राचीन कालीन सिक्के भी मिले थे।मुस्लिम राजाओं के शासन काल से पहले यहां हिन्दू राजाओं का प्रमुख शासन केंद्र रहा है।जानकारी अनुसार राजा बेणु के वंशज ने बड़ीजान में एक किला बनवाया था।राजा बेणु नेपाली वंशज के थे।उनकी दो पुत्रियां श्रीवती और दूसरे का नाम सूर्यावती था।कहा जाता है कि दोनों पुत्री के नाम पर ही उन्होंने ने श्रीपुर व सूर्यापुर परगना की स्थापना की थी।श्रीपुर परगना वर्तमान में पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में है,जबकि सूर्यापुर अब भी यहां मौजूद है।पुरातत्व विभाग से मिली जानकारी के अनुसार बड़ीजान गांव लोनसबरी नामक एक बरसाती नदी के किनारे 

बसा हुआ है,जो प्राचीन छड़ नदी का किनारा है।लोनसबरी नदी बूढ़ी कनकई नदी से मिल कर महानंदा नदी में समा जाती है।आपको मालूम हो की 115 साल पहले पुरातत्व विभाग ने किया सुरक्षित क्षेत्र घोषित पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि फूरकान अहमद,पूर्व सरपंच धीरेन्द्र प्रसाद सिन्हा,प्रेम कुमार बबलू,डॉ.मुश्ताक मुन्ना,ओसामा रजा,प्रवीण सिन्हा ने बताया कि वर्ष 2002-03 में पुरातत्व विभाग दिल्ली की टीम ने तत्कालीन डीएम के सेंथिल कुमार के मौजूदगी में स्थल जांच व प्रतिमाओं का भौतिक निरीक्षण के पश्चात इस क्षेत्र को सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया था।लेकिन 15 साल बीत जाने के बाद पुरातत्व विभाग की टीम ने सुध नहीं ली।श्रद्धालुओं का आरोप है कि इसे पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने की बजाय संरक्षण के नाम पर पुरातत्व विभाग प्रतिमाओं को यहां से अन्य जगह ले जाना चाह रही है…आपको बताते चले की इस सम्बन्ध में बाबुल कुमार सिन्हा ने जिलाधिकारी किशनगंज श्री पंकज दीक्षित से अनुरोध करते हुए लिखा है की पुरातत्व निदेशालय ने पत्रांक 928 दिनांक-30.11.2017 के माध्यम से बड़ीजान में खुदाई में मिली सूर्यदेव की प्रतिमा को भागलपुर राजकीय संग्रहालय में स्थान्तरित करने का निर्देश दिया गया है उसी आलोक में हमलोगों का कहना है की बड़ीजान के सूर्य प्रतिमा एवं अन्य अवशेष सिमांचल के हिन्दू-मुस्लिम शोभा का प्रतीक पहचान है।सदियों से हम ग्रामवासीयो एवं दीगर वासियों विवाह शादी यज्ञ-भंडारे के अवसर पर प्रतिष्ठात सूर्य प्रतिमा के अलावे एनी अवशेष को पूजा-अर्चना शंख ध्वनी भी किया जाता है। आपको बताते चले की बड़ीजान के चारो दिशाओ में प्रधानमंत्री सडक का निर्माण हो चूका है।किशनगंज अररिया बहादुरगंज कोचाधामन सरल हो गया है। लोकत्रंत के मान मर्यादा को बहाल रखते बिहार सरकार एवं पुरातत्व विभाग को प्रस्ताव देकर भागलपुर सूर्यदेव की प्रतिमा स्थान्तरित करने का निर्देश को विलोपित करने हेतु कारवाई करने की मांग की गई है।

रिपोर्ट-धर्मेन्द्र सिंह 

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