बिहार में इंस्पेक्टर से लेकर सिपाही तक के 17 हजार पद रिक्त हैं।देश में प्रति लाख आबादी पर पुलिसकर्मी हैं,वहीं बिहार में प्रति लाख की आबादी पर महज पुलिसकर्मी ही उपलब्ध हैं।यानी कानून का राज कायम करने के लिए जो प्रयास हो रहे,उनमें पुलिस कर्मियों की कम संख्या बड़ी बाधा है।थानों में तो सामान्य पुलिसिंग भी बाधित होती है।कोशिश जारी है लेकिन बिहार सरकार पिछले कुछ वर्षों में पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाकर राष्ट्रीय औसत की बराबरी करने की कोशिश कर रही,लेकिन फासला कायम है।17 हजार सृजित पद खाली हैं।राष्ट्रीय औसत की बराबरी करते हुए अगर पुलिस कर्मियों की जरूरत का आकलन किया जाए,तो डेढ़ लाख भर्तियां करनी होंगी।स्वभाविक है,राज्य में पुलिसकर्मियों के रिक्त पड़े पदों का प्रभाव आपराधिक मामलों की जांच के स्तर पर पड़ रहा है।गौर करने की बात है कि राज्य में भारतीय पुलिस सेवा और बिहार पुलिस सेवा के सैकड़ों पद रिक्त होते हैं।उपलब्ध अधिकारियों को एक साथ कई शाखाओं का प्रभार सौंपकर इस कमी को पूरा कर लिया जाता है,लेकिन हवलदार और सिपाहियों को प्रभार देकर काम नहीं कराया जा सकता।गृह विभाग के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो बिहार पुलिस में थानास्तर पर ही निरीक्षक के 125 पद,अवर निरीक्षक 3965,सहायक अवर निरीक्षक 3469,हवलदार 4277,सिपाही 3093 पद तथा सिपाही ड्राइवर के 1677 पद पिछले कई वर्षों से रिक्त पड़े हैं।इससे सामान्य पुलिसिंग भी नहीं हो पाती।यह स्थिति तब है जब विगत वर्ष 2015 में ही राज्य में 12 हजार सिपाहियों की बहाली हुई है।