ज्योतिष/धर्मराज्य

धरती पर कोई चुनौती देनेवाला ना था और वो चक्रवर्ती सम्राट कहलाये…

पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे-जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर।इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है।पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया।जम्बू द्वीप के 9 खंड थे:-इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल,रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था।इस भरत खंड के भी नौ खंड थे-इन्द्रद्वीप,कसेरु,ताम्रपर्ण,गभस्तिमान,नागद्वीप,सौम्य,गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता,पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।यह भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था।दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमामान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल,भूटान, बर्मा, श्रीलंका,थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे।इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहाशूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर,सन्धव, हूण,शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे।किसने बसाया भारतवर्ष:-त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो 

उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम‘भारतवर्ष’ पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा।यहां बतादें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था,जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी।यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बना दिया था।और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था।इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारत वर्ष कहलाया।भारतवर्ष अर्थात भरत राजा

का क्षे‍त्र।भरत एक प्रतापी राजा एवं महान भक्त थे।श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज्तान,तुर्कमेनिस्तान तथा फारस आदि क्षेत्र शामिल थे।2.प्रथम राजा भारत के बाद और भी कई भरत हुए।7वें मनु वैवस्वत कुल में एक भारत हुए जिनके पिता का नाम ध्रुवसंधि

था और जिसने पुत्र का नाम असित और असित के पुत्र का नाम सगर था। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। इन्हीं सगर के कुल में भगीरथ हुए, भगीरथ के कुल में ही ययाति हुए (ये चंद्रवशी ययाति से अलग थे) ययाति के कुल में राजा रामचंद्र हुए और राम के पुत्र लव और कुश ने संपूर्ण धरती पर शासन किया। भरत महाभारत के काल में एक तीसरे भरत हुए। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना ‘महाभारत’ में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है।कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ। मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला।भारद्वाज महान ‍ऋषि थे।चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।वैवस्वत मनु:-ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के कुल में वैवस्वत मनु हुए।एक बार जलप्रलय हुआ और धरती के अधिकांश प्राणी मर गए। उस काल में वैवस्वत मनु को भगवान विष्णु ने बचाया था।वैवस्वत मनु और उनके कुल

के लोगों ने ही फिर से धरती पर सृजन और विकास की गाथा लिखी।वैवस्वत मनु को आर्यों का प्रथम शासक माना जाता है।उनके 9 पुत्रों से सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रारंभ हुआ।मनु की एक कन्या भी थी-इला। उसका विवाह बुध से हुआ,जो चंद्रमा का पुत्र था। उनसे पुरुरवस्‌ की उत्पत्ति हुई,जो ऐल कहलाया जो चंद्रवंशियों का प्रथम शासक हुआ।उसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी,जहां आज प्रयाग के निकट झांसी बसी हुई है।वैवस्वत मनु के कुल में कई महान प्रतापी राजा हुए जिनमें इक्ष्वाकु,पृथु, त्रिशंकु, मांधाता,प्रसेनजित, भरत, सगर, भगीरथ, रघु, सुदर्शन,अग्निवर्ण, मरु, नहुष,ययाति, दशरथ और दशरथ के पुत्र भरत,राम और राम के पुत्र लव और कुश।इक्ष्वाकु कुल से ही अयोध्या कुल चला।राजा हरीशचंद्र:-अयोध्या के राजा हरीशचंद्र बहुत ही सत्यवादी और धर्मपरायण राजा थे। वे अपने सत्य धर्म का पालन करने और वचनों को निभाने के लिए राजपाट छोड़कर पत्नी और बच्चे के साथ जंगल चले गए और वहां भी उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया।ऋषि विश्वामित्र द्वारा राजा हरीशचंद्र के धर्म की परीक्षा लेने के लिए उनसे दान में उनका संपूर्ण राज्य मांग लिया गया था। राजा हरीशचंद्र भी अपने वचनों के पालन के लिए विश्वामित्र को संपूर्ण राज्य सौंपकर जंगल में चले गए। दान में राज्य मांगने के बाद भी विश्वामित्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनसे दक्षिणा भी मांगने लगे।इस पर हरीशचंद्र ने अपनी पत्नी, बच्चों सहित स्वयं को बेचने का निश्चय किया और वे काशी चले गए, जहां पत्नी व बच्चों को एक ब्राह्मण को बेचा व स्वयं को चांडाल के यहां बेचकर मुनि की दक्षिणा पूरी की।हरीशचंद्र श्मशान में 

कर वसूली का काम करने लगे।इसी बीच पुत्र रोहित की सर्पदंश से मौत हो जाती है।पत्नी श्मशान पहुंचती है, जहां कर चुकाने के लिए उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं रहती।हरीशचंद्र अपने धर्म पालन करते हुए कर की मांग करते हैं। इस विषम परिस्थिति में भी राजा का धर्म-पथ नहीं डगमगाया। विश्वामित्र अपनी अंतिम चाल चलते हुए हरीशचंद्र की पत्नी को डायन का आरोप लगाकर उसे मरवाने के लिए हरीशचंद्र को काम सौंपते हैं।इस पर हरीशचंद्र आंखों पर पट्टी बांधकर जैसे ही वार करते हैं, स्वयं सत्यदेव प्रकट होकर उसे बचाते हैं, वहीं विश्वामित्र भी हरीशचंद्र के सत्य पालन धर्म से प्रसन्न होकर सारा साम्राज्य वापस कर देते हैं। हरीशचंद्र के शासन में जनता सभी प्रकार से सुखी और शांतिपूर्ण थी। यथा राजा तथा प्रजा।राजा सुदास:-सम्राट भरत के समय में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है।राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब

हस्तिनापुर के राजा थे तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था।राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ऋग्वेद में वर्णित ‘दाशराज्य युद्ध’ से जानते हैं।राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का विस्तार हुआ। राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रूप से कुरु-पंचाल’ कहलाया, परंतु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतंत्र हो गया।राजा कुरु के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का राज्य कुरुक्षेत्र कहा गया। माना जाता है कि पंचाल राजा सुदास के समय में भीम सात्वत यादव का बेटा अंधक भी राजा था। इस अंधक के बारे में पता चलता है कि शूरसेन राज्य के समकालीन राज्य का स्वामी था। दाशराज्य युद्ध में यह भी सुदास से हार गया था। इस युद्ध के बाद भारत की किस्मत बदल गई। समाज में दो फाड़ हो गई।भगवान राम:-वन से लौटने के बाद जब भगवान राम ने अयोध्या का शासन संभाला तो उन्होंने कई वर्षों तक भारत पर शासन किया और भारत को एकसूत्र में बांधे रखा।राम ने सभी

वनवासी, आदिवासी और वानर जातियों सहित संपूर्ण भारतीय जातियों को एकसूत्र में बांधकर अखंड भारत का निर्माण किया। उनका राज्य दूर दूर तक फैला हुआ था।राम के काल में रावण, बाली, सुमाली, जनक, मय, अहिरावण और कार्तवीर्य अर्जुन नाम के महान शासक थे, लेकिन सभी का अंत कर दिया गया था। सभी राम के राज्य में शामिल हो गए थे।कार्तवीर्य अर्जुन या सहस्रार्जुन यदुवंश का एक प्राचीन राजा था। वह बड़ा वीर और प्रतापी था। उसने लंका के राजा रावण जैसे प्रसिद्ध योद्धा से भी संघर्ष किया था। कार्तवीर्य अर्जुन के राज्य का विस्तार नर्मदा नदी से हिमालय तक था जिसमें यमुना तट का प्रदेश भी सम्मिलित था। कार्तवीर्य अर्जुन के वंशज कालांतर में ‘हैहय वंशी’ कहलाए जिनकी राजधानी ‘माहिष्मती’ (महेश्वर) थी। इन हैहयों से ही परशुराम का 21 बार युद्ध हुआ था। राम के काल के सभी राजाओं का अपना-अपना क्षेत्र था लेकिन राम ने संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की और जनता को क्रूर शासकों से मुक्ति दिलाई।भरत तृतीय:-महाभारत के काल में एक तीसरे भरत हुए। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना ‘महाभारत’ में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है।कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ अभिज्ञान शाकुंतलम में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी

शकुंतला के जीवन के बारे में उल्लेख मिलता है।उपदेवता मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ‍ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।राजा युधिष्ठिर:-पांडव पुत्र युधिष्ठिर को धर्मराज भी कहते थे। इनका जन्म धर्मराज के संयोग से कुंती के गर्भ द्वारा हुआ था। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने ही भारत पर राज किया था। महाभारत युद्ध के बाद लगभग 2964 ई. पूर्व में युधिष्ठिर का राज्यारोहण हुआ था।युधिष्ठिर भाला चलाने में निपुण थे। वे कभी मिथ्या नहीं बोलते थे।उनके पिता ने यक्ष बनकर सरोवर पर उनकी परीक्षा भी ली थी। महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन,वैभव से वैराग्य हो गया था।वे वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करना चाहते थे किंतु समस्त भाइयों तथा द्रौपदी ने उन्हें तरह-तरह से समझाकर क्षात्रधर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उनके शासनकाल में संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर शांति और खुशहाली रही।युधिष्ठिर सहित पांचों पांडव अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के पुत्र महापराक्रमी परीक्षित को राज्य देकर महाप्रयाण हेतु उत्तराखंड की ओर चले गए और वहां जाकर पुण्यलोक को प्राप्त हुए।परीक्षित के बाद उनके पुत्र जन्मेजय ने राज्य संभाला।महाभारत में जन्मेजय के 6 और भाई बताए गए हैं।ये भाई हैं-कक्षसेन, उग्रसेन,चित्रसेन,इन्द्रसेन,सुषेण तथा नख्यसेन।कुरुओं का

अंतिम राजा निचक्षु और नंद वंश: 1300 ईसा पूर्व तक भारत में 16 महाजनपदों थे-कुरु, पंचाल, शूरसेन, वत्स,कोशल, मल्ल, काशी, अंग, मगध, वृज्जि, चे‍दि, मत्स्य, अश्मक,अवंति, गांधार और कंबोज।अधिकांशतःमहाजन पदों पर राजा का ही शासन रहता था,परंतु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था।इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था।लेकिन इनमें से सबसे शक्तिशाली शासक मगथ, कुरु,पांचाल,शूरसेन और अवंति के थे।उनमें भी मगथ का शासन सबसे शक्तिशालली था।महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया।गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है।महाभारत युद्ध के पश्चात पंचाल पर पाण्डवों के वंशज तथा बाद में नाग राजाओं का अधिकार रहा।पुराणों में महाभारत युद्ध से लेकर नंदवंश के राजाओं तक 27 राजाओं का उल्लेख मिलता

है।इस काल में भरत, कुरु, द्रुहु,त्रित्सु और तुर्वस जैसे राजवंश राजनीति के पटल से गायब हो रहे थे और काशी, कोशल, वज्जि, विदेह, मगध और अंग जैसे राज्यों का उदय हो रहा था। इस काल में आर्यों का मुख्य केंद्र ‘मध्यप्रदेश’ था जिसका प्रसार सरस्वती से लेकर गंगा दोआब तक था। यही पर कुरु एवं पांचाल जैसे विशाल राज्य भी थे। पुरु और भरत कबीला मिलकर‘कुरु’ तथा ‘तुर्वश’ और ‘क्रिवि’कबीला मिलकर पंचाल (पांचाल) कहलाए।महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था।पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने,जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था,हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया।इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था।निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।जन्मेजय के बाद क्रमश:शतानीक, अश्वमेधदत्त, धिसीमकृष्ण, निचक्षु, उष्ण, चित्ररथ, शुचिद्रथ,वृष्णिमत,सुषेण,

नुनीथ, रुच, नृचक्षुस्, सुखीबल, परिप्लव, सुनय, मेधाविन, नृपंजय, ध्रुव, मधु, तिग्म्ज्योती, बृहद्रथ और वसुदान राजा हुए जिनकी राजधानी पहले हस्तिनापुर थी तथा बाद में समय अनुसार बदलती रही।बुद्धकाल में शत्निक और उदयन हुए। उदयन के बाद अहेनर,निरमित्र (खान्दपनी) और क्षेमक हुए। नंद वंश में नंद वंश उग्रसेन (424-404) पण्डुक (404-294) पण्डुगति (394-384) भूतपाल (384-372) राष्ट्रपाल (372-360) देवानंद (360-348) यज्ञभंग (348-342) मौर्यानंद (342-336) महानंद (336-324) इससे पूर्व ब्रहाद्रथ का वंश मगध पर स्थापित था। अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजित, वीरजित और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेमधर्म (639-603 ईपू) से पूर्व राज किया था।

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य:-सम्राट चन्द्रगुप्त महान थे।उन्हें चन्द्रगुप्त महान’ कहा जाता है। सिकंदर के काल में हुए चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को दो बार बंधक बनाकर छोड़ दिया था।सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे।चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस की पुत्री हेलन से विवाह किया था।चन्द्रगुप्त की एक भारतीय पत्नी दुर्धरा थी जिससे बिंदुसार का जन्म हुआ।चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं।बिंदुसार के समय में चाणक्य उनके प्रधानमंत्री थे।इतिहास में बिंदुसार को ‘पिता का पुत्र और पुत्र का पिता’कहा जाता है,क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और अशोक महान के पिता थे।चाणक्य और पौरस की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के सिंहासन पर बैठे और चन्द्रगुप्त ने यूनानियों के अधिकार से पंजाब को मुक्त करा लिया।चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन-प्रबंध बड़ा व्यवस्थित था।इसका परिचययूनानी राजदूत मेगस्थनीज के विवरण और

कौटिल्य के अर्थशास्त्र’ से मिलता है।उसके राज्य में जनता हर तरह से सुखी थी।चन्द्रगुप्त मुरा नाम की भील महिला के पुत्र थे।यह महिला धनानंद के राज्य में नर्तकी थी जिसे राजाज्ञा से राज्य छोड़कर जाने का आदेश दिया गया था और वह महिला जंगल में रहकर जैसे-तैसे अपने दिन गुजार रही थी।चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र था।हज़ारों वर्ष पूर्व पौराणिक युग में जिस मालिनी नदी का उल्लेख पुराणों में मिलता है, वह आज भी उसी नाम से पुकारी जाती है।कण्‍वाश्रम स्‍थापति मालिनी मृग विहार।कण्वाश्रम कण्व ऋषि का वही आश्रम है जहां हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय के पश्चात भरत का जन्म हुआ था।कालान्तर में चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।यहीं सम्राट भरत ने बचपन में शेर के दांत गिने थे।जिसे प्रतिमा के जरिये आज भी देखा जा सकता है।उत्‍तराखंड के पौड़ी जनपद में कोटद्वार से 14 कि.मी. की दूरी पर शिवालिक पर्वत श्रेणी के पाद प्रदेश में हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ है कण्वाश्रम’।महाकवि कालिदास द्वारा रचित’अभिज्ञान शाकुन्तलम’में इसका जिक्र मिलता है।  

साशत्रो के पन्ने से:-धर्मेन्द्र सिंह 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button