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दहेज प्रथा-एक सामाजिक अभिशाप बेटी मजबूत हो रही, दहेज बढ़ रहा हर आठ घंटे में एक बेटी को लील लेता है ‘दहेज का दानव…

दहेज वाले विवाह में न जाएं…। निमंत्रण मिले तो भी न खाएं…। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह अपील सुनी तो सबने हैं लेकिन शादियों के इस नए मौसम में कितने लोग उसपर अमल कर रहे ? दहेज वाली शादियां रोज हो रहीं।भीड़ जुट रही। बड़े इवेंट हो रहे। सबको पता है कि लड़की के पिता के दिए पैसे पर यह ‘शाहखर्ची’ है,लेकिन किसे फर्क पड़ रहा ? कब फर्क पड़ेगा ? क्या शराबबंदी की तरह कड़ा कानून दहेज को रोकेगा ? समाज में सवाल उठने चाहिए और बहस भी होनी चाहिए।लाखों बेटियों के भविष्य का सवाल है।बिहार में हर आठ घंटे में किसी न किसी शादीशुदा महिला को महज दहेज के लिए मौत के घाट उतार दिया जाता है।राज्य में हर डेढ़ घंटे में कोई न कोई महिला दहेज के लिए प्रताडि़त होने की शिकायत लेकर थाने पहुंचती है।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि दहेज हत्या के मामले में बिहार देश भर में दूसरा स्थान रखता है।इस मामले में उत्तर प्रदेश एक नंबर पर है।वहां हर घंटे किसी न किसी महिला को दहेज के लिए मौत के घाट उतारा जाता है।आंकड़े पर नजर दौड़ाएं, बिहार में वर्ष 2016 में छेडख़ानी की जहां महज 342 वारदातें थानों में दर्ज हुईं, वहीं इस अवधि में दहेज के लिए कुल 987 शादीशुदा महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया गया।अब जरा थानों में पहुंचने वाली दहेज उत्पीडऩ की शिकायतों को देखें।वर्ष 2016 में बिहार में दहेज

के लिए ससुराल वालों से प्रताडऩा के कुल 4852 मामले दर्ज हुए हैं।अजीब विडंबना है।बिहार में बेटियों को सशक्त बनाने औरअधिकार संपन्न बनाने की की कोशिश तेज है।उच्च शिक्षित बेटियों की संख्या बढ़ी है,लेकिन दहेज का दानव उससे और शक्तिशाली हो रही।ज्यादा पढ़ी-लिखी बेटी को ज्यादा दहेज देकर विदा करना पड़ रहा।अपना स्टेटस बढ़ रहा, तो उसी के अनुसार लड़का खोजना है और उसी अनुपात में दहेज देना है।पढ़े-लिखे, साक्षर-निरक्षर, ऊंच-नीच, जात-धर्म का कोई भेद नहीं।सब दहेज ले रहे, सब दहेज दे रहे।प्रेम विवाह करनेवाले और कुछ अत्यंत जागरूक लोग अपवाद हैं लेकिन समाज उनसे सीख नहीं ले रहा।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी की तर्ज पर दहेज प्रथा के खिलाफ एक बड़े जनांदोलन का एलान किया है।इस एलान में मुख्यमंत्री ने दहेज लेने या देनेवाले परिवारों के बहिष्कार की अपील की है।ताकि दहेज लोभियों का सामाजिक बहिष्कार किया जा सके।मुख्यमंत्री की यह पहल न केवल समय की मांग है लेकिन इसका खास असर होता नहीं दिख रहा।बिहार में होने वाली शादियों में दहेज लेने-देने की परंपरा सदियों पुरानी है।यहां शादियों का बाजार सजता है।शादी के लिए किसी लड़के का चयन भले ही

उसके गुण-दोष के आधार पर नहीं होती हो लेकिन शादी के लिए लड़कियां तभी पसंद की जाती हैं,जब उसके मां-बाप अपनी बेटी की शादी की कीमत चुकाने में समर्थ होते हैं।बिहार में आइएएस, आइपीएस, इंजीनियर, डॉक्टर से लेकर क्लर्क, शिक्षक और यहां तक कि चपरासी की नौकरी करने वाले लड़कों का अलग बाजार भाव है।पढ़े-लिखे लोग इस मामले में अधिक ‘जाहिल’ हैं।समाजशास्त्री कहते हैं कि इन्हें कड़े कानून के बंधन में बांधकर सुधारा जा सकता।बिहार सरकार ने बिहार राज्य दहेज निषेध नियमावली, 1998 में दहेज निषेध पदाधिकारी की तैनाती के भी प्रावधान किए हैं।इन अधिकारियों को दहेज प्रथा के विरुद्ध जन चेतना जागृत करने के लिए संचार माध्यम के व्यापक प्रयोग करने के साथ-साथ महीने में कम से कम एक बार महिलाओं के कल्याण हेतु जिला स्तर पर गठित सलाहकार समिति में महिलाओं कल्याण व स्वरोजगार के चल रहे सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों के साथ-साथ महिला उत्पीडऩ की शिकायतों और दहेज अधिनियम के उल्लंघन जैसे मामलों की शिकायतों के अनुश्रवण की व्यवस्था की गई है।लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य के किसी भी जिले में न तो इस तरह की समितियों का गठन किया गया है और न ही दहेज निषेध पदाधिकारी की तैनाती की गई है।दहेज प्रताडऩा को लेकर कई तरह के सख्त कानून बना रखे हैं। इनमें दहेज निषेध कानून, 1961 के अलावा आइपीसी की धारा 304 बी और धारा 498 ए के तहत दहेज लोभियों के लिए आजीवन कारावास से लेकर कई तरह की सख्त सजा के प्रावधान किए गए हैं।दहेज निषेध कानून, 1961 की धारा 3 के अनुसार दहेज लेने या देने का अपराध करने वालों को कम से कम पांच साल की जेल की सजा के साथ-साथ 15 हजार रुपये या उतनी राशि जितनी कीमत के तोहफे दिए गए हैं,इनमें से जो भी अधिक हो, के जुर्माने का प्रावधान है।

POSTED BY-DHARMENDRA SINGH

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