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किताबों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता…

बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूंगा,क्योंकि जहां ये रहती हैं,वहां अपने आप ही स्वर्ग हो जाता है।लोकमान्य के इस कथन से पुस्तकों की महत्ता स्वयं स्पष्ट हो जाती है।माना भी जाता है कि पुस्तकों से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता।ऐकांतिक क्षणों में यह प्रेयसी सा सुख देती है।इससे लौ लगी तो आदमी आदमी हो जाता है।आज पुस्तकों की दुनिया में भी उत्सवधर्मिता चटख रंग बिखेर रही है।पहले इंग्लैंड में प्रत्येक वर्ष मार्च के पहले गुरुवार को सामान्यतया मनाया जाता था।फिर स्पेन ने 23 अपै्रल,1923 को लेखक सरवेंटिज की पुण्यतिथि पर उनके सम्मान में पुस्तक दिवस मनाया।इसे ही अपनाते हुए यूनेस्को ने पहली बार 23 अपै्रल, 1995 को विधिवत विश्व पुस्तक दिवस का आयोजन किया जिसमें आयरलैंड, स्पेन, स्वीडन और इंग्लैंड जैसे देश शामिल हुए।तभी से प्रत्येक वर्ष यह दिवस मनाया जाने लगा।इसका उद्देश्य था-पढऩे, प्रकाशन करने और कॉपीराइट की स्थिति को ठीक कर विस्तार देना।वैश्वीकरण के दौर में आवारा पूंजी ने जिस तरह खुद को विस्तारित किया उसके प्रभाव में पूरी दुनिया आ गयी।पैसे की भूख ने ज्ञान की भूख को कहीं कोने में धकेल दिया।एक अच्छा मित्र किनारे होता गया।जिस पाठकीयता को बढ़ाने के लिए यह दिवस शुरू हुआ था,उसका मूल ही खत्म होने लगा।यह दिवस इस चिंता की पड़ताल की अपेक्षा रखता है।जब मदिरालय नहीं पुस्तकालय चाहिए का नारा लगने लगे तो स्पष्ट है कि पुस्तकालयों की स्थिति कहीं भी ठीक नहीं है।कुछ पहल इस दिशा में जरूर हुई है,पर इसे कारगर बनाने की जरूरत है।साहित्यसेवी सत्यानंद निरुपम का कहना है कि बिहार में पुस्तकालयों की पुरानी संस्कृति रही है,उसे फिर जिंदा करने की जरूरत है।वैसे तो सभी प्रमुख विभागों में पुस्तकालय होते हैं,पर पटना शहर को ही लें तो सिन्हा लाइब्रेरी,खुदा बख्श लाइब्रेरी,सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का पुस्तकालय और गांधी संग्रहालय छोड़ दें तो ज्यादातर पुस्तकालय बेहतर स्थिति में नहीं है।इसे तकनीक का ही कमाल कहा जाएगा कि अब ई-बुक ने भी वास्तविक रूप लेना शुरू कर दिया है।अब किसी भी तरह की जानकारी ढूंढऩे के लिए लोग इंटरनेट का ही सहारा लेने लगे हैं।पहले की तरह लाइब्रेरी या किताबों की दुकानों में उन्हें ढूंढऩा नहीं पड़ता है।नेट पर जानकारी आसानी से उपलब्ध भी हो जाती है।ई-बुक या ई-पुस्तक (इलेक्ट्रॉनिक पुस्तक) का अर्थ है-डिजिटल रूप में पुस्तक।ई-पुस्तकें कागज के बजाय डिजिटल संचिका के रूप में होती हैं।

कविता-‘किताबें’

  • किताबें करती हैं बातें,बीते जमानों की ।
    दुनिया की, इंसानों की आज की, कल की।
    एक-एक पल की, खुशियों की, गमों की ।
    फूलों की, बमों की, जीत की, हार की ।
    प्यार की, मार की क्या तुम नहीं सुनोगे ।
    इन किताबों की बातें ? किताबें कुछ कहना चाहती हैं ।
    तुम्हारे पास रहना चाहती हैं, किताबों में चिडिय़ां चहचहाती हैं ।
    किताबों में खेतियां लहलहाती हैं, किताबों में झरने गुनगनाते हैं ।
    परियों के किस्से सुनाते हैं, किताबों में साइंस की आवाज है ।
    किताबों का कितना बड़ा संसार है, किताबों का कितना बड़ा संसार है ।
    किताबों में ज्ञान की भरमार है, क्या तुम इस संसार में ।
    नहीं जाना चाहोगे ? किताबों कुछ कहना चाहती हैं ।

छोटी किताब की आकार के टैबलेट में इसे लोड कर दिया जाता है।किताबों व पन्ने को चुनने के लिए टैबलेट में ऑप्शन होते हैं।यानी,जिस तरह से बच्चे किताबों के पन्ने पलटते हैं,उसी तरह से टैबलेट में ऑप्शन के जरिये किताब के पन्ने पढ़ लेंगे।ई-बुक कई फॉर्मेट में होती हैं।ये पीडीएफ (पोर्टेबल डॉक्यूमेंट फॉर्मेट) व एक्सपीएस के रूप में हो सकती हैं।पाठकीयता को लेकर उठ रहे सवाल और तकनीकी विस्तार के बीच अब भी कई बुक लवर्स हैं राजधानी में।जर्मनी विश्वविद्यालय ने कर्मेंदु शिशिर के यहां से कई बेहतर कलेक्शन का डिजिटल संग्रह किया है।वहीं वेणी माधव पुस्तकालय,तारनपुर,पटना से बर्कले यूनिवर्सिटी ने किताबें मंगाई हैं।यहां कालजयी पुस्तकों को पत्रकार स्व.पारसनाथ सिंह ने संजोकर रखा था।इसी तरह पटना सिटी के हितैषी पुस्तकालय में भी कई दुर्लभ पुस्तकें हैं।राजकमल प्रकाशन के बुक क्लब से बड़ी संख्या में पुस्तक प्रेमी जुड़े हुए हैं।वहीं एनबीटी की पटना इकाई, वाणी,प्रभात और संस्कृति प्रकाशन की ओर से पुस्तक-पाठक अंतरसंबंध को बढ़ावा देने की योजनाएं शुरू किए जाने की पहल आशा जगाती है।आज भी जीवित है लाओस में ताम्रपत्रों पर लेखन कला:-लाओस की लगभग छह शताब्दी पुरानी साहित्यिक विरासत ताम्र पत्रों पर लिखी पाण्डुलिपियों में सुरक्षित है।पीढ़ी दर पीढ़ी विविध रूप से समृद्ध इन साहित्यिक रचनाओं की बार-बार नकल करके इसे आज तक संजोकर रखा जा सका है।मुद्रण की आधुनिक तकनीकों ने जहां अन्यत्र इस कला को विलुप्तप्राय कर दिया है,वहीं लाओस के बौद्ध विचारों ने इसे बखूबी जिंदा रखा है।

POSTED BY-DHARMENDRA SINGH

 

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