कश्मीर में तैनात सीआरपीएफ के एक जवान का खत,बताइए हमारी क्या गलती है और हमने किस गरीब का पैसा खाया है हमको किसी गरीब का पेट काटकर सरकार सैलरी न दे लेकिन,देशभक्त का चोला पहनाकर हमारे स्वाभिमान और हमारे परिवार को लज्जित ना करे….
मैं पैरामिलिट्री फोर्स में सैनिक हूं और चार साल से कश्मीर में तैनात हूं।जुलाई में मेरी नौकरी को दस साल पूरे हो गए हैं और मुझे 28,000 रुपये सैलरी मिलती है।अगर इस दौरान छुट्टी पर गया तो 22,500 रुपये ही मिलेंगे।मेरा परिवार किराए के मकान में रहता है।5,000 रुपये मकान का किराया देता हूं।दो बच्चे हैं जिनकी स्कूल फीस,ट्यूशन और टैक्सी भाड़े पर हर महीने 6,000 रुपये खर्च हो जाते हैं।रसोई का सामान और गैस पर हर महीने 7,000 रुपये खर्च होते हैं।कुल मिलाकर महीने में 18,000 रुपये खर्च हो जाते हैं।मेरे और परिवार का मोबाइल खर्च हर महीने 1,500 रुपये है।अगर मैं हर तीन महीने में छुट्टी जाता हूं तो दोनों तरफ के किराये और रास्ते के खर्च में 10,000 रुपये लग जाते हैं।परिवार के सब लोग स्वस्थ रहें तो हर महीने 3,000 रुपये की सेविंग हो जाती है,नहीं तो वह भी खत्म।
मेरी इन बातों गौर करें की,मेरे घर पर न रहने की वजह से मेरे बच्चों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती है,मेरी केवल उनसे बात होती है।उनके पास ऐसा कोई रोल मॉडल नहीं होता जो उन्हें अच्छी बातें सिखा सके।अगर आस-पास कोई नशा करनेवाला व्यक्ति है तो वे उसकी ही नकल करने लग जाते हैं।हमारे परिवार की भी सुरक्षा नहीं हो पाती है।भरे बाजार में कोई भी कुछ भी कहकर चला जाता है,अगर कभी पकड़ लिया तो रेप जैसी घटनाएं सामने आती हैं।पुलिस से शिकायत करने जाओ तो वह कहती है कि परिवार को सुरक्षित तरीके से रहने को कहो,अगर एफआईआर दर्ज करा दो तो उल्टा नेताओं और दबंगों का दबाव सहो।हमारी संपत्ति भी सुरक्षित नहीं रहती है।जब जिसके मन में आता है कब्जा करने लगता है।शिकायत करने जाओ तो पता चलता है कि वह किसी नेता का रिश्तेदार है इस मामले में कुछ नहीं हो पाएगा।केवल सांत्वना मिलती है और कुछ नहीं होता।हमारी जान का भी कुछ पता नहीं कभी भी जा सकती है।अपने बच्चों को स्कूल छोड़ सकते हैं।अपनी संपत्ति का रख-रखाव कर सकते हैं,अपने परिवार में मां,बहन और बीवी की रक्षा कर सकते हैं।हमारा शरीर पूरे साल चौबीसों घंटे ड्यूटी पर रहता है लेकिन इस घिनौनी दुनिया से इतना डर लगता है कि दो-दो दिनों तक नींद नहीं आती है।लोग हमारे लिए सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन असल में क्या होता है इसका एक उदाहरण देता हूं।मैं 10 साल से नौकरी कर रहा हूं।मेरे घर तक न तो बिजली पहुंची है और न ही सड़क,इसी ग्राम पंचायत का दूसरा आदमी है जो 2013-14 में सिविल सेवा में सिलेक्ट हो गया। सरकार ने तीन महीने के भीतर उसके घर तक बिजली और सड़क पहुंचा दी।जबकि मैंने संबंधित विभाग से कई बार कहा लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।बताइए हमारी क्या गलती है और हमने किस गरीब का पैसा खाया है।हमको किसी गरीब का पेट काटकर सरकार सैलरी न दे। लेकिन,देशभक्त का चोला पहनाकर हमारे स्वाभिमान और हमारे परिवार को लज्जित मत करो।