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करोड़ों के घोटाले, नहीं मिला ऐसा मैदान

चार जून को जहां क्रिकेट फैंस इंग्लैंड में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी में भारत-पाकिस्तान मैच का आनंद उठाएंगे।वहीं उसी रात दुनिया भर के फुटबॉल फैंस की नजरें कार्डिफ (इंग्लैंड) पर टिकी होंगी जहां यूएफा चैंपियंस लीग फाइनल में दुनिया की दो दिग्गज फुटबॉल टीमें (रीयल मैड्रिड और जुवेंटस) खिताब के लिए आमने-सामने होंगी।ये दिन खेल प्रेमियों के लिए बेहद खास है और इस दौरान एक स्टेडियम भी ऐसा होगा जो चर्चा का विषय रहेगा।ये है यूएफा फाइनल का स्थान ‘मिलेनियम स्टेडियम।क्या है इसकी वजह और हमारा देश इस मामले में कहां खड़ा है,कार्डिफ के मिलेनियम स्टेडियम को प्रिंसपेलिटी स्टेडियम के नाम से भी जाना जाता है।इस स्टेडियम की खास बात है इसका रिट्रेक्टेबल रूफ (छत जिसे जरूरत अनुसार बंद या खोला जा सकता है) यूं तो आज ऐसी आधुनिक छत वाले दुनिया में तकरीबन 36 स्टेडियम मौजूद हैं लेकिन सबसे ज्यादा क्षमता वाला ये सबसे अनोखा स्टेडियम है।इसमें 74,500 दर्शक बैठ सकते हैं।यहां फुटबॉल के अलावा रग्बी भी खेला जाता है और म्यूजिक शो भी आयोजित किए जाते हैं। बारिश या खराब मौसम की स्थिति में सिर्फ एक बटन दबाकर इस स्टेडियम की छत को पूरी तरह से बंद किया जा सकता है।इसको बनाने में 121 मिलियन पाउंड का खर्चा आया था।कुछ ही महीनों बाद अक्टूबर में भारत अंडर-17 फुटबॉल विश्व कप का आयोजन करने जा रहा है।ये भारत में होने वाला फीफा का पहला फुटबॉल टूर्नामेंट होगा।इसके लिए भारत में कुल छह स्टेडियमों का इस्तेमाल किया जाएगा-डीवाई पाटिल स्टेडियम (मुंबई) इंदिरा गांधी एथलेटिक स्टेडियम (गुवाहाटी) फटोर्डा स्टेडियम (मारगावो) सॉल्टलेक स्टेडियम (कोलकाता) और जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम (नई दिल्ली) अगर कोलकाता के सॉल्टलेक स्टेडियम को छोड़ दें तो शायद हमारा कोई भी ऐसा स्टेडियम नहीं है जो फीफा के अन्य देशों के प्रतिष्ठित स्टेडियमों को टक्कर दे सके।यहां बात सिर्फ एक आधुनिक छत की नहीं है।बात है भविष्य के उन वादों और उम्मीदों की जिसमें हम ओलंपिक की मेजबानी करने का सपना देखते हैं।2015 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष भी कह चुके हैं कि 2024 ओलंपिक के लिए भारत द्वारा मेजबानी का दावा रखना जल्दबाजी होगी।2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स को भला कैसे भूला जा सकता है।ये भारतीय जमीन पर खेल इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन था।पूरे विश्व में इसकी तारीफ भी हुई लेकिन टूर्नामेंट खत्म होने के बाद ऐसे-ऐसे खुलासे हुए जिसने दुनिया को हैरान कर दिया और घोटालों की ऐसी शुरुआत हुई जिसने कांग्रेस सरकार को ढेर करने की नींव खोद दी।इंग्लैंड के अखबार टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस आयोजन के लिए तकरीबन 270 मिलियन डॉलर का बजट तय किया गया था लेकिन गेम्स खत्म होने के बाद पता चला कि 4 बिलियन डॉलर खर्च हो चुके हैं।यानी बजट से तकरीबन 16 गुणा ज्यादा।वो भी आपकी और हमारे द्वारा चुकाए गए टैक्स से।ऐसे में ये साफ है कि अगर इतना ही पैसा ओलंपिक की तैयारी या उसकी मेजबानी की रणनीति को लेकर लुटाए जाते तो नतीजे कुछ और हो सकते थे।न सिर्फ विश्व स्तरीय स्टेडियम तैयार होते बल्कि खिलाड़ियों को भी वो जरूरी सुविधाएं मिलतीं जिसके लिए आए दिन वो तरसते रहते हैं।आपको बता दें कि दुनिया में तकरीबन 36 ऐसे स्टेडियम हैं जिनके पास छत बंद करने वाली आधुनिक तकनीक मौजूद है।इसमें से सबसे ज्यादा अमेरिका में हैं जबकि दूसरे नंबर पर यूरोप और फिर जापान का नाम शामिल है।ये बात सही है कि भारत में फुटबॉल की इतनी लोकप्रियता नहीं है तो भला ऐसे आधुनिक स्टेडियम बनाने का फायदा क्या है ? लेकिन ये नहीं भूलना होगा कि कई देश ऐसे हैं जिन्होंने स्टेडियम व खेल सुविधाओं पर जमकर पैसा खर्च किया और धीरे-धीरे ही वो उस स्तर तक पहुंचे जहां वे आज खेल जगत में मौजूद हैं।भारत जब टेनिस में अपने पांव पसार सकता है तो एथलेटिक्स, फुटबॉल या अन्य खेलों में क्यों नहीं ? जितना मुश्किल ओलंपिक की दावेदारी हासिल करना है,उससे कहीं ज्यादा मुश्किल अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक परिषद को अपने हालातों से संतुष्ट करना है।मशहूर फुटबॉल एक्सपर्ट व कमेंटेटर नोवी कपाड़िया से बातचीत के बाद इस स्थिति से जुड़ी कई अन्य बातों से भी पर्दा उठा।नोवी कहते हैं,भारत में फुटबॉल लोकप्रिय नहीं है इसलिए शायद ऐसे आधुनिक स्टेडियम बनाने के बारे में सोचा नहीं गया लेकिन ये बात भी उतनी ही सच है कि अगर भविष्य को लेकर तैयारी नहीं की गई तो हम दुनिया से और पीछे रह जाएंगे।यहां पैसा तो है लेकिन वो शायद सही जगह लगता नहीं।ओलंपिक के वादे तो किए जाते हैं लेकिन उस दिशा में काम करने का प्रयास नहीं होता।फीफा ने हमें अंडर-17 विश्व कप की मेजबानी तो दे दी लेकिन मुझे नहीं लगता कि जब ये टूर्नामेंट खत्म होगा तो वो हमारी तैयारियों या हमारे किसी भी स्टेडियम से पूरी तरह संतुष्ट होकर वापस जाएंगे।हर खेल के लिए तैयारियां महत्वपूर्ण होती हैं और दुनिया के तमाम दिग्गज देश यही करते आए हैं।हमारी जो ताजा स्थिति है उसमें आधुनिक स्टेडियम शायद अगले 30 वर्षों में भी हम बनाकर खड़ा नहीं कर पाएंगे। हर चीज के लिए सच्चाई के साथ पहल करनी जरूरी है।बेशक भारत के सामने अभी कई और ऐसी समस्याएं हैं जो इन सबसे अधिक जरूरी हैं,लेकिन खेलप्रेमी तो उम्मीद रखेंगे ही।देखना दिलचस्प होगा कि भारत कब एक आधुनिक स्टेडियम तैयार करने की ओर बढ़ेगा और कौन सी पीढ़ी ओलंपिक होते देख सकेगी।

रिपोर्ट-न्यूज़ रिपोटर 

 

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